खाद्य तेल वाली फसलों की भारी कमी के बावजूद किसानों को इसका सही दाम नहीं मिल रहा है, जबकि भारत सालाना लगभग 1.4 लाख करोड़ रुपये का खाद्य तेल आयात कर रहा है. इस वक्त चार प्रमुख तिलहन फसलें न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी के लिए भी तरस रही हैं. मूंगफली, सरसों, सोयाबीन और सूरजमुखी इन सभी की खेती करने वाले किसान इस बात को लेकर हैरान हैं कि एक तरफ खाने वाला तेल आयात हो रहा है तो दूसरी ओर उनकी फसलों को सही कीमत क्यों नहीं मिल पा रही है. सवाल यह है कि क्या इसी तरह से भारत खाद्य तेलों में आत्मनिर्भर बनेगा? जब किसानों को सही दाम ही नहीं मिलेगा तो फिर वो तिलहन की खेती को क्यों आगे बढ़ाएंगे. दरअसल, भारत में तिलहन फसलों के इस तिरस्कार का एक इंटरनेशनल कनेक्शन भी है.
कृषि मंत्रालय ने खुद स्वीकार किया है कि इन चार फसलों की खेती करने वाले किसानों को इस साल अब तक ओपन मार्केट में एमएसपी नहीं मिल पाया है. हालांकि, इन सभी फसलों के दाम की दुर्गति को देखते हुए यह सवाल और भी महत्वपूर्ण हो जाता है कि खाद्य तेलों का आयातक होने के बावजूद भारत के किसानों को तिलहन फसलों का एमएसपी भी क्यों नसीब नहीं हो रहा है. कायदे से तो तिलहन फसलों को बहुत अच्छा दाम मिलना चाहिए. आखिर क्यों किसान इसकी सही कीमत के लिए तरस रहे हैं?
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किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट का कहना है कि सरकार की आयात पॉलिसी की वजह से ऐसा हो रहा है. दूसरी ओर खाद्य तेलों के कारोबार से जुड़े लोग इस हालात के पीछे एक और वजह को जोड़ते हैं, जिसका कनेक्शन रूस और यूक्रेन से है. अखिल भारतीय खाद्य तेल व्यापारी महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष शंकर ठक्कर का कहना है इस वक्त रूस और यूक्रेन दोनों देश बहुत सस्ता सूरजमुखी तेल बेच रहे हैं. इसलिए भारत के खाद्य तेल कारोबारी इसका फायदा उठा रहे हैं. आमतौर पर यहां सबसे ज्यादा पाम ऑयल आयात होता है, लेकिन पिछले तीन महीन में सूरजमुखी ने पाम ऑयल का स्थान ले लिया है.
आमतौर पर सूरजमुखी तेल पाम और सोयाबीन से महंगा होता है लेकिन इस समय यह सबसे सस्ता हो गया है. इसलिए इसका आयात बढ़ गया है. आयात बढ़ने के कारण भारत के किसानों को तिलहन फसलों का दाम सही नहीं मिल रहा है. अगर किसानों को एमएसपी भी नहीं मिलेगा तो वो हतोत्साहित होंगे और अगले साल तक तिलहन फसलों का रकबा घट जाएगा.
किसानों को हो रहे नुकसान की एक और वजह खाद्य तेलों पर कम इंपोर्ट ड्यूटी भी है. सरकार ने खाद्य तेलों की महंगाई घटाने के लिए पिछले वर्षों के मुकाबले इसे काफी कम कर दिया था. अभी दाम काबू में हैं लेकिन सरकार की चिंता चुनाव है, इसलिए वो इसे बढ़ा नहीं रही है. इंपोर्ट ड्यूटी कम रहने से आयात ज्यादा होता है जिससे दाम घट जाता है.
सरसों के सही दाम को लेकर सत्याग्रह करने वाले किसान नेता रामपाल जाट का कहना है कि मूंगफली, सरसों, सोयाबीन और सूरजमुखी ये भारत की प्रमुख तिलहन फसलें हैं. इन्हें उगाने वाले किसानों को तो इसलिए पुरस्कार मिलना चाहिए कि वो ऐसी फसल उगा रहे हैं जिसमें भारत आत्मनिर्भर नहीं है. लेकिन दुर्भाग्य से उन्हें पुरस्कार की जगह कम दाम का 'सरकारी' दंड मिल रहा है.
केंद्र सरकार की आयात पॉलिसी किसान विरोधी है. यह ऐसी पॉलिसी है जिससे भारत के किसानों की बजाय दूसरे देशों के किसानों को पैसा मिल रहा है. भारत का पैसा रूस-यूक्रेन, अर्जेंटीना, इंडोनेशिया और मलेशिया के पास जा रहा है. आखिर भारत के किसानों ने ऐसी कौन सी गलती की है जिसकी वजह से उन्हें सरकार तिलहन की फसल उगाने के बावजूद सही दाम नहीं दिला पा रही.
(केंद्रीय कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के आधार पर)
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