दालों की बढ़ती महंगाई को काबू में करने के लिए सरकार ने इस साल के लिए भले ही स्टॉक लिमिट लगा दी है और 10 लाख टन दाल आयात करने का फैसला किया है, लेकिन 2023-24 की बुवाई की स्थिति देखते हुए आने वाले दिनों में हालात और खराब होने का अनुमान है. केंद्रीय कृषि मंत्रालय के मुताबिक खरीफ फसलों की बुवाई पूरी हो चुकी है, लेकिन दलहन फसलों का एरिया पिछले साल के मुकाबले 8.59 फीसदी घट गया है. पहले से ही दालों के संकट से जूझ रहे देश में दलहन फसलों का एरिया का इस तरह से घटना उपभोक्ताओं की चिंता बढ़ाने वाला है. यह सिर्फ एक आंकड़ा भर नहीं है बल्कि किसानों और उपभोक्ताओं दोनों से जुड़ा हुआ बड़ा सवाल है.
कृषि मंत्रालय के अनुसार पिछले साल 8 सितंबर तक देश में 131.17 लाख हेक्टेयर में दलहन फसलों की बुवाई हुई थी, जबकि इस साल सिर्फ 119.91 लाख हेक्टेयर एरिया रह गया है. यानी 2022 के मुकाबले इस बार बुवाई 11.26 लाख हेक्टेयर घट गई है. अगर भारत में खरीफ सीजन के पूरे दलहन रकबे की बात करें तो यह गैप और बढ़ जाता है. देश में दलहन फसलों का एरिया 139.75 लाख हेक्टेयर है. इस तरह से इस बार दलहन फसलों की बुवाई 19.84 लाख हेक्टेयर कम है.
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कर्नाटक, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश तीनों दलहन फसलों के प्रमुख उत्पादक हैं. इनमें इस साल दलहन फसलों का एरिया घट गया है. एमपी में देश का 18.01 फीसदी, महाराष्ट्र में 16.81 और कर्नाटक में 10.27 फीसदी दलहन उत्पादन होता है. कृषि मंत्रालय के मुताबिक मध्य प्रदेश में दलहन फसलों का क्षेत्र पिछले साल से 3.72 लाख हेक्टेयर कम हो गया है. कर्नाटक में 3.36 लाख हेक्टेयर की कमी आई है. इसी तरह महाराष्ट्र में एरिया 2.69 लाख हेक्टेयर कम हो गया है.
उत्तर प्रदेश में 0.52 लाख हेक्टेयर, आंध्र प्रदेश में 0.51 लाख हेक्टेयर और गुजरात में 0.46 लाख हेक्टेयर एरिया कम हुआ है. इसी तरह तेलंगाना में 0.46 लाख हेक्टेयर, ओडिशा में 0.43 लाख हेक्टेयर, तमिलनाडु में 0.35 लाख हेक्टेयर, हरियाणा में 0.13 लाख हेक्टेयर, त्रिपुरा में 0.05 लाख हेक्टेयर और पंजाब में दलहन फसलों के रकबे में 0.04 लाख हेक्टेयर की कमी दर्ज की गई है. बुवाई में इस कमी का असर तो अगले साल दिखाई देगा.
फिलहाल, अगर वर्तमान सीजन की बात करें तो इसमें भी दलहन फसलों की मांग और आपूर्ति में काफी अंतर है. खासतौर पर अरहर दाल को लेकर संकट ज्यादा है. ऐसे में सरकार ने पर्याप्त घरेलू उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए चालू मार्केटिंग ईयर (दिसंबर-नवंबर) के दौरान लगभग 10 लाख टन अरहर दाल का आयात करने का फैसला किया है. जबकि साल 2021-22 में 7.6 लाख टन का आयात किया गया था. अरहर दाल का उत्पादन फसल वर्ष 2022-23 (जुलाई-जून) में पिछले साल के 39 लाख टन के मुकाबले कम होकर 30 लाख टन रह गया है.
केंद्र सरकार के अधिकारियों के अनुसार भारत में सालाना लगभग 45 लाख टन अरहर दाल की खपत होती है, जबकि उत्पादन 30 लाख टन रह गया है. ऐसे में हमें इस साल आयात पर निर्भरता बढ़ानी होगी. भारत में अरहर दाल के सबसे बड़े उत्पादक कर्नाटक में विपरीत मौसम और सूखे की बीमारी के कारण संकट ज्यादा बढ़ा है. यानी इस साल तो दालों का संकट है ही, बुवाई में भारी कमी को देखते हुए अगले साल और बड़ा संकट होने का अनुमान है. जाहिर है कि आयात और बढ़ेगा. दाम में भी और वृद्धि हो सकती है. हालांकि, इसे कंट्रोल करने की कोशिश में सरकार जुटी हुई है.
सरकार ने दालों के दाम पर नियंत्रण रखने के लिए स्टॉक लिमिट लगा दी है. तूर दाल और उड़द दाल पर पहले से ही स्टॉक लिमिट लगी हुई थी. इसी सप्ताह मसूर दाल पर भी ऐसा ही नियम लगा दिया गया है. दालों के कारोबारी हर शुक्रवार को अनिवार्य रूप से पोर्टल (https://fcainfoweb.nic.in/psp/) पर स्टॉक की जानकारी देंगे. अधिकारियों का कहना है कि कुछ महत्वपूर्ण कंपनियां उपभोक्ताओं और राष्ट्र के हितों के खिलाफ बाजार में हेरफेर करने की कोशिश कर रही हैं. ऐसे में अब दालों का अघोषित भंडार जमाखोरी माना जाएगा. आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत उचित कार्रवाई की जाएगी.
उपभोक्ता मामले विभाग के प्राइस मॉनिटरिंग डिवीजन के अनुसार 10 सितंबर को अरहर दाल का औसत दाम 146.95 और अधिकतम दाम 188 रुपये प्रति किलो रहा. इसी तरह चना दाल का औसत दाम 79.27, जबकि अधिकतम भाव 133 रुपये रहा. उड़द दाल का औसत दाम 116.44, अधिकतम 164 रुपये रहा. मूंग दाल का औसत भाव 112.71 और अधिकतम दाम 156 रुपये किलो रहा. जबकि मसूर दाल का औसत भाव 93.17 और अधिकतम दाम 147 रुपये प्रति किलो रहा.
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