इंसानों को अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए पौधों की जरूरत होती है क्योकि इंसान ही खाद्य श्रृंखला के प्रमुख घटक हैं. हम जो कुछ भी खाते हैं उसमें मुख्य रूप से पौधे और पौधे से निकली उपज शामिल होती हैं. पौधे प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र की रीढ़ भी हैं. दूसरी तरफ वातारण को बेहतर बनाए रखने के लिए पौधों का अहम रोल है. पौधे हर साल लोगों द्वारा उत्सर्जित कार्बन डाइऑक्साइड का लगभग 30 फीसदी तक अवशोषित करते हैं. ठीक उसी तरह जलवायु कृषि में अहम भूमिका निभाती है. पौधों को उनके विकास के लिए पर्याप्त गर्म और नम जलवायु की जरूरत होती है. पौधे के आनुवंशिक गुण भी जलवायु से प्रभावित होकर प्रदर्शित होते हैं. जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से खेती में कई चुनौतियां उत्पन्न हो रही हैं. बढ़ते तापमान और घटती बारिश को देखते हुए बदलते मौसम के प्रति सहनशील फसलों और किस्मों के बीजों का प्रयोग करना चाहिए.
कृषि विज्ञान केंद्र, बिहार के नरकटियागंज के हेड डॉ. आर. पी. सिंह ने बताया कि बढ़ते हुए तापमान और वातावरण में बदलाव से फसलों और फल वृक्षों से होने वाला अपेक्षित उत्पादन और उत्पादकता प्रभावित हो सकती है. फसल उत्पादन के लिए अनुकूल तापमान की जरूरत होती है ना कि बहुत अधिक और बहुत कम तापमान की क्योंकि अनुकूल तापमान पर पौधों में एन्जाइम की सक्रियता बनी रहती है. इससे रासायनिक क्रियाएं सुगमता से उत्पन्न होती हैं. मगर अधिक तापमान के कारण वातावरण में नमी की कमी, पौधों की जलोत्सर्जन क्रिया, मृदा से वाष्पीकरण की क्रिया से पौधे का विकास और उपज प्रभावित होती है. अगर इसी तापमान में तेज हवाएं चलती हैं तो मृदा में नमी की कमी हो जाती है. यह फसल को नष्ट कर सकती है. इसके अतिरिक्त तीव्र गति जलोत्सर्जन दर बढ़ाकर और मृदा से वाष्पीकरण की दर बढ़ाकर वायु फसलों की वृद्धि पर कुप्रभाव छोड़ती है. बढ़ते मौसम के दौरान औसत तापमान में वृद्धि के कारण पौधे आमतौर पर अपने रखरखाव के लिए श्वसन के लिए अधिक ऊर्जा का उपयोग करते हैं और अपने विकास को सहारा देने के लिए कम औसत तापमान में 1 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के साथ, प्रमुख खाद्य और नकदी फसल प्रजातियों की पैदावार 5 से 10 प्रतिशत तक कम हो सकती है.
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डॉ. आर. पी. सिंह ने बताया कि फसलों के बढ़वार और विकास के लिए जल एक जरूरी अवयव है क्योंकि इससे मृदा में नमी बनी रहती है. यही कारण है कि दुनिया के उन भागों में कृषि कार्य अधिक विकासित हुए हैं जहां उनकी वृद्धि के लिए जरूरी मात्रा में जल की उपलब्धता है. पानी और मृदा अभिक्रियाएं पौधों की वृद्धि के लिए अनुकूल पारिस्थितियां प्रदान करती हैं. लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण साल में बरसात कम होता जा रहा है. दिन के बढ़ते तापमान और जलवायु परिवर्तन का मृदा की भौतिक एवं रासायनिक क्रियाओं पर विपरीत प्रभाव पड़ता है जिसके कारण पौधों की वृद्धि एवं विकास प्रभावित होता है.
