Cotton Farming: अधिक उत्पादन के लिए अपनाएं कपास की यह आधुनिक विधि, कम मेहनत में कमाएं ज्यादा मुनाफा

Cotton Farming: अधिक उत्पादन के लिए अपनाएं कपास की यह आधुनिक विधि, कम मेहनत में कमाएं ज्यादा मुनाफा

Cotton Farming: कपास की खेती एक वैज्ञानिक और योजनाबद्ध प्रक्रिया है. सही जलवायु, सही मिट्टी, बीज उपचार, फसल चक्र और खरपतवार प्रबंधन जैसे उपाय अपनाकर किसान भाई अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं और अच्छी आय कमा सकते हैं. श्वेत स्वर्ण यानी कपास, न केवल किसानों की आजीविका को मजबूत करता है, बल्कि भारत की अर्थव्यवस्था में भी अहम भूमिका निभाता है.

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अधिक उत्पादन के लिए अपनाएं कपास की यह आधुनिक विधि, कम मेहनत में कमाएं ज्यादा मुनाफाकपास की खेती (Cotton Farming)

Cotton Farming: कपास भारत की एक महत्वपूर्ण नकदी फसल है, जिसे व्यापार जगत में 'सफेद सोना' के नाम से भी जाना जाता है. यह कपड़ा कंपनीयों की रीढ़ है और लाखों किसानों की आय का मुख्य स्रोत है. लेकिन कपास की खेती कर रहे किसानों को कई बातों का खास ध्यान रखना होता है. कपास की खेती के लिए जलवायु से लेकर मिट्टी,पानी,खाद आदि का ध्यान रखना होता है तब जाकर किसानों को फसल से अच्छी उपज मिलती है. ऐसे में अगर आप भी कपास की खेती करना चाहते हैं तो ये खबर आपके लिए है.

कपास की खेती के लिए सही जलवायु 

कपास के अंकुरण के समय तापमान कम से कम 16 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए. ऐसा करने से फसल की पैदावार बढ़ती है. फसल के उगने के दौरान तापमान 21 से 27 डिग्री सेल्सियस के बीच होना चाहिए. फल लगने के समय तापमान अलग होता है. इस समय दिन में तापमान 27 से 32 डिग्री सेल्सियस और रात में ठंडा होना चाहिए, तभी उत्पादन अच्छा होगा. बीज के फूटने के लिए तेज धूप और शुष्क मौसम जरूरी है. बारिश कम से कम 50 सेमी वर्षा आवश्यक है.

कपास की खेत के लिए उपयुक्त मिट्टी

कपास की खेती के लिए ऐसी मिट्टी चाहिए जिसमें पानी को रोकने और बाहर निकालने दोनों की अच्छी क्षमता हो. सिंचाई वाले क्षेत्र के लिए बलुई या बलुई-दोमट मिट्टी सही मानी जाती है. साथ ही मिट्टी का पीएच मान 5.5 से 6.0, लेकिन 8.5 तक की मिट्टी में भी किसान कपास की खेती कर सकते है.

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कपास की खेती के लिए फसल चक्र

फसल चक्र अपनाने से मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है और कीट-रोग नियंत्रण में भी मदद मिलती है.

उत्तर भारत में फसल चक्र

  • कपास - मटर
  • कपास - ज्वार
  • कपास - गेहूं / जौ

दक्षिण भारत में फसल चक्र

  • कपास - ज्वार
  • कपास - मूंगफली
  • धान - कपास
  • कपास - धान

गेहूं की फसल के लिए कपास की जल्दी पकने वाली किस्म और गेहूं की देर से बोने वाली किस्म का चयन करना चाहिए. ताकि किसान दोनों ही फसल से अच्छी आमदनी कमा सकें.

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बुवाई से पहले बीज उपचार

स्वस्थ फसल के लिए बीज का उपचार बेहद जरूरी है. फसलों की बुवाई से पहले बीज उपचार करने की सलाह दी जाती है. ताकि बीजों में लगे बीमारी का इलाज पहले ही किया जा सके. इससे ना सिर्फ फसलों की उपज बढ़ती है बल्कि मिट्टी की उर्वरक क्षमता भी बनी रहे.

फफूंदनाशक उपचार

  • कार्बेन्डाजिम 2.5 ग्राम प्रति किलो बीज
  • यह राइजोक्टोनिया जैसे रोगों से बचाव करता है.

कीट नियंत्रण के लिए सलाह

फसलों को कीटों से बचाने के लिए इमिडाक्लोरोप्रिड 7.0 ग्राम या कार्बोसल्फॉन 20 ग्राम प्रति किलो बीज में मिलाकर इस्तेमाल करने की सलाह दी जाती है.

दीमक रोकने के लिए उपाय

फसलों में दीमक की समस्या बहुत आम है. यह फसलों में लगकर फसल को पूरी तरह से नष्ट कर देता है. फसलों को इससे बचाने के लिए 10 मिली क्लोरोपाईरीफॉस को 10 मिली पानी में मिलाकर बीज पर छिड़कें. फिर बीज को 30-40 मिनट छाया में सुखाकर बोएं.

खरपतवार नियंत्रण

खरपतवार फसल की उपज कम कर सकते हैं, इसलिए इनका समय पर नियंत्रण जरूरी है. इसके लिए 3-4 बार गुड़ाई करें. पहली गुड़ाई सूखी अवस्था में, बुआई के 30-35 दिन बाद करें. गूलर और फूल बनने पर कल्टीवेटर का प्रयोग न करें. ऐसे स्थिति में हाथ से निराई करने की सलाह दी जाती है. 

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