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मुनाफे का सौदा बन सकती है कंद की खेती, बाजार का है इंतजार

मुनाफे का सौदा बन सकती है कंद की खेती, बाजार का है इंतजार

औषधीय पौधों की खेती में तुलसी, अश्वगंधा और एलोवेरा की चर्चा तो खूब होती है, जबकि कंद वर्ग में आने वाली सब्जियां अनगिनत औषधीय गुणों के बावजूद बाजार और उपभोक्ताओं से दूर हैं. भावरी, अंगीठा, रतालू और सूरन जैसे कंद, एक जमाने में सब्जी के तौर पर भोजन की थाली का हिस्सा होते थे. आज इन सब्जियों के नाम तक जुबान से उतर गए हैं.

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भुला दी गई कंद वर्ग की सब्जियाें को बुंदेलखंड किसान मेले में निहारती नई पीढ़ी भुला दी गई कंद वर्ग की सब्जियाें को बुंदेलखंड किसान मेले में निहारती नई पीढ़ी

भावरी हो या अंगीठा, रतालू अथवा सूरन, कंद वर्ग की इन सब्जियों को सेहत के लिए रामबाण माना गया है. इनमें मौजूद पौष्टिक तत्वों की भरमार को देखते हुए सरकार ने अब इनकी खेती को बढ़ावा देना शुरू कर दिया है. कंद की खेती को आयुष मिशन में शामिल कर एक तरफ लोगों को सेहत के लिए कंद के फायदों को लेकर जागरूक किया जा रहा है, वहीं, किसानों को भी कंद की उपज बढ़ाने के मकसद से सरकारी अनुदान एवं अन्य सहायता करने की पहल हुई है. कुल म‍िलाकर भूले दि‍ए गए कंद को फ‍िर से बढ़ावा द‍िया जा रहा है, लेक‍िन इसे क‍िसानों के ल‍िए मुनाफे का सौदा बनाने के ल‍िए समुच‍ित बाजार की जरूरत है.    

किसान मेले में हुआ भूली बिसरी सब्जियों का दीदार

यूपी में झांसी स्थ‍ित रानी लक्ष्मीबाई केन्द्रीय कृष‍ि विश्वविद्यालय में पिछले दिनाें आयोजित हुए बुंंदेलखंड किसान मेला में कंद वर्ग की छह प्रकार की सब्जियों को पेश किया गया. इनमें भावरी, अंगीठा, सूरन, रतालू, सहजन और अरबी शामिल की गयी.

बुंदेलखंड में आज भी किसान सहफसली उपज के रूप में इनकी खेती करते हैं. इनमें रतालू, सहजन और अरबी बाजार में उपलब्ध हो जाती है, मगर भावरी और अंगीठा औषधीय का इस्तेमाल महज औषधीय उपयोग तक सीमित होने के कारण अब इस तरह के कंद बाजार से पूरी तरह नदारद हो चुके हैं.

सरकार दे रही बढ़ावा

कंद वर्ग की इन सब्जियों के इस्तेमाल से सेहत को होने वाले फायदे, इनकी पारंपरिक तरीके से हो रही खेती और सरकार की ओर से इनकी खेती को प्रोत्साहन देने के बारे में उद्यान विभाग के वरिष्ठ अधिकारी जालिम सिंह ने 'किसान तक' को बताया. उन्होंने कहा क‍ि बुंदेलखंड में किसान अभी भी सहफसली उपज के रूप में कंद की खेती पारंपरिक तरीके से करते हैं.

उन्होंने बताया कि खेत की मेड़ या खाली जगह में इनकी फसल की जाती है. भावरी और अंगीठा जैसे भुला दि‍ए गए कंद की खेती वही चुनिंदा किसान करते हैं, जिन्हें इनके औषधीय गुणों की जानकारी है.

सिंह ने कहा क‍ि बुंदेलखंड इलाके में कंद मूल की फसलें बहुत पहले से उपजाई जाती रही हैं. पहले लोगों को इनके महत्व का ज्ञान था, इसलिए किसान इन्हें उगाते थे. वे खुद भी इनका इस्तेमाल करने के अलावा शहरी क्षेत्रों में बाजार के जरिए इनकी आपूर्ति‍ करते थे.

कालांतर में इन सब्जियों को भुला दिया गया और ये प्रचलन से बाहर हो गईं. सिर्फ अचार के लिए सहजन की जड़ और सब्जी के रूप में अरबी एवं थोड़ा बहुत सूरन अभी बाजार में मिल जाता है. उन्होंने कहा कि इन कंदों के औषधीय महत्व को देखते हुए आयुर्वेदिक दवाएं बनाने वाली वैद्यनाथ, पतंजल‍ि एवं जैविक इंड‍िया जैसी बड़ी कंपनियों ने बुंदेलखंड में दस्तक दी है. इसे देखते हुए इनके लिए बाजार की संभावना पनपने के कारण इनके उत्पादन को बढ़ाने की जरूरत है. इसके मद्देनजर उद्यान विभाग द्वारा किसानों को इन्हें सहफसली उपज के रूप में ही उगाने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है.

किसानों की आय में होगा इजाफा

सिंह ने कहा कि कंद वर्ग का औषधीय इस्तेमाल किसानों को इनकी उपज का बेहतर मूल्य दिलाने का मुख्य कारक बन सकता है. उन्होंने कहा कि दवा कंपनियां कंद मूल और जड़ाें को ऊंचे दाम पर खरीदती हैं. अगर किसान इनकी व्यवस्थि‍त खेती करें, तो उन्हें अपनी आय बढ़ाने में भरपूर मदद मिलेगी.

सिंह ने कहा कि इसके मद्देनजर विभाग ने कंद की खेती को भारत सरकार के आयुष मिशन के तहत शामिल कर किसानों को सिंचाई एवं बीज आदि की सुविधा देना शुरू किया है. इसके लिए विभाग द्वारा किसानों को अनुदान देने के अलावा इनकी खेती का प्रश‍िक्षण भी दिया जा रहा है.

बाजार मिले तो कंद करेगा किसान को मालामाल

सिंह ने कहा कि कंद वर्ग की फसलों के लिए बुंदेलखंड सबसे उपयुक्त इलाका है. किसान के सामाने सबसे बड़ी चुनौती अपनी उपज को बेचने के लिए उपयुक्त बाजार उपलब्ध ना होना है. उन्होंने उम्मीद जताई कि सरकार जल्द ही इस समस्या पर ध्यान देकर बाजार की कमी को दूर करेगी.

उन्होंने कहा कि अगर अमेजॉन जैसे ऑनलाइन माध्यमों से इन सब्जियों की बिक्री मुंह मांगे दाम पर हो सकती है, तो स्थानीय बाजार के माध्यम से भी इन्हें आसानी से उपभोक्ताओं तक पहुंचाया जा सकता है. उन्होंने बुंदेलखंड में तुलसी की खेती के सफल प्रयोग का हवाला देते हुए कहा कि तुलसी की तर्ज पर कंद वर्ग की सब्जियों का भी बुंदेलखंड में क्लस्टर बनाकर प्रोत्साहित करने की योजना है.

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