गेहूं की अच्छी पैदावार चाहिए तो ध्यान दें, इन खादों का तुरंत करें छिड़काव

गेहूं की अच्छी पैदावार चाहिए तो ध्यान दें, इन खादों का तुरंत करें छिड़काव

एक किलो जिंक सल्फेट और 500 ग्राम बुझा हुआ चूना 200 लीटर पानी में मिलाकर घोल बनाना चाहिए. फिर हर 15 दिन के अंतराल पर गेहूं पर 2-3 बार यह छिड़काव करना चाहिए. इसी तरह मैगनीज की कमी वाले खेत में एक किलो मैगनीज सल्फेट को 200 लीटर पानी में घोलकर पहली सिंचाई के 2-3 दिन पहले छिड़क देना चाहिए.

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गेहूं की अच्छी पैदावार चाहिए तो ध्यान दें, इन खादों का तुरंत करें छिड़कावगेहूं की फसल (wheat crop) पर जरूरी खादों का छिड़काव जरूर करना चाहिए

हर किसान चाहता है कि उसकी फसल (wheat crop) अधिक से अधिक पैदावार दे. गेहूं भी इसी में एक है. गेहूं इस वक्त बढ़वार पर है, इसलिए किसानों को उसपर अधिक से अधिक ध्यान देने की जरूरत होगी. किसान इस समय गेहूं में नाइट्रोजन की एक तिहाई मात्रा दे सकते हैं. बुआई के समय जिन किसानों ने गेहूं में आयरन और जिंक नहीं डाला था और पत्ती पर इनकी कमी के लक्षण दिखाई दे रहे हैं, वे जिंक और आयरन डाल सकते हैं. जिंक और आयरन देने का खास तरीका होता है जिसे किसानों को जरूर अपनाना चाहिए.

कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक, एक किलो जिंक सल्फेट और 500 ग्राम बुझा हुआ चूना 200 लीटर पानी में मिलाकर घोल बनाना चाहिए. फिर हर 15 दिन के अंतराल पर गेहूं पर 2-3 बार यह छिड़काव (fertiliser spray) करना चाहिए. इसी तरह मैगनीज की कमी वाले खेत में एक किलो मैगनीज सल्फेट को 200 लीटर पानी में घोलकर पहली सिंचाई के 2-3 दिन पहले छिड़क देना चाहिए.

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इसके अलावा आयरन सल्फेट के 0.5 परसेंट घोल का छिड़काव साफ मौसम में खिली धूप के बीच गेहूं पर करने से फायदा मिलता है. ध्यान रखें कि गेहूं की फसल में पूरी अवधि के दौरान 35-40 सेंटीमीटर पानी की जरूरत होती है. जड़ें और बालियां बनते समय खेतों में सिंचाई करनी चाहिए. अगर गेहूं की बुआई समय पर की गई है तो उसमें 20-25 दिन बाद सिंचाई जरूर करें. अगर देर से गेहूं की बुआई हुई है तो उसमें 18-20 दिन बाद सिंचाई करनी चाहिए. पछेती गेहूं में हर 15-20 दिन बाद सिंचाई करते रहना चाहिए.

गेहूं में जितनी जरूरी सिंचाई है, उतना ही जरूरी खर-पतवार का नियंत्रण है. इसके लिए दवाओं का छिड़काव किया जाता है. अगर खर-पतवार को नहीं रोका जाए तो वह पूरी फसल (wheat crop) को बर्बाद कर देते हैं. हालांकि उन्हें रोकने के लिए कई उपाय किए जाते हैं. इसके बावजूद एक आंकड़ा बताता है कि खर-पतवार 40 परसेंट तक गेहूं की फसल को नुकसान पहुंचाते हैं. इस खर-पतवार को रोकने पर किसानों का खर्च भी बढ़ जाता है.

ऐसे रोकें खर-पतवार

गेहूं में संकरी पत्ती वाले और चौड़ी पत्ती वाले दोनों तरह के खर-पतवार होते हैं. आजकल इन दोनों खर-पतवार को खत्म करने के लिए एक ही तरह के हर्बीसाइड आते हैं. यानी एक ही हर्बीसाइड दोनों तरह के खर-पतवार को नष्ट कर देते हैं. किसान इसी हर्बीसाइड का इस्तेमाल करें तो फायदे में रहेंगे क्योंकि उनका अतिरिक्त खर्च बचेगा. इसी में एक सल्फो-सल्यूरॉन नाम का खर-पतवारनाशी है. इसका 13 ग्राम मात्रा 120 लीटर पानी में घोलकर पहली सिंचाई से पहले कर दें तो खर-पतवार को रोका जा सकता है.

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कृषि वैज्ञानिक बताते हैं कि मौजूदा मौसम में गेहूं में रतुआ रोग का प्रकोप सबसे अधिक होता है. उत्तर, उत्तर पश्चिमी और मैदानी इलाकों में इस बीमारी का प्रकोप प्रमुखता से होता है. इसी तरह गेहूं में चूर्णी रतुआ रोग होने का खतरा भी होता है. भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान, करनाल (हरियाणा) ने इस दिशा में बेहतर काम किया है और ऐसी तकनीक इजाद की है जिससे गेहूं को रतुआ रोग (wheat crop yellow rust) से बचाने में सफलता मिली है. इसी तरह पाले से भी गेहूं को बहुत अधिक खतरा होता है. अगर लगातार हफ्ते भर या उससे अधिक दिन तक रात का तापमान पांच डिग्री से कम रहे तो फसल पर पाले का असर होता है. ऐसे में किसानों को पाले की स्थिति पर नजर रखनी चाहिए और जैसे ही खतरे का अंदेशा हो, गेहूं में पानी लगा देना चाहिए. इससे पाले से बचने में सहायता मिलती है.

पाले से बचाव के लिए किसान गेहूं पर दो परसेंट एनपीके डाल सकते हैं. एनपीके की मदद से गेहूं (wheat crop) के तने और पत्तियों की कोशिका में पानी बचाने में मदद मिलती है ताकि फसल को जरूरी पोषण मिलता रहे. इसी तरह गेहूं की बढ़वार को रोकने के लिए भी स्प्रे करने की सलाह दी जाती है. कई किस्में ऐसी हैं जो बहुत अधिक पैदावार देती हैं. ऐसे में अगर पौधा बहुत बड़ा होगा तो उसके गिरने का डर रहता है. इसलिए कृषि वैज्ञानिक बढ़वार को नियंत्रित करने के लिए जरूरी स्प्रे की सलाह देते हैं. अभी 75 से 80 दिन के गेहूं की फसल हो गई है जिसकी लंबाई 1 मीटर से कम होनी चाहिए. अगर उससे अधिक हो रही है तो स्प्रे करके बढ़वार को नियंत्रित करना चाहिए.

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