अरहर खरीफ की मुख्य दलहनी फसल है. बुंदेलखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल में अरहर की खेती मुख्य रूप से की जाती है. इसकी बुवाई साल में दो बार की जाती है. एक बार मध्य जून से मध्य जुलाई तक और दूसरी बार सितंबर के महीने में की जाती है. देश में अरहर की औसत उपज 6.8 क्विंटल/हेक्टेयर है, जो काफी कम है. ऐसे में अरहर की उपज को बढ़ाने के लिए किसान सितंबर में बोई जाने वाली फसलों में कुछ खादों का इस्तेमाल कर सकते हैं. इसके लिए सही मात्रा का ज्ञान होना बहुत जरूरी है.
अरहर की खेती में प्रति हेक्टेयर मिट्टी में लगभग 20 किलोग्राम नाइट्रोजन, 45-60 किग्रा फास्फोरस, 40 किग्रा सल्फर और 25 किग्रा जिंक सल्फेट की जरूरत होती है. यदि मिट्टी का टेस्ट नहीं कराया जा सकता है तो बुवाई के समय 100 किग्रा डीएपी या 250 किग्रा सिंगल सुपर फास्फेट देना सही रहेगा. जरूरी नाइट्रोजन डीएपी के प्रयोग से मिट्टी की उपजाऊ क्षमता पाई जा सकती है, लेकिन सल्फर के लिए खेत तैयार करते समय 200 किग्रा जिप्सम प्रति हेक्टेयर प्रयोग करना सही रहता है.
सुपर फास्फेट के प्रयोग से सल्फर की पूर्ति खुद हो जाती है. नाइट्रोजन के लिए बुवाई के समय 40 किग्रा यूरिया का प्रयोग करना जरूरी है. ज्वार/बाजरा के साथ मिश्रित खेती की स्थिति में खड़ी फसल में 40-45 किग्रा यूरिया अतिरिक्त प्रयोग करें. जिंक की कमी वाले क्षेत्रों में 20-25 किग्रा प्रयोग करें. जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई के समय प्रयोग करें.
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खरपतवारनाशक रसायन पेंडीमेथालिन 30 ईसी (स्टैम) 3 लीटर या एलाक्लोर (लासो) 4 लीटर को 800 लीटर पानी में घोलकर बुवाई के तुरंत बाद, समतलीकरण के बाद और अंकुरण से पहले छिड़काव करें या खरपतवारों को नियंत्रित करने के लिए बुवाई के 30 दिन बाद 800 लीटर पानी में 2 लीटर एट्राजीन 50 प्रतिशत वेटेबल पाउडर मिलाकर छिड़काव करें.
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देर से पकने वाली किस्मों को दिसंबर के अंत से फरवरी के दूसरे पखवाड़े तक पाले से नुकसान पहुंचने की अधिक संभावना होती है. ऐसी स्थिति में खेत के चारों ओर धुआं करके या फसल की सिंचाई करके नुकसान से बचा जा सकता है. शोध के नतीजों से पता चला है कि 0.1 प्रतिशत सल्फ्यूरिक एसिड (1 मिली प्रति लीटर पानी) के घोल का छिड़काव करने से फसल 15 दिनों तक सुरक्षित रहती है. इससे पैदावार में भी 5-10 प्रतिशत की वृद्धि होती है.
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