इस बार भी नीचे रहेगी दालों की पैदावार, खुदरा भाव में गिरावट के आसार कम

इस बार भी नीचे रहेगी दालों की पैदावार, खुदरा भाव में गिरावट के आसार कम

अधिक बारिश और मुरझा रोग (wilt disease) की वजह से दाल उत्पादक राज्यों में पैदावार गिरने की आशंका जताई गई है. पैदावार गिरने से दालों की आयात बढ़ाने की नौबत आएगी. एक अनुमान के मुताबिक, इस साल सरकार को 10 लाख टन से अधिक दालों का आयात करना होगा. पैदावार गिरने और आयात बढ़ने से घरेलू बाजार में दालों के भाव बढ़ने की संभावना बनेगी.

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इस बार भी नीचे रहेगी दालों की पैदावार, खुदरा भाव में गिरावट के आसार कमदेश में तुर और उड़द दाल की पैदावार घटने की आशंका है (फोटो साभार-Unsplash)

देश में दाल की पैदावार चिंता की वजह बनी हुई है. दाल की जिस हिसाब से खपत होती है, वैसी पैदावार नहीं मिल रही. इससे दालों की कमी देखी जा रही है. इस कमी को दूर करने के लिए सरकार को विदेशों से दाल आयात करना पड़ रहा है. इन आयातीत दालों का भाव घरेलू बाजार में बहुत अधिक न बढ़े, इसके लिए सरकार ने कुछ इंतजाम किए हैं. मसलन, आयात पर किसी तरह का प्रतिबंध नहीं है और इस पर कोई टैक्स (ड्यूटी फ्री इंपोर्ट) भी नहीं लगाया गया. इससे दालों का आयात आसान बना है और दाम कुछ नियंत्रण में चल रहे हैं. लेकिन आगे स्थिति बहुत अच्छी नहीं दिख रही है क्योंकि मुख्य दाल जैसे तुर की पैदावार गिरने की आशंका है.

खाद्य मंत्रालय के अंतर्गत खाद्य और जनवितरण विभाग के सचिव रोहित कुमार की मानें तो खरीफ सीजन 2022-23 के दौरान तुर दाल की पैदावार घटेगी. वे बताते हैं कि खरीफ सीजन में तुर दाल की उपज 32-33 लाख टन रहने की संभावना है जबकि पहले इसका अनुमान 38.9 लाख टन बताया गया था. अगर ऐसा होता है तो छह से सात लाख टन कम तुर दाल की पैदावार होगी. पैदावार में कमी की दो वजहें बताई गई हैं- दाल उत्पादक राज्यों में अधिक बारिश और मुरझा रोग से फसलों का नुकसान.

दालों के रोग बड़ी समस्या

अधिक बारिश और मुरझा रोग (wilt disease) की वजह से दाल उत्पादक राज्यों में पैदावार गिरने की आशंका जताई गई है. पैदावार गिरने से दालों की आयात बढ़ाने की नौबत आएगी. एक अनुमान के मुताबिक, इस साल सरकार को 10 लाख टन से अधिक दालों का आयात करना होगा. पैदावार गिरने और आयात बढ़ने से घरेलू बाजार में दालों के भाव बढ़ने की संभावना बनेगी. मौजूदा समय में भी यही स्थिति देखी जा रही है. 

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पैदावार घटने की आशंका केवल तुर दाल में ही नहीं बल्कि उड़द दाल का यही हाल रहेगा. इसमें भी खराब मौसम और अधिक बारिश को असली कारण बताया जा रहा है. इससे दालों के दाम में अचानक बड़ा उछाल न आए, उसके लिए सरकार ने हाल में बड़ा फैसला लिया और तुर, उड़द दाल के ड्यूटी फ्री आयात को मार्च 31, 2024 तक बढ़ा दिया है. इससे दाम काबू में रहने की उम्मीद है, लेकिन भाव में गिरावट की बहुत अधिक उम्मीद नहीं कर सकते.

क्या कर सकते हैं किसान

अगर देश में दालों की पैदावार बढ़ानी है, तो किसान ही इसमें आगे आ सकते हैं. सरकार दालों की पैदावार बढ़ाने के लिए किसानों को प्रोत्साहित कर रही है. किसानों की असली समस्या बेमौसम बारिश और दालों में लगने वाला मुरझा या उकठा रोग है जिससे फसलें मारी जा रही हैं. उकठा रोग से अगर फसलों को बचाया जा सके, तो पैदावार में बढ़ोतरी की जा सकती है. उकठा रोग से दाल का पौधा सूख कर गिर जाता है और जड़े पूरी तरह से सड़ जाती हैं.

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इससे बचाव के लिए जिस खेत में उकठा रोग लगा हो, उसकी जुताई कुछ गहराई तक करनी चाहिए. अगर हो सके तो उस खेत में तीन-चार साल तक दालों की खेती नहीं करनी चाहिए. खेत में बायोपेस्टीसाइड (जैव कवक नाशी) ट्राइकोरमा बिरडी 1 प्रतिशत डब्लू.पी. या ट्राइकोडरमा हारजिएनम 2 प्रतिशत डब्लू.पी. की 2.5 किलो प्रति हेक्टेयर 60-75 किलो सड़े हुए गोबर की खाद में मिलाकर डालना चाहिए. यह विधि मसूर की खेती के लिए सबसे उपयुक्त है.

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