एक आंकड़े के अनुसार भारत में वर्षा आधारित 8 करोड़ 60 लाख हेक्टेयर में खेती होता है और उत्पादन के मूल्य के मामले में पहले स्थान पर है. भारत में वर्षा आधारित क्षेत्र खाद्यान्न उत्पादन में अहम योगदान देते हैं, जिसमें चावल का 44 फीसदी, मोटे अनाज का 87 फीसदी, दलहन 85 फीसदी, 72 फीसदी तिलहन, कपास का 65 फीसदी और छोटे बाजरा 90 फीसदी शामिल हैं. कुल मिलाकर, वर्षा आधारित क्षेत्र 40 फीसदी खाद्यान्न पैदा करते हैं, वर्षा आधारित क्षेत्र में कम वर्षा से इन फसलों से प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है.
बदलते जलवायु परिवर्तन के दौर में कम पानी चाहने वाली और अधिक ताममान सहने वाली फसलो की तरफ किसानों को बढ़ना चाहिए. खरीफ धान की जगह मक्का की फसल को तरजीह देनी चाहिए. इसके लिए मक्का और गेहूं सुधार केंद्र (CIMMYT) और आईसीएआर ने गर्मी और सूखे को सहन करने वाली मक्का की ऐसी किस्म विकसित है जो अत्यधिक तापमान में भी उग सकती है. बदलती जलवायु परिस्थिति में किसान फसलों के चयन में सावधानी बरतें. खरीफ मौसम में पानी की कमी की दशा में मक्का, बाजरा, अरहर, मूंग, उड़द, मड़ुआ, चीना, सांवा, कोदो, कौनी आदि का चुनाव करना चाहिए. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अनुसार, खरीफ में बोइ जाने वाली फसलों की जलवायु अनुकूल किस्मों की खेती करने का सुझाव दिया जाता है.
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद( ICAR) के अनुसार मक्का की जलवायु अनुकूल किस्में माही धवल, जेएम-216, प्रताप हाइब्रिड मक्का-1, प्रताप मक्का-3, प्रताप मक्का-5, एचक्यूपीएम-1, बाजौरा मक्का, एचक्यूपीएम-5, एएनएच-1147, पीईएचएम-1 हैं. बाजरा की जलवायु अनुकूल किस्में WCC-75, GHB-538, GHB-538, GHB-719, GHB-719, GHB-757, RHB-154, HHB 223, HHB-216, HHB-226, RHB-177, बायो 70, HHB-234, PBH 306, बलवान, NBH 4903, CZP 9802, पूसा कम्पोज़िट 443, पूसा हाइब्रिड 415 हैं. ज्वार की जलवायु अनुकूल किस्में, सोरघम एम 35-1, सीएसएच-5, सीएसवी-4, सीएसएच-9, फुले चित्रा, सीएसवी-17, पंत चरी 5 और 7, फुले पंचमी, सीएसएच 31आर, डीएसवी-2, फुले वसुधा, परबनीमोती, पीएस-4, एसआईए-326 हैं.
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दलहनी फसलों में अरहर की जलवायु अनुकूल किस्में पीजनपी पालनाडु, कंपनी 5, आईसीपीएल-87, मारुति, प्रगति, अभय, जागृति (आईसीपीएल 151), आशा, पारस, एमएएल 13, बीआरजी-1, बीआरजी-2, पीआरजी-158, वीएल अरहर-1, राजीव, बीडीएन-711, बीडीएन-716, जीटी-102, एलआरजी-52, जीआरजी 811, बीडीएन-708, बीआरजी 5, पीआरजी 176, प्रकाश, राजेंद्र अरहर-1 हैं. उड़द की जलवायु अनकुल किस्में टाइप 9, पंत यू 31,पंत यू 19, उत्तरा उर्द शेखर-2,अंड-3, प्रताप उड़द-1, (केपीयू 07-08),बीडीयू-1, पंत उड़द-35 हैं. मूंग की जलवायु अनकुल किस्में पूसा विशाल, सम्राट, सोना, एच यू एम 16, एसएमएल 668, आरएमजी-268, प्रताप, पीडीएम-139, आरएमजी-344, पूसा विशाल, जीएम-4, सीओ, (जीजी) 8, यदाद्रि, वीबीएन 4 वीजीजी 10-008, बीएम-2003-2 हैं.
इसके अलावा किसान सावां, कोदो और मड़ुआ की खेती की तरफ बढ़ सकते हैं जो कम पानी और तापमान के उतार चढ़ाव में भी बेहतर पैदावार देते हैं.
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