ओडिशा के केंद्रापाड़ा और जगतसिंहपुर जिलों में पान (बेटल लीफ) की अच्छी पैदावार के बावजूद किसानों की हालत बेहद खराब है. बाजार में कीमतें आधे से भी कम हो चुकी हैं और किसान मजबूरी में अपनी उपज औने-पौने दामों में बेचने को मजबूर हैं. इससे उनकी लागत भी नहीं निकल पा रही और कर्ज और घाटा बढ़ता जा रहा है.
पटना गांव (जगतसिंहपुर) के किसान लोकनाथ मल्ला ने 'टाइम्स ऑफ इंडिया' को बताया, “इस साल उत्पादन ठीक-ठाक रहा, लेकिन व्यापारी बहुत कम कीमत दे रहे हैं. साथ ही मजदूरी और अन्य खर्चे भी बढ़ गए हैं. पहले जहां 1,000 पान पत्ते 1,000 रुपये में बिकते थे, अब उसी के मिल रहे हैं सिर्फ 400–500 रुपये.”
नुआगांव के किसान बाबाजी साहू ने कहा, “हम लोग अब डिस्ट्रेस सेल कर रहे हैं. इतनी मेहनत और लागत के बाद भी फायदा कुछ नहीं है. हमारे लिए खेती घाटे का सौदा बन गई है.”
कुजंग, एरासामा, बालिकुड़ा (जगतसिंहपुर) और महाकालपाड़ा और राजनगर (केंद्रापाड़ा) के समुद्र तटीय गांवों में करीब 7,000 किसान पान की खेती करते हैं. यह क्षेत्र ओडिशा में पान उत्पादन के प्रमुख इलाकों में से एक है. पटन गांव के ही एक अन्य किसान, जीवन साहू, ने बताया कि उन्होंने आधा एकड़ में पान की खेती पर 1 लाख रुपये खर्च किए.
वे कहते हैं, “अब दाम इतने गिर गए हैं कि अगर सारी फसल भी बेच दूं, तब भी लागत नहीं निकलेगी. हम किसानों के लिए कोई सुरक्षा नहीं है.”
कुजंग के पान व्यापारी महेश्वर बेहरा ने बताया, “कुछ साल पहले तक हम दिल्ली, मुंबई, सूरत, कोलकाता, अहमदाबाद जैसे बड़े शहरों में पान सप्लाई करते थे. लेकिन अब व्यापारी खरीदने को तैयार नहीं हैं. गुटखा, जर्दा और खैनी की मांग ने पान की बिक्री पर असर डाला है.”
बेहरा ने यह भी कहा कि “कई राज्यों जैसे महाराष्ट्र, झारखंड और आंध्र प्रदेश में गुटखे पर प्रतिबंध है, लेकिन जब तक देशभर में बैन नहीं लगेगा, पान की खेती को नुकसान होता रहेगा.”
केंद्रापाड़ा के मुख्य जिला कृषि अधिकारी (CDAO) सुरेश चंद्र मलिक ने बताया कि “पान के लिए सरकार ने अब तक कोई न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) तय नहीं किया है. इस वजह से किसान मजबूरी में कम दामों पर पान बेचने को मजबूर हैं."
उन्होंने माना कि बाजार की अनिश्चितता, व्यापारियों की कम रुचि और नीति का अभाव किसानों की तकलीफ को बढ़ा रहा है.
किसानों और व्यापारियों ने सरकार से निम्नलिखित मांगें की हैं:
पान की खेती ओडिशा के तटीय जिलों में एक परंपरागत और लाभकारी व्यवसाय मानी जाती है. यह फसल सालभर चलती है और हजारों परिवारों की आजीविका इससे जुड़ी होती है. लेकिन नीतिगत अनदेखी, बाजार की गिरावट, और तंबाकू उत्पादों की बढ़ती मांग ने इसे संकट में डाल दिया है.
बंपर फसल के बावजूद दाम नहीं
बंपर फसल होने के बावजूद जब कीमत नहीं मिले, तो किसानों के सामने आर्थिक संकट आना तय है. ऐसे में जरूरी है कि सरकार MSP लागू करे, गुटखा जैसे उत्पादों पर सख्त नियंत्रण लाए, और पान किसानों को संरक्षित बाजार व्यवस्था उपलब्ध कराए.
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