लीची का नाम सुनते ही हमारे दिमाग में सबसे पहले बिहार के मुजफ्फरपुर का नाम याद आता है. यहां की शाही लीची ना सिर्फ बिहार बल्कि पूरे विश्व में मशहूर है. यही कराह है कि गर्मियों में यह लीची ना सिर्फ ट्रेन और बस बल्कि हवाई जहाज कि भी यात्रा करता है. लीची बहुत ही रसीला और पोष्टिक फल है. यह विटामिन सी और विटामिन बी कॉम्प्लेक्स का एक महत्वपूर्ण स्रोत है. इसकी खोज दक्षिणी चीन में हुई थी. भारत अपने उत्पादन में वैश्विक स्तर पर चीन के बाद दूसरे स्थान पर है. भारत में इसकी खेती केवल जम्मू-कश्मीर, उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश में की जाती है, लेकिन बढ़ती मांग को देखते हुए अब इसकी खेती झारखंड, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, पंजाब, हरियाणा, उत्तरांचल, असम और त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल सहित अन्य राज्यों में भी कि जाती है.
इसे विभिन्न प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता है. लीची की खेती के लिए गहरी, उपजाऊ, अच्छे जल निकास वाली तथा मध्यवर्ती संरचना वाली मिट्टी उपयुक्त होती है. मिट्टी का पीएच 7.5 से 8 के बीच होना चाहिए. उच्च पीएच और नमक वाली मिट्टी लीची की फसल के लिए अच्छी नहीं होती है. वहीं लीची के गुच्छों की बैगिंग करें तो अधिक उपज मिल सकती है. साथ ही फसलों को कीटों से भी सुरक्षित रखा जा सकता है.
फल लगने के 25-30 दिन बाद लीची फल के गुच्छों को सफेद और गुलाबी पॉलीप्रोपाइलीन गैर-बुने हुए थैलों में पैक करने से फल नट बोरर, सूरज की जलन, टूटने से शारीरिक सुरक्षा मिलती है और पेरिकार्प रंग और फल की गुणवत्ता में भी सुधार होता है. इस विधि का इस्तेमाल उपज को बढ़ाने और गुणवत्ता में सुधार करने के लिए किया जाता है. वहीं दूसरी तरफ बैगिंग प्रजनन कार्यक्रम की एक प्रमुख विधि है. बैगिंग की प्रक्रिया में, मादा के रूप में लिए गए फूल से पानी निकालने के बाद बटर पेपर से बने बैग में बांध दिया जाता है.
यह बैग कंटेनर को किसी भी अवांछित परागकण से परागित होने की अनुमति नहीं देता है. वर्तिकाग्र को वांछित परागकण से परागित करने के बाद थैले को फिर से बाँध दिया जाता है ताकि कोई अन्य परागकण यहां न पहुंच सके. चयनित पादप प्रजनन कार्यक्रम की सफलता के लिए बैगिंग आवश्यक है ताकि केवल मन के लायक संकरण उत्पाद प्राप्त हो सके.
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लीची को बड़े पैमाने पर उगाने के लिए एयर लेयरिंग विधि अपनाई जाती है. बीज बनाना कोई आसान प्रक्रिया नहीं है. इस प्रक्रिया में पेड़ को काफी समय लगता है. एयर लेयरिंग के लिए पौधे की शाखाएं कीड़ों और रोगों से मुक्त होनी चाहिए. साथ ही उनका डायमीटर 2-3 सेमी होना चाहिए लम्बाई 30-60 सेमी. होनी चाहिए. चाकू की सहायता से शाखाओं से 4 सेमी ऊपर कट लगायें. चौड़े गोल कट बनाएं. उस कटे हुए हिस्से के ऊपर एक और शाखा रखें और उसे बटर पेपर से बांध दें. चार सप्ताह के बाद जड़ें बनना शुरू हो जाती हैं. जब जड़ें पूरी तरह से बन जाएं तो इसे मुख्य पौधे से अलग कर लें. इसके तुरंत बाद पौधे को मिट्टी में गाड़ दें और पानी देना शुरू कर दें. एयर लेयरिंग मध्य जुलाई से सितम्बर माह में की जाती है.
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