इस साल गेहूं की बंपर पैदावार की उम्मीद की जा रही है. खुद करनाल स्थित भारतीय गेहूं और जौ अनुसंधान संस्थान (आईआईडब्ल्यूबीआर) ने भी गेहूं की अच्छी उपज को लेकर अनुमान लगाया है. आईआईडब्ल्यूबीआर के निदेशक जीपी सिंह ने कहा है कि अच्छे मौसम और जलवायु अनुकूल किस्मों के चलते इस वर्ष देश में गेहूं का उत्पादन 114 मिलियन टन (यानी 14 करोड़ 40 लाख टन) से अधिक हो सकता है. सिंह ने कहा कि इस बार पिछले साल के मुकाबले किसानों ने अधिक रकबे में गेहूं की बुवाई की है. इसलिए 114 मिलियन टन से अधिक गेहूं के उत्पादन से इनकार नहीं किया जा सकता है.
बिजनेस लाइन की रिपोर्ट के मुताबिक, जीपी सिंह ने कहा है कि पूरे देश में गेहूं की फसल अभी तक बेहतर स्थिति में है. फसल में किसी तरह की बीमारी के कोई संकेत नहीं मिले हैं. साथ ही पिछले साल से रकबा भी थोड़ बढ़ा है. यदि अगले एक महीने तक सब कुछ ठीक रहा तो हम असालनी से उत्पादन लक्ष्य को पार कर सकते हैं. दरअसल, साल 2022-23 में गेहूं का उत्पादन रिकॉर्ड 110.55 मिलियन टन तक पहुंचने के बाद सरकार ने उत्पादन लक्ष्य 114 मिलियन टन निर्धारित किया है.
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जीपी सिंह ने कहा कि हालांकि अब तक चिंता की कोई बात नहीं है, लेकिन अनिश्चितता बनी हुई है, क्योंकि तापमान में उतार-चढ़ाव लगातार बना हुआ है. चिंता के दो कारण हैं जिन पर कटाई शुरू होने तक पश्चिमी विक्षोभ और तापमान पर नजर रखने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि चूंकि पश्चिमी विक्षोभ के कारण तूफान और बेमौसम भारी वर्षा होती है, जिसके चलते संभावित रूप से खेतों में पानी जमा हो जाता है. कई विशेषज्ञ इसे गेहूं के लिए एक हानिकारक कारक के रूप में देखते हैं. उन्होंने कहा कि मार्च के तीसरे और चौथे सप्ताह में उच्च तापमान को भी विशेषज्ञ गेहूं की पैदावार के लिए नकारात्मक कारक के रूप में देखते हैं.
हालांकि, सिंह ने कहा कि इस बार देश में 80 प्रतिशत से अधिक क्षेत्र में जलवायु अनुकूल गेहू की किस्मों की बुवाई की गई है. ऐसे में वह लक्ष्य तक पहुंचने में ऐसी सभी चुनौतियों को पार करने के लिए आश्वस्त हैं. इस वर्ष गेहूं का रकबा 341.57 लाख हेक्टेयर (एलएच) रहा, जबकि 2022-23 में यह 339.20 लाख हेक्टेयर था. गेहूं के सबसे बड़े उत्पादक उत्तर प्रदेश में 5 प्रतिशत की बढ़ोतरी के साथ 102.40 लाख हेक्टेयर से अधिक का रकबा दर्ज किया गया है और इससे राजस्थान और महाराष्ट्र में कम कवरेज की भरपाई करने में मदद मिली है. साथ ही बिहार, पंजाब और हरियाणा में रकबा लगभग पिछले साल के बराबर है, लेकिन मध्य प्रदेश में 80,000 हेक्टेयर अधिक है.
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