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दक्षिण, पश्चिम राज्यों में क्यों होता है पपीते का ज्यादा उत्पादन, वजह जानकर हो जाएंगे हैरान

दक्षिण, पश्चिम राज्यों में क्यों होता है पपीते का ज्यादा उत्पादन, वजह जानकर हो जाएंगे हैरान

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) से जुड़े कृषि वैज्ञानिक चंदन कुमार, धीरज सिंह, महेन्द्र चौधरी, एएस तेतरवाल और भोला राम कुड़ी ने इसके बारे में पूरी जानकारी दी है. इन वैज्ञानिकों का कहना है कि पपीते के पौधे कम तापमान तथा जलभराव के लिए संवेदनशील होते हैं.

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 पपीते की खेती पपीते की खेती

पपीते के बारे में कौन नहीं जानता. यह एक बेहद लोकप्रिय और सब जगहों पर खाया जाने वाला फल है. हालांकि भारत में पपीते का मुख्य उत्पादन दक्षिण तथा पश्चिम के राज्यों में होता है. आंध्र प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र पपीते के उत्पादन में अग्रणी राज्य हैं. इन राज्यों में देश के पपीता उत्पादन का आधा क्षेत्रफल आता है, जबकि कुल उत्पादन का तीन-चौथाई भाग पैदा होता है. आखिर इसकी वजह क्या है. ऐसा क्या है जो इन्हीं क्षेत्रों में पपीते की सबसे ज्यादा खेती होती है.
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) से जुड़े कृषि वैज्ञानिक चंदन कुमार, धीरज सिंह, महेन्द्र चौधरी, एएस तेतरवाल और भोला राम कुड़ी ने इसके बारे में पूरी जानकारी दी है. इन वैज्ञानिकों का कहना है कि पपीते के पौधे कम तापमान तथा जलभराव के लिए संवेदनशील होते हैं. वे क्षेत्र जहां जाड़ों में तापमान 10 डिग्री सेल्सियस से कम होता है तथा पानी रुकने की आशंका होती है वो पपीते की खेती के लिए उपयुक्त नहीं होते हैं.

किसानों के बीच लोकप्रिय गायनो डायोसियस प्रजातियां (जिनमें केवल मादा तथा उभयलिंगी पौधे ही होते हैं), डायोसियस प्रजातियों (जिनमें नर तथा मादा पौधे होते हैं) के मुकाबले कम तापमान के लिए अधिक संवेदनशील होती हैं.

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अनुकूल प्रजातियां

किसानों में ताईवान की गायनो डायोसियस प्रजाति 'रेड लेडी-786' लोकप्रिय है. यह प्रजाति 'पपीते का रिंग स्पॉट विषाणु' (पीआरएसवी) नामक रोग के कम संक्रमण की स्थिति में फलों का अच्छा उत्पादन देती है. पपीते की अन्य प्रजातियाँ हनीड्यू, पूसा डेलीशियस, सूर्या, सीओ-2, 3, 4, 6, पूसा ड्वार्फ तथा पूसा नन्हा भी किसानों द्वारा लगाई जाती हैं. इसके अलावा अन्य निजी कंपनी की प्रजातियों के बीज भी बाजार में उपलब्ध होते हैं.

सिर्फ 50 ग्राम बीज, पपीते की खेती

एक हेक्टेयर क्षेत्र में 2,500 पौध तैयार करने के लिए रेड लेडी का 50 ग्राम बीज लगता है. पौध हमेशा ऐसे पॉलीहाउस में लगाने चाहिए, जिसमें किसी भी प्रकार के कीट प्रवेश न कर सकें, क्योंकि कीट पपीते में लगने वाले विषाणु रोगों के वाहक होते हैं. 6-8 पत्तियों के आने पर पौध को खेत में लगाया जा सकता है. इतनी बड़ी पौध होने के लिए बीज डालने के बाद लगभग अनुकूल मौसम में 6-8 सप्ताह लग जाते हैं. पौध पॉलीथिन की थैलियों या प्लास्टिक की ट्रे में लगाई जा सकती है. इसमें पानी कम मात्रा में देना चाहिए.

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