संगरूर के अलग-अलग गांवों की महिलाएं अब अपनी मंडी लगाकर जैविक तरीके से तैयार सामान सीधे लोगों को बेचेंगी. संगरूर में 2 साल पहले 'पहल' नाम से प्रोजेक्ट शुरू किया गया था. इसमें अब तक 5000 से ज्यादा महिला किसान जुड़ चुकी हैं. जो भी महिलाएं अपने खेतों में जाकर घर पर ही जैविक तरीके से सब्जियां और फल उगाती हैं, उन्हें बाद में पैक करके बाजार में बेचा जाता है. ये सभी सामान बाजार भाव से थोड़े महंगे हैं, क्योंकि ये उच्च गुणवत्ता वाले, शुद्ध और जैविक हैं.
इन्हें तैयार करने में किसी भी तरह के कीटनाशक का इस्तेमाल नहीं किया जाता है. संगरूर जिले के विभिन्न गांवों की महिलाएं इससे जुड़ी हैं. कोई हल्दी, मिर्च, जीरा, अदरक पेस्ट समेत रसोई में इस्तेमाल होने वाले तमाम तरह के मसाले बनाकर उन्हें रोजाना तैयार कर रही हैं. कोई अपने खेतों से जैविक दालें, परफ्यूम और कपड़े धोने का साबुन, दूध से बने उत्पाद, घी, पनीर, मक्खन, लस्सी, सरसों का तेल, कपड़े के थैले आदि बनाती हैं.
अब लोगों तक सीधे पहुंचने के लिए संगरूर प्रशासन ने 'पहल मंडी' बनानी शुरू कर दी है, इसका आयोजन सप्ताह में एक बार किया जाएगा. इससे पहले संगरूर और धुरी में पहल की शुरुआत हो चुकी है. जिससे पहल परियोजना से जुड़ी महिलाएं काफी खुश हैं, क्योंकि उनके घर में बने जैविक मसाले और सब्जियां लोगों तक पहुंच रही हैं और उन्हें अच्छा मुनाफा भी हो रहा है.
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पहल मंडी में इन महिलाओं द्वारा बनाए गए उत्पाद खरीदने आई एक महिला कहती हैं कि मैंने वहां से बहुत सारी चीजें खरीदी हैं जो बिल्कुल शुद्ध और जैविक हैं. मुझे 50 रुपये का एक पैकेट मिला, हालांकि यह बाजार से थोड़ा महंगा है क्योंकि इसमें केमिकल नहीं होते हैं और ये घरेलू सामान हैं, हमें अपने किचन में इनका इस्तेमाल करना चाहिए, ऐसी पहल होनी चाहिए थी.
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वहीं पहल प्रोजेक्ट से जुड़ी महिलाओं का कहना है कि वे ये सभी जैविक उत्पाद अपने खेतों और घरों में ही तैयार करती हैं. संगरूर जिले में तीन जगहों पर पहल मंडी लगाई जा रही है. लोग अपने घरों से हमारे पास आकर इन्हें ले जा रहे हैं. हमने 50 रुपए प्रति पैकेट रसोई के मसालों के पैकेट बनाए हैं, जो बिल्कुल शुद्ध और जैविक हैं और हमारे घर और खेत से ही हैं. हमें बहुत अच्छा लग रहा है और मुनाफा भी अच्छा हो रहा है.
जिले के सहायक डिप्टी कमिश्नर वर्जीत बालिया ने जानकारी देते हुए बताया कि 2 साल पहले जब पहल नाम से प्रोजेक्ट शुरू किया गया था. जिसमें स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से गांवों में महिलाओं के ग्रुप बनाए गए थे. इस प्रोजेक्ट से 5000 से ज्यादा महिलाएं जुड़ी हुई हैं जो अपने पूरी तरह से शुद्ध और जैविक उत्पाद बनाकर बेच रही हैं और ये सीधे लोगों तक पहुंचते हैं, बीच में कोई बिचौलिया नहीं है. इसलिए हमने सप्ताह में एक बार बाजार लगाना शुरू किया है. इससे पहले हम संगरूर और धुरी में भी इसकी शुरुआत कर चुके हैं.
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