बिहार के मुजफ्फरपुर की शाही लीची के पेड़ों में अब मंजर आना शुरू हो गया है. काफी दिनों तक ठंड रहने के कारण मंजर आने में थोड़ी देर हुई है. गर्मी अभी पूरी तरह से नहीं आई है. ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि इस साल जून तक लोगों को मुजफ्फरपुर की शाही लीची का स्वाद चखने को मिल जाएगा. ऐसे समय में इन पेड़ों की विशेष देखभाल करनी पड़ती है क्योंकि अगर मंजर सही नहीं होगा तो पेड़ में फल सही नहीं लगेंगे. इस वक्त लीची के पेड़ों में कीट और रोग का प्रकोप भी होने की संभावना रहती है.
इसलिए लीची की बागवानी करने वाले किसानों को कृषि वैज्ञानिक पेड़ों का विशेष ध्यान रखने की सलाह दे रहे हैं. मुजफ्फरपुर के राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र के एक्सपर्ट वैज्ञानिक डॉ. इप्शिता के मुताबिक, इस समय लीची के पेड़ में लीची स्टिक बग, दहिया कीट और लीची माइट का प्रकोप हो सकता है. इससे पेड़ों को बचाने की जरूरत होती है. इसके साथ ही किसान इस बात को लेकर सावधानी बरतें कि जिस समय पौधों में फूल खिल रहा है, उस समय उनमें परागण होता है. इस समय पर छिड़काव नहीं करना चाहिए.
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लीची अनुसंधान केंद्र की वैज्ञानिक डॉ. इप्सिता ने बताया कि लीची में मंजर आने के बाद बागान की प्रॉपर तरीके से देखरेख शुरू कर देनी चाहिए. उनका कहना है कि मंजर आने के एक सप्ताह के अंदर वह क्लोज स्टेप में आ जाएगा. ऐसे में किसानों को पहले यह देखना है कि जब पेड़ में फ्लावर वेपर आएगा, तो उसकी सुरक्षा और मजबूती के लिए किसानों को स्प्रे करना है. लेकिन जैसे ही फ्लावर आ जाए, तब किसी भी तरह का स्प्रे नहीं करना है. क्योंकि, मधुमक्खियां इसके पॉलिनेटर होते हैं. वो इसपर आएंगे तो कीटनाशक उनके लिए खतरनाक साबित हो सकता है.
डॉ. इप्सिता ने बताया कि लीची के पेड़ में रेड स्टिंग बग का अटैक काफी तेज होता है. यह पूरे पेड़ पर छा जाते हैं और कोमल पत्ते और कलियों का रस चूसने लगते हैं. उन्होंने बताया कि कीटनाशक के छिड़काव से पहले किसान लीची के पौधे के मुख्य तने के नीचे वाले भाग में 30 सेमी चौड़ी प्लास्टिक की पट्टी लपेट दें. उस पर कोई चिकना पदार्थ ग्रीस आदि लगा दें. इससे कीट के शिशु पेड़ पर नहीं चढ़ पाएंगे. इसके अलावा लेम्डा सायहेलाेथिन का 5 प्रतिशत 1.5 एमएल और प्रोफानोफस 10 प्रतिशत एक एमएल प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें. इसका छिड़काव 10 दिनों के अंतराल पर दो बार करें. इसके साथ ही इस पौधे के नीचे पॉलिथीन बिछा देने पर कीट के गिरने पर उसे एकत्र कर बागान से बाहर मिट्टी में दबा दें. ऐसा नहीं करने पर बाद में ये समस्या पैदा कर सकते हैं.
डॉ. इप्शिता के मुताबिक, लीची स्टिक बग के नवजात और व्यस्क कीट दोनों ही पौधों को नुकसान पहुंचाते हैं. यह अधिकांश पौधों के कोमल हिस्सों जैसे बढ़ती कलियों, पत्तियों, फूल, मंजर, विकसित होते फल, फलों के डंठल और लीची के पेड़ की कोमल शाखाओं के रस को चूसते हैं और फसल को प्रभावित करते हैं. कीटों द्वारा रस चूसे जाने के कारण फल और फूल दोनों ही काले होकर गिर जाते हैं. पिछले साल इस कीट का प्रकोप देखा गया था. हालांकि कीटनाशक का छिड़काव करने पर यह कीट तुंरत मर जाते हैं.
अगर बागान के एक भी पेड़ पर एक भी कीट बच जाता है तो पूरे बागान में यह तुरंत फैल जाता है क्योंकि इनकी आबादी काफी तेजी से बढ़ती है. एक कीट पूरे बाग को संक्रमित करने के लिए पर्याप्त होता है. राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र, मुजफ्फरपुर की तरफ से लीची स्टिक बग कीट के नियंत्रण के लिए कीटनाशकों का छिड़काव करने की अनुशंसा की गई है. इप्शिता से कहा कि किसान अपने पेड़ों पर 15 दिनों के अंतराल पर दो छिड़काव करें.
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