पंजाब सरकार ने अभी तक इस सीजन में बोई जाने वाली धान की किस्मों का ऐलान नहीं किया है. खास कर उसने पूसा-44 किस्म के बारे में कुछ ही नहीं कहा है. इससे प्रदेश के किसानों की चिंता बढ़ गई है. किसान समझ नहीं पा रहे हैं कि आखिर वे इस बार कौन सी किस्म की बुवाई करें, क्योंकि पंजाब में धान की खेती का मौसम जून से शुरू होता है. लेकिन किसानों को काफी समय पहले ही बीज खरीदनी पड़ती है. क्योंकि उन्हें पहले धान की नर्सरी तैयार करनी होती है और फिर उसे खेतों में रोपना होता है. किसानों को धान की नर्सरी विकसित करने के लिए एक महीने का समय चाहिए और उम्मीद है कि यह 1 मई से शुरू हो जाएगा.
दैनिक ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक, पूसा-44 को 1993 में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) द्वारा विकसित किया गया. 1990 के दशक के अंत में इसे पंजाब में लोकप्रियता मिली. इसकी बेहतर उपज के कारण किसान इसकी ओर आकर्षित हुए और इसकी खेती का क्षेत्र तेजी से बढ़ा, जो राज्य के धान की खेती के लगभग 70-80 प्रतिशत क्षेत्र को कवर करता है. खास बात यह है कि पूसा-44 की परिपक्वता अवधि लंबी है. इसके पकने में लगभग 160 दिन लगते हैं, जो धान की अन्य किस्मों की तुलना में लगभग 35 से 40 दिन अधिक है. खेती की इस विस्तारित अवधि के लिए सिंचाई के पांच-छह अतिरिक्त चक्रों की आवश्यकता होती है और इससे घटते जल स्तर के बारे में चिंता बढ़ गई है. यह कम अवधि वाली धान की किस्मों की तुलना में लगभग 2 प्रतिशत अधिक पराली पैदा करता है.
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हालांकि, पंजाब में अभी गेहूं की कटाई जोरों पर चल रही है. ऐसे में किसानों को अपनी अगली फसल की योजना शुरू करने की जरूरत है, लेकिन वे सरकार द्वारा अनुशंसित की जाने वाली किस्मों के बारे में अनिश्चित हैं. भारतीय किसान यूनियन (उगराहां) के जिला अध्यक्ष चरण सिंह नूरपुरा ने कहा कि न तो सरकार ने इस सीजन में इस्तेमाल होने वाली धान की किस्मों के बारे में कोई घोषणा की है, न ही धान की बुआई की तारीख के बारे में कोई घोषणा की है. चूंकि राज्य में धान की बुआई अब चरणबद्ध तरीके से अलग-अलग तारीखों पर की जाती है, इसलिए इसकी तारीखों की भी घोषणा नहीं की गई है.
पूसा-44 किस्म के बारे में कोई निश्चित जानकारी नहीं है, क्योंकि पिछले साल इस खरीफ सीजन के लिए पानी की अधिक खपत करने वाली धान की फसल पूसा-44 किस्म की बुआई पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की गई थी. इस बारे में किसानों को अभी तक ठोस जानकारी नहीं मिल पाई है. उन्होंने कहा कि उन्हें इस किस्म के बारे में जानने की जरूरत है, जो राज्य में व्यापक रूप से बोई जाती है. भारतीय किसान यूनियन (लाखोवाल) के अध्यक्ष हरिंदर सिंह लाखोवाल ने कहा कि खेती कोई बच्चों का खेल नहीं है, बल्कि उचित योजना की जरूरत है.
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हरिंदर सिंह लाखोवाल ने कहा कि गेहूं की कटाई हो चुकी है और हमें अभी तक उन किस्मों के बारे में पता नहीं है जिनका उपयोग किया जा सकता है और न ही हम रोपाई की अवधि के बारे में जानते हैं. हमें समय पर बीज खरीदने की ज़रूरत है, क्योंकि नर्सरी विकसित करने में भी समय लगता है. सरकार को तारीखों और किस्मों की घोषणा करनी चाहिए, ताकि हम योजना बनाना शुरू कर सकें. भारतीय किसान यूनियन (उगराहां) के महासचिव सौदागर सिंह ने कहा कि सरकार के लिए किस्मों की घोषणा करने का यह सही समय है, ताकि किसान बीज खरीद सकें. उन्होंने कहा कि जब इसमें देरी हो जाती है तो विक्रेता भारी कीमत वसूलना शुरू कर देते हैं और इसे काले बाजार में भी बेच देते हैं.
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