किसान तक समिट- 2023 में न्यूनतम समर्थन मूल्य कमेटी के सदस्य बिनोद आनंद ने कहा कि देश में एमएसपी को ना तो खत्म किया जा रहा है और ना ही उसका दायरा सीमित हो रहा है. उन्होंने बिजनेस टूडे के मैनेजिंग एडिटर सिद्धार्थ ज़राबी से बातचीत में बताया कि इस साल नवंबर या उससे पहले एमएसपी पर बनी कमेटी की रिपोर्ट सरकार को सौंप दी जाएगी. किसान तक समिट-2023 में द ग्रेट इंडियन एग्रीकल्चर मार्केट में पंजाब राइस मिलर्स और एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष अशोक सेठी, एमएसपी कमेटी के सदस्य बिनोद आनंद और ऑल इंडिया राइस एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के सीनियर एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर बिनोद कौल ने हिस्सा लिया. इनसे बातचीत बिजनेस टुडे के मैनेजिंग एडिटर सिद्धार्थ ज़राबी की.
बातचीत में बिनोद आनंद ने कहा कि फिलहाल भारत सरकार ने 23 फसलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित किया हुआ है. हो सकता है कि इन फसलों की संख्या बढ़ाई जाए! आनंद ने एमएसपी निर्धारण के फॉर्मूले को कटघरे में उठाते हुए कहा कि एमएसपी निर्धारण के लिए देश के 18 क्लाइमेट जोन में हर राज्य के 75 गांवों को शामिल किया जाता है. फिर हर फसल के सिर्फ 10 किसानों से बात की जाती है.
कुलमिलाकर देश में 14 हजार से कुछ ज्यादा किसानों का ही सर्वे किया जाता है. इस बातचीत की कोई वीडियो रिकॉर्डिंग नहीं होती और ना ही उसमें पारदर्शिता है. इस साल के नवंबर तक आने वाली एमएसपी कमेटी की रिपोर्ट में फसल विविधीकरण के आधार पर एमएसपी का निर्धारण होने की बात है.
ये भी पढ़ें- इंडिया टुडे ग्रुप का 'किसान तक' चैनल लॉन्च, केंद्रीय मंत्री परषोत्तम रूपाला ने किया उद्घाटन
इसके अलावा बिनोद आनंद ने कहा कि बाजार में जो मूल्य श्रृंखला बनी हुई है उसमें किसान की पहुंच कितनी है? क्या किसान जानते हैं कि कौनसी फसल को किस तरह से उगाएं और विदेशों में बेचने को लेकर क्या कॉन्ट्रेक्ट किया जाना है? किसान को इन सब बातों की जानकारी होनी चाहिए. किसानी अब सिर्फ कोई फसल उगाने भर की नहीं है बल्कि उसे सही बाजार में सही दाम में बेचने की भी है.
पंजाब राइस मिलर्स और एक्पोर्टर एसोसिएशन के अध्यक्ष अशोक सेठी ने कहा कि हमने सबसे पहले 1981 में पहला कंटेनर दुबई में भेजा था. आज हमारी तकरीबन 36 हजार करोड़ रुपये की एक्पोर्ट है. दुनिया के 160 देशों में बासमती चावल एक्पोर्ट किया जा रहा है. बासमती चावल की दुनिया में एक्सपोर्ट की 10-15 प्रतिशत तक ग्रोथ हर साल हो रही है. साल 2000 में हम सिर्फ 3.5 लाख टन एक्पोर्ट करते थे, लेकिन आज यह 45 लाख टन है.
सेठी ने कहा कि बासमती को दुनियाभर में पहुंचाने का श्रेय पंजाब की नदी और नहरों को जाता है क्योंकि नहरी क्षेत्रों में सबसे अच्छी किस्म का बासमती चावल उगाया जा रहा है. पंजाब के अमृतसर, तरनतारन और गुरुदासपुर हैं. वैसे भारत में 86 जिलों में बासमती उगाया जा रहा है.
ये भी पढ़ें- देश में कृषि को ही मुख्य बिंदु बनाकर चलना होगा, हमारे लिए खेती ही प्रमुख है: डॉ. रामबदन सिंह
द ग्रेट इंडियन एग्रीकल्चर मार्केट सेशन में बोलते हुए ऑल इंडिया राइस एक्पोर्टर एसोसिएशन के सीनियर एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर विनोद कौल ने कहा कि देश में बासमती चावल की कम से कम 15 प्रतिशत सालाना ग्रोथ हो रही है. हमारा एक्पोर्ट सात लाख टन से करीब 45 लाख टन पर पहुंचा है.
बासमती काफी हाई वैल्यू प्रोडक्ट है. भारत में जीआई रीजन में चावल का करीब 85-90 लाख टन का उत्पादन हो रहा है. विदेशों में हमारी फसल की गुणवत्ता के सवाल पर कौल ने कहा कि विदेशों में बड़ी-बड़ी जमीनें हैं. इससे कॉस्ट ऑफ इकोनॉमी अच्छी हो जाती हैं. इससे वहां का किसान फायदे में रहता है. एक ही खेत में कई तरह की फसलें की जाती हैं.
इसके उलट हमारे यहां बासमती का करीब 52 लाख एकड़ एरिया कवर होता है, लेकिन किसानों के पास औसत खेती दो एकड़ ही है. इस तरह करीब 25 लाख किसान बासमती खेती में शामिल हैं. इसीलिए छोटी जोत में बहुत फायदा कमाना थोड़ा मुश्किल भरा होता है. इसके समाधान में आज किसानों को बड़ी जमीनों पर एक साथ खेती करनी होगी.
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today