प्रमुख तिलहन फसल होने के बावजूद सोयाबीन का सही दाम किसानों को नहीं मिल पा रहा. पिछले तीन दिन से महाराष्ट्र की 95 प्रतिशत मंडियों में सोयाबीन का दाम एमएसपी से नीचे चल रहा है. राज्य की ज्यादातर मंडियों में इसका दाम 3000 से लेकर 4200 रुपये प्रति क्विंटल तक है. जबकि केंद्र सरकार ने एमएसपी 4600 रुपये तय की हुई है. इससे कम दाम मिलने का मतलब घाटा होना है. महाराष्ट्र देश का दूसरा सबसे बड़ा सोयाबीन उत्पादक है. यहां के लाखों किसानों की आजीविका इसकी खेती पर निर्भर है, लेकिन इस साल सही दाम न मिलने से वो परेशान हैं. किसानों का कहना है सरकार की खाद्य तेल आयात नीति ऐसी है कि भारत के तिलहन फसलों के उत्पादक किसानों को घाटे का सामना करना पड़ रहा है.
महाराष्ट्र एग्रीकल्चर मार्केटिंग बोर्ड के एक अधिकारी के अनुसार 25 मार्च को लासलगांव विंचुर मंडी में सिर्फ 160 क्विंटल आवक के बावजूद इसका न्यूनतम दाम सिर्फ 3000 रुपये प्रति क्विंटल रहा. जबकि इसकी उत्पादन लागत प्रति क्विंटल 3029 रुपये आती है. अधिकतम दाम 4336 और औसत दाम 4300 रुपये रहा. इसी तरह 24 मार्च को वरोरा मंडी में सोयाबीन का न्यूनतम दाम सिर्फ 3600 रुपये क्विंटल रहा. राज्य की ज्यादातर मंडियों का यही हाल है. एमएसपी का रेट किसानों को नहीं मिल रहा. पैसे की जरूरत की वजह से उसे बेचना मजबूरी है.
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किसानों को सोयाबीन का सही दाम भले ही नहीं मिल रहा है, लेकिन कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि सोयाबीन का खाद्य तेलों में अहम योगदान है. भारत खाद्य तेलों का प्रमुख आयातक है और आयात की निर्भरता एवं विदेशी मुद्रा खर्च के बोझ को कम करने में सोयाबीन महत्वपूर्ण योगदान दे रही है. अगर दाम लगातार कम मिलता रहा तो किसान इसकी खेती कम कर देंगे.
सोयाबीन भारत में व्यावसायिक तौर पर 70 के दशक में आई थी. इसने अब यहां की तिलहन फसलों में दूसरा स्थान हासिल कर लिया है. भारत में उत्पादित कुल सोयाबीन का लगभग 94 प्रतिशत महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और राजस्थान में होता है.
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