महाराष्ट्र में सोयाबीन की खेती करने वाले किसान इन दिनों गहरी चिंता में डूबे हुए हैं. उन्हें एक बार फिर साल 2024 की तरह सोयाबीन का रकबा घटने की आशंका सता रही है. माना जा रहा है कि इस बार भी महाराट्र में सोयाबीन की खेती का रकबा दो लाख हेक्टेयर तक घट सकता है. कृषि विभाग के अधिकारियों की तरफ से रविवार को कहा गया है कि पिछले साल उपज पर कम रिटर्न के कारण महाराष्ट्र में सोयाबीन की खेती का रकबा घटने की उम्मीद है.
सोयाबीन को ज्यादा रिटर्न की वजह से सुनिश्चित नकदी फसलों में एक माना जाता है. किसानों का दावा है कि चारे के तौर पर सोयाबीन केक का आयात और सरकार की खरीद में कोई रूचि नहीं होने की वजह से इसकी खेती पर असर पड़ रहा है. बाकी वजहों में अनियमित बारिश से होने वाला नुकसान, न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर सरकारी खरीद में देरी शामिल भी है. इसकी वजह से किसानों को आय कम हुई है. इसी वजह से इस साल किसानों ने सोयाबीन की खेती में रुचि कम दिखाई है.
एक अधिकारी ने कहा, 'पिछले साल राज्य में सोयाबीन की खेती 52 लाख हेक्टेयर में हुई थी. इस बार हमारा अनुमान है कि यह घटकर 50 लाख हेक्टेयर रह जाएगा यानी दो लाख हेक्टेयर की गिरावट.' वहीं अहिल्यानगर के किसान श्रीनिवास कदलाग ने कहा, 'जब केंद्र सरकार ने 4892 रुपये प्रति क्विंटल एमएसपी घोषित किया था तो उस समय सोयाबीन का दाम 3900 से 4400 रुपये प्रति क्विंटल था. सभी जानते हैं कि सरकार सोयाबीन की पूरी फसल नहीं खरीद सकती और व्यापारी इस स्थिति का गलत प्रयोग करते हैं.' उन्होंने कहा कि जो दरें उन्होंने बताई है वही उनकी वास्तविक कमाई हैं. कदलाग की मानें तो पिछले साल के रुझानों से निराश होकर सोयाबीन की खेती पर खासा असर पड़ा है.
किसान कदलाग ने यह भी दावा किया कि पोल्ट्री किसान हमेशा एकजुट होकर सोयाबीन की कीमतों को नियंत्रित रखने के लिए दबाव बनाते हैं. गौरतलब है कि 2021-22 में जब बाजार में सोयाबीन की मांग बढ़ने के कारण अच्छी कीमतें मिल रही थीं, तब ऑल इंडिया पोल्ट्री यूनियन ने पोल्ट्री के लिए सोयाबीन आधारित चारा आयात करने की केंद्र सरकार से अनुमति मांगी थी. इसकी वजह से सोयाबीन की कीमतों में भारी गिरावट आई थी.
स्वाभिमानी शेतकरी संगठन के नेता माणिक कदम ने बताया, 'जो अहमियत पश्चिमी महाराष्ट्र के किसानों के लिए गन्ने की है वही स्थान मराठवाड़ा के किसानों के लिए सोयाबीन का है. हालांकि, सोयाबीन और इससे जुड़े उत्पादों के आयात पर केंद्र सरकार के बदलते फैसले घरेलू कीमतों में उतार-चढ़ाव लाते हैं. इसका खामियाजा किसानों को भुगतना पड़ता है.' उन्होंने कहा कि 2024 के खरीफ सीजन में खेती बढ़ी लेकिन उपज को बाजार में अच्छे दाम नहीं मिले. फिर केंद्र ने उपज नहीं खरीदी और न ही संकटग्रस्त किसानों को आर्थिक मदद दी. इससे किसानों के दूसरी फसलों की ओर रुख करने के फैसले पर असर पड़ सकता है.
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