स्ट्रॉबेरी के फल बहुत ही आकर्षक, रसीले और पौष्टिक फलों में से एक है. ये मध्यम आकार के, आकर्षक, सुगंधित और लाल रंग के होते हैं. इन फलों में विटामिन सी और लौह तत्व प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होते हैं. यह अपने विशेष स्वाद और रंग के साथ-साथ औषधीय गुणों के कारण एक महत्वपूर्ण फल है. इसका उपयोग कई मूल्यवर्धित उत्पाद जैसे आइसक्रीम, जैम, जेली, कैंडी, केक आदि बनाने में भी किया जाता है. इसकी खेती अन्य फलों की फसलों की तुलना में कम समय में अधिक मुनाफा दे सकती है. यह कम समय (4-5 माह) में परिणाम देने वाली फसल है. ऐसे में आइए जानते हैं स्ट्रॉबेरी की अच्छी पैदावार के लिए सॉइल सोलराइजेशन क्यों है जरूरी.
स्ट्रॉबेरी एक उथली जड़ वाला पौधा है. इसलिए रोपण से पहले खेत को अच्छी तरह से तैयार कर लेना चाहिए. इसके लिए एक जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से तथा 2-3 जुताई देशी हल से करनी चाहिए तथा मिट्टी को हिलाकर अच्छी तरह भुरभुरा बना लेना चाहिए. यदि मिट्टी में कोई फफूंद या रोग का प्रकोप हो तो उसका उपचार करें. इसके लिए गर्मियों में जब तापमान 40° से 45° सेल्सियस के बीच हो तो मिट्टी का सौरीकरण करना चाहिए. सोलराइजेशन करने के लिए क्यारियों को हल्का गीला करें या हल्की सिंचाई करें और उन्हें 6-8 सप्ताह के लिए 200 गेज पारदर्शी प्लास्टिक फिल्म से ढक दें. प्लास्टिक फिल्म के किनारों को मिट्टी से ढक देना चाहिए, ताकि हवा अंदर प्रवेश न कर सके. इस प्रक्रिया से प्लास्टिक फिल्म के अंदर का तापमान 48°-56° सेल्सियस तक पहुंच जाता है. इससे मिट्टी में मौजूद हानिकारक कीड़े, बीमारियों के बीजाणु और कुछ खरपतवारों के बीज भी नष्ट हो जाते हैं. आजकल इसके लिए कई तरह के केमिकल का भी इस्तेमाल किया जाता है.
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स्ट्रॉबेरी की खेती लगभग सभी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है. अधिक और गुणवत्तापूर्ण उत्पादन के लिए, अच्छी जल निकासी वाला, जैविक, हल्का बलुई दोमट मिट्टी, जिसका pH मान 5.5 से 6.5 के बीच हो, उपयुक्त होती है. मिट्टी में कैल्शियम की अधिकता के कारण पौधे की पत्तियाँ पीली हो जाती हैं. क्षारीय एवं सूत्रकृमि प्रभावित भूमि भी स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए उपयुक्त नहीं होती है.
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खाद और उर्वरकों के प्रयोग का मुख्य उद्देश्य पौधों के समुचित विकास और वृद्धि के साथ-साथ मिट्टी में अनुकूल पोषण संबंधी स्थिति बनाये रखना है. उर्वरक लगाने का उपयुक्त समय आम तौर पर मिट्टी के प्रकार, पोषक तत्वों, जलवायु और फसल की प्रकृति पर निर्भर करता है. इनकी मात्रा मिट्टी की उर्वरता और फसल को दी जाने वाली जैविक खाद की मात्रा पर निर्भर करती है. यदि खाद एवं उर्वरक संतुलित मात्रा में दिया जाए तो निश्चित रूप से पौधों की अच्छी वृद्धि एवं अच्छा उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है. इसलिए खाद एवं उर्वरकों का प्रयोग हमेशा मिट्टी परीक्षण के बाद ही करना चाहिए. सामान्यतः खेत तैयार करते समय 10 से 12 टन खाद, 20 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 20 कि.ग्रा. फास्फोरस एवं 15 कि.ग्रा. पोटाश प्रति एकड़ की दर से डालना चाहिए. इसमें फर्टिगेशन के रूप में एन.पी. का. 19:19:19 पूरे फसल चक्र में 25 ग्राम प्रति वर्ग मीटर की दर से देना चाहिए. इस मात्रा को 15 दिन के अंतराल पर 4-5 भागों में बांट लेना चाहिए. सूक्ष्म पोषक तत्वों का छिड़काव भी उत्पादन बढ़ाने में सहायक है.
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