देश के अलग-अलग इलाकों में खाने के लिए अपनी पसंद के हिसाब से मछली की ब्रीड चुनी जाती है. अगर नॉर्थ इंडिया की बात करें तो फिश करी के लिए खासतौर पर रोहू, कतला और नैनी बड़े ही चाव से खाई जाती है. वहीं फिश फ्राई के लिए पंकजा मछली की बहुत डिमांड रहती है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि हमारे खाने लायक डेढ़ से दो किलो वजन की मछली कितने दिन में तैयार होती है. किस तरह एक मछली को खाने लायक तैयार किया जाता है. इस खबर में हम आपको हैचरी से लेकर तालाब का सफर तय करने तक के बारे में बताएंगे.
नदी-समुंद्र में मछलियां खुद से तो पलती ही हैं, लेकिन इसके अलावा तीन और तरीके से मछलियों को पालकर अच्छी इनकम की जा सकती है. जाल लगाकर,घर-खेत में टैंक बनाकर और तालाब खोदकर. सबसे बेहतर तालाब में मछली पालन माना गया है. कम खर्च में ज्यादा मछलियां पल जाती हैं.
आगरा के मछली पालक शरीफ खान बताते हैं कि मछली पालने के लिए कोलकाता और आंध्रा प्रदेश के अलावा और दूसरी जगहों की हैचरी से भी बीज लाया जाता है. वैसे तो बीज तीन तरह का होता है. लेकिन सबसे ज्यादा जीरा साइज बीज बिकता है. इसके एक-एक हजार बीज के पैकेट आते हैं. इस बीज को आप सीधे लाकर तालाब में भी डाल सकते हैं. लेकिन ऐसा करने पर बीज का सक्सेज रेट बहुत ही कम 25 फीसद तक होता है.
मछली पालक शरीफ ने बताया कि अगर आप हैचरी से बीज लाकर पहले उसे नर्सरी में डालते हैं तो वो 35 से 40 फीसद तक कामयाब रहता है. तीन से छह महीने तक आप बीज को नर्सरी में रख सकते हैं. इस दौरान जीरा साइज का बीज फिंगर साइज या फिर 100 ग्राम तक का हो जाता है. इस साइज के बीज को आप फिर तालाब में ट्रांसफर कर सकते हैं. नर्सरी में रखने के दौरान बीज को सरसों की खल और चावल के छिलके का चूरा खिलाया जाता है.
शरीफ खान का कहना है कि अगर तालाब में पानी की आपने उचित देखभाल की है. मछलियों में बीमारी नहीं पनपने दी है. मछलियों में फुर्ती लाने के लिए आपने जाल चलवाया है और भैंसें भी तालाब में उतरवाई हैं तो रोहू, कतला और नैनी ब्रीड जैसी मछलियां 18 महीने में डेढ़ से दो किलो वजन तक की हो जाती हैं. और दिल्ली-एनसीआर में इस वजन की मछलियां खासतौर पर पसंद की जाती हैं.
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