जौ (Barley) की खेती क्यों बन रही है भारतीय किसानों की नई पसंद? जानें पूरी जानकारी

जौ (Barley) की खेती क्यों बन रही है भारतीय किसानों की नई पसंद? जानें पूरी जानकारी

भारत में जौ की जो किस्‍में पॉपुलर हैं उनमें RD 2035, RD 2552, DWRB 92, DWR 28 और RD 2660 खास हैं. ये किस्में जल्दी पकने वाली, रोग प्रतिरोधी और उच्च उत्पादन देने वाली हैं. जौ की बुवाई सामान्यतः अक्टूबर से दिसंबर के बीच की जाती है. क्योंकि यह जल्दी पकने वाली फसल है, इसलिए मार्च तक किसान इसे काटकर दूसरी फसल भी लगा सकते हैं.

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जौ (Barley) की खेती क्यों बन रही है भारतीय किसानों की नई पसंद? जानें पूरी जानकारीभारत में बढ़ रही है जौ की खेती

पिछले कुछ वर्षों में जौ (Barley) की खेती भारत में तेजी से लोकप्रिय होती जा रही है. जहां किसान पहले गेहूं, धान और मक्का जैसी पारंपरिक फसलों पर निर्भर थे, वही अब कई राज्‍यों में किसान जौ की तरफ रुख कर रहे हैं. इसकी मुख्य वजहें हैं, कम लागत, कम पानी की जरूरत, बदलते मौसम में बेहतर सहनशीलता और बाजार में बढ़ती मांग. जौ न सिर्फ खाद्य उद्योग में प्रयोग होता है, बल्कि बीयर इंडस्ट्री, पशुचारे और दवा उद्योग में इसकी बड़ी खपत है. यही कारण है कि भारतीय किसान इसे अपनी लाभकारी फसल सूची में शामिल कर रहे हैं.

तेजी से बढ़ रही है खेती 

भारत में जौ की खेती के पॉपुलर होने की कई वजहें हैं. यह फसल कम लागत और कम पानी में तो तैयार होती ही है साथ ही हर तरह की जलवायु को भी सहन कर लेती है. इसके अलावा इसका बाजार भी तेजी से बढ़ रहा है और यह सबसे बड़ा कारण है जो भारतीय किसानों इसकी खेती को पसंद करने लगे हैं. यह फसल न सिर्फ सुरक्षित है, बल्कि किसान को स्थिर आय देने की क्षमता भी रखती है. विशेषज्ञों की मानें तो आने वाले समय में जौ भारत की प्रमुख मोटा अनाज फसलों में शामिल हो सकता है.

कम लागत में ज्यादा मुनाफा

जौ की खेती की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसमें उत्पादन लागत बेहद कम आती है. इसमें कम खाद, कम सिंचाई और कम कीटनाशक की जरूरत होती है. जहां गेहूं की खेती में किसानों को 8–10 सिंचाइयों की आवश्यकता पड़ती है, वहीं जौ सिर्फ 3–4 सिंचाइयों में अच्छा उत्पादन दे देता है. इससे कुल लागत कम आती है और मुनाफा बढ़ जाता है. वहीं देश में बदलते मौसम और कम बारिश की वजह से कई इलाकों में पानी की कमी होती जा रही है. ऐसे क्षेत्रों के लिए जौ खेती किसी वरदान से कम नहीं है. जौ की जड़ें मजबूत होती हैं, जो सूखे और कम नमी में भी अनाज भरपूर देती हैं. यही कारण है कि राजस्थान, हरियाणा और मध्य प्रदेश के किसानों में जौ की खेती तेजी से बढ़ रही है.

हर तरह की जलवायु में कारगर 

मौसम में अचानक बदलाव, ठंडी हवाएं, तेज धूप या हल्की पाला—ये सभी स्थितियां गेहूं और हरी सब्जियों को नुकसान पहुंचाती हैं. लेकिन जौ ऐसी मुश्किल परिस्थितियों में भी अच्छा प्रदर्शन करता है. यह फसल पाले, तेज हवाओं, हल्की गर्मी भी को काफी हद तक सहन कर सकती है. इसका मतलब है कि नुकसान का जोखिम कम और उत्पादन मिलने की संभावना ज्यादा.

मार्केट में बढ़ती मांग

जौ की मांग लगातार बढ़ रही है क्योंकि इसका उपयोग कई उद्योगों में किया जाता है. आज जौ का आटा, दलिया, सत्तू, हेल्थ फूड और फाइबर प्रोडक्ट्स की लोकप्रियता बढ़ रही है. इसके अलावा बीयर और माल्ट उद्योग भी इसकी काफी मांग है. माल्टिंग क्वालिटी जौ की बाजार में सबसे ज्यादा कीमत मिलती है. कई राज्यों में ब्रुअरी कंपनियां किसानों से सीधे कॉन्ट्रैक्ट भी करती हैं. वहीं जौ की भूसी और दाना पशुओं के लिए पौष्टिक चारा माना जाता है. इन सबके अलावा जौ का इस्तेमाल कई आयुर्वेदिक और हेल्थ सप्लीमेंट बनाने में होता है. अगर किसान सही किस्म चुनें, तो जौ 35–45 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उत्पादन दे सकता है.

कौन-कौन सी किस्‍में पॉपुलर 

भारत में जौ की जो किस्‍में पॉपुलर हैं उनमें RD 2035, RD 2552, DWRB 92, DWR 28 और RD 2660 खास हैं. ये किस्में जल्दी पकने वाली, रोग प्रतिरोधी और उच्च उत्पादन देने वाली हैं. जौ की बुवाई सामान्यतः अक्टूबर से दिसंबर के बीच की जाती है. क्योंकि यह जल्दी पकने वाली फसल है, इसलिए मार्च तक किसान इसे काटकर दूसरी फसल भी लगा सकते हैं. यह डबल क्रॉपिंग चाहने वाले किसानों के लिए बेहद फायदेमंद है. कई राज्य सरकारें और प्राइवेट कंपनियां जौ को बढ़ावा दे रही हैं. 

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