एक्सपोर्ट की जाने वाली किसी भी सब्जी को बोरों में भरा और उसके बाद सी-पोर्ट से उसे मंजिल की तरफ रवाना कर दिया. अगर आप सब्जियों को इस तरह से एक्सपोर्ट करने के बारे में सोचते हैं तो ऐसा बिल्कुल नहीं है. आलू हो या दूसरी हरी सब्जी, सभी को एक्सपोर्ट किए जाने का अपना एक तरीका है. ऐसा ही एक तरीका आलू एक्सपोर्ट करने के दौरान अपनाया जाता है. जिस तरह से हम और आप सब्जी मंडी में प्लास्टिक के बोरों में आलू रखा हुआ देखते हैं यह तरीका तो एक्सपोर्ट के दौरान बिल्कुल ही नहीं अपनाया जाता है.
आलू हो या दूसरी तरह की सब्जी या फिर पशु-पक्षी, सभी को एक्सपोर्ट किए जाने से पहले क्वारंनटाइन सर्टिफिकेट की जरूरत होती है. अगर इसमे से किसी का भी सर्टिफिकेट नहीं है तो उसे शिप पर नहीं चढ़ाया जाएगा. सर्टिफिकेट लेने का तरीका यह है कि एक एक्सपर्ट टीम आलू या ऊपर बताए गए नाम में से किसी की भी जांच करेगी. जांच के बाद सर्टिफिकेट देते हुए यह बताया जाएगा कि जो चीज एक्सपोर्ट की जा रही है उसमे किसी भी तरह की कोई बीमारी नहीं है.
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भारत की मंडियों में सप्लाई होने वाले आलू के एक बोरे का वजन 50 किलो होता है. यह बहुत ही सस्ती कीमत पर प्लास्टिक से बना एक बोरा होता है. एक बार इस्तेमाल के बाद यह दोबारा इस्तेमाल करने लायक नहीं बचता है. जिस पैकेट में आलू एक्सपोर्ट होता है वो एक खास तरीके से बना होता है. इस एक पैकेट की कीमत 25 रुपये होती है. पैकेट में आलू भरने के बाद पैकेट की सिलाई की जाती है. एक पैकेट को सिलने का एक रुपये चार्ज किया जाता है.
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आलू एक्सपोर्टर युवराज परिहार ने बताया कि आलू एक्सपोर्ट करने के दौरान प्रति एक किलो आलू 7 रुपये का खर्च होता है. आगरा से मुम्बई और कोलकाता बंदरगाह तक आलू भेजने का खर्च 650 रुपये प्रति कुंतल लगता है. 15 रुपये पैकेट लोडिंग के लिए जाते हैं. भारत से दूसरे देशों को सी-पोर्ट से भेजने का खर्च प्रति टन 28 सौ से 66 सौ रुपये आता है. आलू एक्सपोर्ट के दौरान कस्टम ड्यूटी भी लगती है. जैसे नेपाल भेजने पर 10 फीसदी, बंगलादेश 12 फीसदी, दुबई 18 फीसदी, श्रीलंका 12 फीसदी, यूएई 18 फीसदी, शारजहां 18 फीसदी, और रशिया भेजने 18 फीसदी कस्टम ड्यूटी चार्ज की जाती है.
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