Moringa Farming: सहजन की इस किस्‍म से मिलती है 20 टन उपज, फिर भी भारतीय किसानों को नहीं होता कोई मुनाफा

Moringa Farming: सहजन की इस किस्‍म से मिलती है 20 टन उपज, फिर भी भारतीय किसानों को नहीं होता कोई मुनाफा

Moringa Farming: सहजन की एक किस्‍म इस समय अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर पर खास तौर पर अफ्रीकी महाद्वीप के सेनेगल, रवांडा और मेडागास्कर जैसे देशों में किसानों की स्थिति को बदलने में लगी हुई है. इस किस्‍म की खेती भारत में भी होती है लेकिन अगर मुनाफे की बात की जाए तो भी भारतीय किसानों को वैसा मुनाफा नहीं हो रहा जैसा इन देशों में किसान कमा रहे हैं. 

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Moringa Farming: सहजन की इस किस्‍म से मिलती है 20 टन उपज, फिर भी भारतीय किसानों को नहीं होता कोई मुनाफा Moringa Farming: सहजन की इस किस्‍म से दक्षिण अफ्रीका के किसानों को बड़ा फायदा हुआ है

मोरिंगा यानी सहजन की खेती को विशेषज्ञ किसानों के लिए फायदेमंद करार देते हैं. उनकी मानें तो भारत में इसकी खेती करने वाले किसान सोने की खान पर बैठे हैं. यहां पर किसान बस उस सुनहरे मौके का इंतजार कर रहे हैं जो उनकी आय और जीवन स्‍तर को एक नए मुकाम पर ले जा सके. दरअसल सहजन की एक किस्‍म इस समय अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर पर खास तौर पर अफ्रीकी महाद्वीप के सेनेगल, रवांडा और मेडागास्कर जैसे देशों में किसानों की स्थिति को बदलने में लगी हुई है. इस किस्‍म की खेती भारत में भी होती है लेकिन अगर मुनाफे की बात की जाए तो भी भारतीय किसानों को वैसा मुनाफा नहीं हो रहा जैसा इन देशों में किसान कमा रहे हैं. 

अफ्रीका में बनी कुपोषण की दवा 

मोरिंगा ओलीफेरा की एक किस्म पीकेएम1 ने अफ्रीकी देशों के किसानों की जिंदगी में नया प्रभाव पैदा किया है. इस पेड़ की पत्तियां और फूल मैक्रोन्यूट्रिएंट्स और माइक्रोन्यूट्रिएंट्स प्रदान करते हैं. माना जाता है कि इन देशों पत्तियां और फूल बच्चों में कुपोषण दूर करने में मददगार हुए हैं. अखबार द हिंदू के अनुसार इसी किस्‍म की खेती भारत के दक्षिणी राज्‍य तमिलनाडु में भी की जाती है. लेकिन विशेषज्ञ इस बात को देखकर काफी हैरान हैं कि तमिलनाडु के किसानों को अभी तक अंतरराष्‍ट्रीय बाजार में मौजूद एक आकर्षक बिजनेस का फायदा नहीं मिल सका है. 

5000 एकड़ में होती खेती 

पीकेएम1 के आने से पहले देश में मोरिंगा की करीब  छह देशी किस्में थीं. ये सभी किस्में बारहमासी फसलें थीं जिनके पेड़ 30 साल तक जिंदा रहते थे. ये सभी किस्में व्यावसायिक तौर पर प्रैक्टिकल नहीं थीं और इन्हें तने की कटाई करके उगाया जाता था. डिंडीगुल जिले के पेरियाकुलम में हॉर्टीकल्‍चर कॉलेज और रिसर्च इंस्‍टीट्यूट को मोरिंगा समेत सब्जियों की उच्च उपज वाली किस्में विकसित करने का अधिकार दिया गया है. सन् 1980 के दशक के अंत में इस इंस्‍टीट्यूट ने पीकेएम1 किस्म को किसानों के लिए लॉन्‍च कर दिया था. इसके डीन जे राजंगम का कहना है कि मोरिंगा की मौजूदा किस्मों से जर्मप्लाज्म स्‍टडी ने पीकेएम1 किस्म के जन्म में मदद की. अब यही किस्‍म डिंडीगुल क्षेत्र में 5,000 एकड़ में उगाई जा रही है. 

हर साल 20 टन उपज 

पीकेएम1 किस्म, बीजों के जरिये से पैदा होने वाले एक सालान फसल है. यह एक साल में प्रति एकड़ 20 टन उपज देती है और किसानों ने भी इसे बड़े पैमान पर स्‍वीकार कर लिया है. विशेषज्ञों के अनुसार यह किस्‍म बाकी देशी किस्मों की तुलना में छह महीने के अंदर उपज देना शुरू कर देती है. अगरनियमित छंटाई की जाए तो तीन साल तक इतनी ही उपज हासिल होती है और जिसके बाद उपज कम हो जाती है. अच्‍छी देखभाल के साथ इस किस्‍म के कुछ पेड़ 37 किलो तक सहजन की उपज देते हैं. चूंकि मोरिंगा एक नाजुक पेड़ है, इसलिए देशी किस्में बहुत ऊंचाई तक बढ़ती हैं और आंधी और भारी बारिश में आसानी से नष्‍ट हो जाती हैं. 

कोल्‍ड स्‍टोरेज न होने से परेशानी 

टेक्‍नोलॉजी की मदद से किसानों को यह ज्‍यादा उपज देने वाली किस्म मिली है लेकिन इसके बाद भी इसके लिए कोई किसान उत्पादक संगठन बनाने के लिए कदम नहीं उठाए गए हैं. इस क्षेत्र में कोई सरकारी कोल्ड स्टोरेज सुविधा नहीं है. विशेषज्ञों की मानें तो अगर उनके पास एक सरकारी कोल्‍ड स्‍टोरेज होता तो बाजार में मंदी के समय अपनी उपज रख सकते थे. जब कीमतें अधिक होतीं तो इसे बेचकर मुनाफा कमाया जा सकता था. 

किसानों को चाहिए सोलर ड्रायर  

इसके अलावा, कोई सोलर ड्रायर भी नहीं है. अगर सेल्‍फ हेल्‍प ग्रुप्‍स के पास यह उपकरण होता तो पोषक तत्वों से भरपूर पत्तियों को आसानी से सुखाकर पाउडर बनाया जा सकता था. इसके अलावा पेड़ों के उत्पादन और छंटाई के लिए कोई भी स्‍टैंडर्ड प्रॉसेस नहीं है. सिर्फ मोरिंगा की खेती में ही पत्तियों को एक सब-प्रॉडक्‍ट माना जाता है. ऐसे में अगर किसानों को अंतरराष्‍ट्रीय बाजार में हिस्सेदारी चाहिए तो अब सही समय है जब बाजारों की पहचान की जाए और किसानों को एक साथ लाने के लिए कदम उठाए जाएं. इससे वो पत्तियों को इकट्ठा करके अपने दम पर निर्यात कर सकेंगे. 

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