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पंजाब में क्यों बैन हुई धान की सबसे ज्यादा पैदावार देने वाली पूसा-44 क‍िस्म, जान‍िए वजह और खास‍ियत

पंजाब में क्यों बैन हुई धान की सबसे ज्यादा पैदावार देने वाली पूसा-44 क‍िस्म, जान‍िए वजह और खास‍ियत

PUSA-44: जल संकट बढ़ाने के ल‍िए पूसा-44 वैराइटी को घातक मान रही है पंजाब सरकार. सबसे ज्यादा द‍िन में तैयार होती है और सबसे ज्यादा पैदावार भी देती है यह क‍िस्म. कर्नाटक और केरल के ल‍िए 1994 में की गई थी र‍िलीज, फ‍िर पंजाब में कैसे हुई लोकप्र‍िय? इसे बनाने वाले कृष‍ि वैज्ञान‍िक ने द‍िया इस सवाल का जवाब. 

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पंजाब में क्यों लोकप्र‍िय है पूसा-44 धान. पंजाब में क्यों लोकप्र‍िय है पूसा-44 धान.

पंजाब सरकार ने एक अहम फैसला लेते हुए अपने यहां की सबसे लोकप्र‍िय धान की क‍िस्मों में से एक पूसा-44 को बैन कर द‍िया है. सूबे में अगले सीजन से इस वैराइटी के धान की खेती बंद हो जाएगी. पानी की ज्यादा खपत को इसे बैन करने की वजह बताया गया है. पंजाब भू-जल संकट का सामना कर रहा है, इसल‍िए वो इस तरह की क‍िस्मों को हतोत्साह‍ित कर रहा है ज‍िसमें पानी की खपत ज्यादा होती है. इस मुद्दे पर खुद सीएम भगवंत मान बयान देने के ल‍िए सामने आए. उन्होंने कहा कि वर्तमान सीजन में भी उनकी तरफ से पूसा-44 किस्म की बुवाई नहीं करने की अपील की गई थी, फिर भी कई किसानों ने इसकी खेती की है. इसलिए अगले सीजन से इस पर आध‍िकार‍िक तौर पर बैन रहेगा.  

अब सवाल यह है क‍ि आख‍िर यह क‍िस्म ज्यादा पानी की खपत कैसे करती है? दरअसल, धान की फसल औसतन 4 महीने यानी 120 द‍िन में तैयार हो जाती है. इसमें नर्सरी से लेकर कटाई तक का वक्त शाम‍िल होता है. लेक‍िन पूसा-44 को तैयार होने में 145 से 150 द‍िन का वक्त लगता है. इसल‍िए इसमें पानी की खपत ज्यादा होती है. जो क‍िस्म ज‍ितने अध‍िक द‍िन खेत में रहेगी उसमें पानी का खर्च ज्यादा होगा. हालांक‍ि, यह भी जानने वाली बात है क‍ि पूसा-44 अपने समय की सबसे ज्यादा पैदावार देने वाली धान की क‍िस्म है. इसल‍िए यह क‍िसानों के बीच लोकप्र‍िय है. 

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कर्नाटक-केरल के ल‍िए हुई थी र‍िलीज

बैन के एलान के बाद हमने इस वैराइटी की खोज करने वाले कृष‍ि वैज्ञान‍िक पद्मश्री विजय पाल सिंह से बात की. वो पूसा में प्रधान वैज्ञान‍िक रहे हैं. वो बासमती की सबसे लोकप्र‍िय क‍िस्म पीबी-1121 के खोजकर्ता भी हैं. 'क‍िसान तक' से बातचीत में डॉ. स‍िंह ने बताया क‍ि सेंट्रल वैराइटी र‍िलीज कमेटी (CVRC) ने पूसा-44 को 1994 में र‍िलीज क‍िया था. यह क‍िस्म कर्नाटक और केरल के ल‍िए जारी की गई थी. लेक‍िन संयोग देख‍िए क‍ि लोकप्र‍िय पंजाब में हो गई. दरअसल, केरल और कर्नाटक में इसकी सबसे ज्यादा पैदावार पाई गई थी. 

पूसा-44 पंजाब में क्यों हुई लोकप्र‍िय 

डॉ. स‍िंह के अनुसार पूसा-44 सुगंध‍ित चावल की क‍िस्म नहीं है. यह परमल कैटेगरी का चावल है. एक एकड़ में 35 से 40 क्व‍िंटल तक की पैदावार होती है. जब यह र‍िलीज हुई थी तो इतनी पैदावार क‍िसी दूसरी क‍िस्म के धान में नहीं थी. आज भी अध‍िकांश क‍िस्में इसके ज‍ितना पैदावार नहीं दे पाती हैं. सामान्य तौर पर धान की क‍िस्में 25 से 30 क्व‍िंटल प्रत‍ि एकड़ के बीच ही पैदावार देती हैं. हां, यह बात मानने में कोई संकोच नहीं है क‍ि इसे पकने में समय अध‍िक लगता है. 

अब सवाल यह है क‍ि पूसा-44 आख‍िर पंजाब में क्यों इतनी लोकप्र‍िय हो गई? डॉ. स‍िंह कहते हैं क‍ि इसकी एक वजह ज्यादा उत्पादन है. जबक‍ि दूसरा कारण यह है क‍ि मैकेन‍िकल हार्वेस्ट‍िंग यानी मशीन से कटाई के ल‍िए यह क‍िस्म फ‍िट है. पकने के बाद अगर महीने भर भी इसे न काटें तो यह क‍िस्म ग‍िरेगी नहीं. द‍िलचस्प बात यह भी है क‍ि यह क‍िस्म हर‍ियाणा के करनाल में ट्रायल के वक्त ही पंजाब पहुंच गई थी.

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अब नहीं तैयार होगा पूसा-44 का बीज 

अब राज्य सरकार द्वारा इस क‍िस्म के धान की खेती बैन करने के बाद सीड फार्म इसका बीज भी तैयार नहीं करेंगे. जिस प्रकार हरियाणा-पंजाब में साठी पर बैन है उसी तरह पंजाब ने अब पूसा-44 पर बैन लगा द‍िया है. सबसे लंबी अवधि वाली चावल की इस किस्म के उत्पादन को हतोत्साहित किया जाएगा. इस क‍िस्म की लोकप्र‍ियता का अंदाजा आप एक आंकड़े से लगा सकते हैं. 

पंजाब में 2021 के दौरान धान की खेती का कुल रकबा 77 लाख एकड़ था. ज‍िसमें से 12.5 लाख एकड़ में प्रीमियम बासमती लगा था. जबक‍ि 12 लाख एकड़ में पूसा-44 की खेती की गई थी. पूसा-44 की खेती पंजाब के मालवा क्षेत्र में बड़े पैमाने पर की जाती है. जिसमें संगरूर, बरनाला, मोगा और मनसा जिले शामिल हैं. यह पंजाब में उगाई जाने वाली धान की सबसे पुरानी किस्मों में से यह एक है.