कपास की कीमतों को लेकर इस साल काफी उथल-पुथल हो सकती है. न्यूयॉर्क स्थित इंटरकॉन्टिनेंटल एक्सचेंज (ICE), में कपास के वायदा कारोबार और वैश्विक मांग में नरमी, ऑस्ट्रेलिया और ब्राजील जैसे देशों में बेहतर फसल की संभावनाओं के बीच भारतीय बाजार में बहुराष्ट्रीय व्यापारिक कंपनियों ने अपना माल बेचना शुरू कर दिया है. इससे भारतीय किसानों को मिलने वाले दाम पर असर पड़ सकता है. आईसीई पर मई कपास वायदा अनुबंध, जो 28 फरवरी को 103.80 सेंट के उच्च स्तर को छू गया था वो वर्तमान में घटकर 84.5 सेंट पर आ गया है. आईसीई पर दिसंबर 2024 का अनुबंध 82 सेंट के आसपास ही चल रहा है.
व्यापार सूत्रों ने कहा कि चीन जैसे देशों की अगुवाई में कमजोर वैश्विक मांग के कारण अंतरराष्ट्रीय कीमतें हाल ही में देखी गई ऊंचाई से 17-18 प्रतिशत कम हो गई हैं, जबकि घरेलू कीमतें भी अपने से 8-9 प्रतिशत कम हो गई हैं. बाजार में ज्यादा खरीदार नहीं हैं. इस बीच बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने अप्रैल, मई, जून और जुलाई की डिलीवरी के लिए बिक्री शुरू कर दी है.
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बाजार विशेषज्ञों का कहना है कि कपास के दाम में कमी मुख्य तौर पर आईसीई वायदा में गिरावट और कम मांग के कारण है. ऑल इंडिया कॉटन ब्रोकर्स एसोसिएशन के अनुसार कपास की कीमतें अभी 60,000-62,000 प्रति कैंडी के बीच चल रही हैं. यह एक महीने पहले की कीमतों से लगभग तीन प्रतिशत कम है. विटर्रा, सीओएफसीओ इंटरनेशनल और लुई ड्रेफस कंपनी जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा बेचे जाने वाले कपास को व्यापारियों और मिलों द्वारा खरीदा जा रहा है.
कॉटन कारपोरेशन ऑफ इंडिया (सीसीआई), जिसने 2023-24 फसल सीजन के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य पर 32.84 लाख गांठ (170 किलोग्राम की) खरीदी हैं, वो अब तक लगभग 5.12 लाख गांठें बेच चुकी है. सीसीआई के पास स्टॉक 27.72 लाख गांठ है. इस बीच व्यापारियों का कहना है कि आवक नगण्य है और मांग कम है. किसानों के पास बेचने के लिए कपास नहीं बचा होगा या वे बेहतर कीमतों की उम्मीद में पीछे रह गए होंगे. इस साल किसान और जिनर्स खुश नहीं हैं क्योंकि कीमतें आकर्षक नहीं रही हैं.
हालांकि अब महाराष्ट्र के खानदेश क्षेत्र के किसानों के पास लगभग 10-15 प्रतिशत स्टॉक ही बचा हो सकता है.
विशेषज्ञों का कहना है कि मिलें भी जरूरत के आधार पर खरीदारी कर रही हैं क्योंकि धागे की थोक आवाजाही नहीं हो रही है. खरीदार बहुत सतर्क हैं क्योंकि ऊंची कीमतों पर यार्न की ज्यादा मांग नहीं है. वे एक या दो महीने का न्यूनतम स्टॉक रखते हुए जो कुछ भी आवश्यक है उसे पूरा कर रहे है. इसके अलावा निर्यात के लिए कोई मूल्य समानता नहीं है, जबकि बहुत सारे अंतरराष्ट्रीय विक्रेता भारतीय बाज़ार में बेचने के इच्छुक हैं.
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