कपास की खेतीजो महाराष्ट्र कपास उत्पाद में अग्रणी राज्य है. वहां से एक चौकाने वाला आंकड़ा सामने आया है. दरअसल, एक कपास विशेषज्ञ ने बताया कि महाराष्ट्र में कपास की खेती पिछले चार वर्षों में लगभग 4.59 लाख हेक्टेयर कम हो गई है, क्योंकि अधिक मजदूरी लागत और मशीनीकरण की कमी के कारण किसान सोयाबीन की खेती की ओर रुख कर रहे हैं. 2020-21 में पूरे महाराष्ट्र में 45.45 लाख हेक्टेयर में कपास की खेती की गई, जिसका उत्पादन 101.05 लाख गांठ (प्रत्येक गांठ का वजन 170 किलोग्राम) था. वहीं, केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय और नांदेड़ स्थित कपास अनुसंधान केंद्र के आंकड़ों के अनुसार, 2024-25 तक यह रकबा घटकर 40.86 लाख हेक्टेयर रह जाएगा और अनुमानित उत्पादन 87.63 लाख गांठ है.
कपास अनुसंधान केंद्र के कृषि वैज्ञानिक डॉ. अरविंद पंडागले ने बताया कि कपास की खेती का स्थान बड़े पैमाने पर सोयाबीन ले रहा है. कपास की तुड़ाई हाथ से करनी पड़ती है. वहीं, कपास की तुड़ाई के लिए मजदूरी 10 रुपये प्रति किलो है. बिक्री मूल्य 70 रुपये प्रति किलो से ज़्यादा नहीं है. इसके अलावा फसल पर कीटनाशकों का छिड़काव ज़रूरी है, और इसके लिए ज़रूरी मजदूरी एक बड़ा और महंगा काम है. कपास उगाने की लागत बढ़ रही है, उन्होंने कहा कि यही वजह है कि महाराष्ट्र में कपास की खेती का रकबा घट रहा है.
पंडागले ने बताया कि एक और समस्या कपास की तुड़ाई में आने वाली कठिनाई है. मजदूरों की कमी को दूर करने के लिए कपास की तुड़ाई के लिए मशीनों के इस्तेमाल को बढ़ाना चाहिए. लेकिन भारत में उपलब्ध मशीनें कपास के साथ-साथ पत्तियां और अन्य खरपतवार भी इकट्ठा करती हैं. देश भर के कई उद्योग अधिक कुशल कपास तुड़ाई मशीनें विकसित करने पर काम कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि दूसरे देशों में कपास की तुड़ाई मशीनों से की जाती है, और उनके पौधे 3.5 से 4 फीट से ज़्यादा ऊंचे नहीं होते.
उन्होंने आगे कहा कि भारत में पौधे 7 फीट तक ऊंचे हो सकते हैं. हम शोध की मदद से कपास के पौधों की ऊंचाई कम करने की कोशिश कर रहे हैं. भारत में किसान कपास के बीजों की 'सीधी किस्म' का इस्तेमाल करते हैं. ब्राज़ील और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में वे संकर बीजों का इस्तेमाल करते हैं. सीधी किस्म से कपास को 2-3 बार तोड़ा जा सकता है, जो संकर बीजों से संभव नहीं है.
छत्रपति संभाजीनगर जिले के घोसला गांव के एक कपास किसान अबा कोल्हे ने भी अधिक मजदूरी और अन्य समस्याओं की ओर इशारा किया. उन्होंने कहा कि इस साल कटाई के दौरान भारी बारिश के कारण, कपास के गोलों का वजन कम हो गया है. नतीजतन, मजदूर 20 रुपये प्रति किलो देने पर भी उन्हें तोड़ने को तैयार नहीं हैं. 2021-22 को छोड़कर, हमें फसल का अच्छा दाम नहीं मिला है. इसलिए हमने 2019 की तुलना में खेती का रकबा कम कर दिया है.
किसान ने कहा कि 2019 तक, वह अपनी पूरी 11 एकड़ ज़मीन पर कपास उगाते थे. उन्होंने आगे कहा कि अब वो उस ज़मीन के केवल आधे हिस्से पर ही कपास उगाते हैं. आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, इस वर्ष देश में कपास का आयात निर्यात की तुलना में बढ़ने की संभावना है. 2021-22 में भारत ने 21.13 लाख गांठ कपास का आयात किया और 42.25 लाख गांठ निर्यात किया. कपड़ा मंत्रालय के अंतर्गत कपास उत्पादन और उपभोग समिति (COCPC) द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार, 2024-25 के लिए अनुमानित आयात 25 लाख गांठ है, जबकि निर्यात घटकर 18 लाख गांठ रह जाने की संभावना है.
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