गाजर एक बहुत ही लोकप्रिय सब्जी है. ठंड के दिनों में दो-तीन महीनों के लिए बाजारों में गाजर की डिमांड काफी बढ़ जाती है. इसमें अनेक प्रकार के गुण पाए जाते हैं, जिस वजह से इसका इस्तेमाल अचार, मुरब्बा, सलाद, सब्जी और हलवे बनाने के लिए किया जाता है. इसकी मांग को देखते हुए खेती भी बड़े पैमाने पर की जाती है. गाजर की बुवाई के लिए सितंबर का महीना सबसे बेहतर माना जाता है. वहीं भारत के लगभग सभी राज्यों में गाजर की खेती की जाती है.
आइए जानते हैं भारत की पांच मशहूर गाजर की किस्मों के बारे में जिसकी खेती बेहतर पैदावार देती है और किसान इसकी खेती कर अच्छा मुनाफा भी कमा सकते हैं. गाजर की खेती सितंबर में की जाती है और इस महीने में अब 15 दिन बचे हैं. ऐसे में जो भी तैयारी करनी है, जल्द की जानी चाहिए.
अगर आप किसान हैं और इस सितंबर महीने में किसी फसल की खेती करना चाहते हैं तो आप गाजर की कुछ उन्नत किस्मों की खेती कर सकते हैं. इन उन्नत किस्मों में पूसा केसर, पूसा मेघाली, पूसा आसिता, नैंटस और पूसा रुधिर किस्में शामिल हैं. इन किस्मों की खेती करके अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है.
यह गाजर की एक खास किस्म है. इस किस्म से पैदा होने वाले गाजर का आकार छोटा और रंग गहरा लाल होता है. ये किस्म बीज रोपाई के लगभग 90 से 110 दिनों में तैयार हो जाती है. वहीं यह किस्म पैदावार में भी बेहतर होती है. इस किस्म से प्रति हेक्टेयर तकरीबन 300 क्विंटल का उत्पादन होता है.
गाजर की यह किस्म भी काफी अच्छी पैदावार के लिए जानी जाती है. इस किस्म को मैदानी प्रदेशों में अधिक उगाया जाता है, क्योकि यह अधिक पैदावार देती है. इस गाजर की किस्म का रंग काला होता है. ये किस्म 100 दिनों में तैयार हो जाती है. इसके साथ ये किस्म तकरीबन 200 से 210 क्विंटल की पैदावार देती है.
गाजर की यह किस्म सितंबर के महीने में उगाई जाती है. ये किस्म 100 से 120 दिनों के अंतराल पर तैयार होती है. वहीं ये किस्म प्रति हेक्टेयर 270 से 300 क्विंटल की पैदावार देती है. इस किस्म में केरोटीन की मात्रा अधिक मिलती है. इसके अंदर का गूदा नारंगी रंग का होता है.
गाजर की यह किस्म बेलनाकार आकार में नारंगी रंग की होती है. ये किस्म बुवाई के 110 से 120 दिनों में तैयार हो जाती है. यह किस्म प्रति हेक्टेयर क़े हिसाब से 100 से 130 क्विंटल की पैदावार देती है.
गाजर की यह किस्म लाल रंग की होती है. गाजर की इस किस्म को सितंबर क़े महीने में बोया जाता है. ये किस्म दिसंबर क़े महीने में पैदावार देना शुरू कर देती है. यह किस्म प्रति हेक्टेयर क़े हिसाब से 300 क्विंटल पैदावार देती है. भारत में इस किस्म की खेती सबसे अधिक दिल्ली में की जाती है.
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