अरहर हमारे देश की प्रमुख दलहनी फसल है जो मुख्य रूप से खरीफ मौसम में उगाई जाती है. दालों के उत्पादन के साथ-साथ यह फसल मिट्टी के अंदर नाइट्रोजन को जमा करने का काम करती रहती है जिससे मिट्टी की उर्वरता भी बेहतर होती है. अरहर की बुवाई शुष्क क्षेत्रों में किसानों द्वारा अधिक की जाती है. असिंचित क्षेत्रों में इसकी खेती फायदेमंद साबित हो सकती है क्योंकि इसकी गहरी जड़ और उच्च तापमान की वजह से पत्तियों को मोड़ने के गुण के कारण यह सूखे क्षेत्रों में सबसे उपयुक्त फसल है. यानी सूखा पड़ने पर भी यह फसल अच्छी उपज दे जाती है.
अरहर की दाल में लगभग 20-21 प्रतिशत प्रोटीन पाया जाता है. यही कारण है कि बाजार में दलों की मांग हमेशा बनी रहती है. ऐसे में अगर आप भी अरहर की खेती कर अधिक मुनाफा कमाना चाहते हैं तो FIR विधि का इस्तेमाल कर सकते हैं. क्या है FIR विधि आइए जानते हैं.
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फसल की बुवाई से पहले किसानों को बीज उपचार करने की सलाह दी जाती है. कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि अगर किसान फसल से सही उत्पादन और अच्छी क्वालिटी चाहते हैं तो उन्हें फसल की बुवाई से पहले बीजों का उपचार करना चाहिए. ऐसे में FIR विधि बहुत ही आसान और सस्ता उपचार है. इसे किसान बीज टीकाकरण कहते हैं. यानी जब पौधे खेतों में लगाए जाएं तो उन पर कीटों और बीमारियों का हमला कम से कम हो सके. इसके लिए आप अरहर के बीज को FIR विधि से उपचारित कर सकते हैं. FIR विधि में बीजों को फफूंदनाशक से उपचारित किया जाता है, फिर कीटनाशक से बीज को उपचारित करते हैं और बाद में (बुवाई के दिन) राइजोबियम कल्चर से बीजों को उपचारित करते हैं. जिसका असर फसल उत्पादन और क्वालिटी पर दिखाई देता है.
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अरहर की बुवाई बारिश शुरू होते ही कर देनी चाहिए. आमतौर पर बुवाई जून के आखिरी सप्ताह से जुलाई के पहले सप्ताह तक करनी चाहिए. जल्दी पकने वाली किस्मों के लिए 25-30 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर और मध्यम पकने वाली किस्मों के लिए 12 से 15 किलोग्राम बीज प्रति 6 हेक्टेयर बोना चाहिए. जल्दी पकने वाली किस्मों के लिए पंक्तियों के बीच की दूरी 30 से 45 सेमी और मध्यम और देर से पकने वाली किस्मों के लिए 60 से 75 सेमी होनी चाहिए. कम अवधि वाली किस्मों के लिए पौधों के बीच की दूरी 10-15 सेमी और मध्यम और देर से पकने वाली किस्मों के लिए 20 - 25 सेमी होनी चाहिए.
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