भारत में काली मिर्च का उत्पादन इस साल कम होने की संभावना जताई जा रही है. सरकार के पहले अग्रिम अनुमान के अनुसार, 2024-25 में काली मिर्च का उत्पादन पिछले साल 1,26,000 टन के मुकाबले 38 प्रतिशत कम, यानी लगभग 78,000 टन रहने की संभावना है. इसका मुख्य कारण काली मिर्च के रकबे में कमी और मौसम की अनुकूल परिस्थितियों का अभाव बताया जा रहा है.
सरकार का अनुमान है कि इस वर्ष काली मिर्च का रकबा 3.13 लाख हेक्टेयर से घटकर 2.55 लाख हेक्टेयर तक सीमित रह सकता है. इस स्थिति में काली मिर्च की कमी से कीमतों में वृद्धि का अनुमान है, जो घरेलू बाजार और निर्यात दोनों को प्रभावित कर सकती है.
कर्नाटक और केरल जैसे प्रमुख उत्पादक राज्यों में काली मिर्च की कीमतें पहले ही 700 रुपये प्रति किलोग्राम को पार कर चुकी हैं. भारतीय मिर्च एवं मसाला व्यापार संघ के निदेशक किशोर शामजी ने 'बिजनेसलाइन' को इस स्थिति का हवाला देते हुए कहा कि जलवायु परिवर्तन के कारण खेती पर प्रतिकूल असर पड़ा है, जिससे उत्पादन में कमी आई है.
इसके साथ ही, कृषि विभाग और मसाला बोर्ड ने काली मिर्च के बचे हुए स्टॉक का अनुमान 50,000 टन बताया है, जिससे घरेलू बाजार में उपलब्धता 1,25,000 टन हो जाती है. हालांकि, यह भी ध्यान देने वाली बात है कि यदि उत्पादन में और गिरावट आती है, तो घरेलू बाजार में इसकी उपलब्धता और भी सीमित हो सकती है.
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हाल ही में, वित्त मंत्रालय ने काली मिर्च उत्पादकों, किसानों और बागान मालिकों को जीएसटी से छूट देने की मंजूरी दी है. यह छूट तब लागू होगी जब वे अपने उत्पाद को अंतरराज्यीय व्यापार के माध्यम से उत्तर भारतीय उपभोक्ता बाजारों में भेजेंगे.
इस फैसले का असर कर्नाटक में कीमतों पर पड़ा, और काली मिर्च की कीमतें तेजी से बढ़कर 1725 रुपये प्रति किलोग्राम तक पहुंच गईं. इससे केरल में भी कीमतों में बढ़ोतरी देखने को मिली. इस प्रकार की सरकारी पहल से उत्पादकों को कुछ राहत मिल सकती है, लेकिन उत्पादन में कमी की वजह से कीमतों में और वृद्धि हो सकती है.
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काली मिर्च का उत्पादन केवल भारत तक सीमित नहीं है. वैश्विक स्तर पर, 2024-25 में काली मिर्च का उत्पादन पिछले वर्ष के 4,84,000 टन से घटकर 4,80,000 टन रहने का अनुमान है.
वियतनाम, जो काली मिर्च का सबसे बड़ा उत्पादक है, वहां उत्पादन 1,83,000 टन से घटकर 1,80,000 टन रहने की संभावना है. भारत का उत्पादन भी लगभग 50,000-52,000 टन तक सीमित रह सकता है, जो पिछले वर्ष के 55,000-57,000 टन से कम है. इसके अलावा, ब्राजील में उत्पादन में वृद्धि देखी जा सकती है, जहां उत्पादन 70,000 टन से बढ़कर 82,000-85,000 टन होने की उम्मीद है.
भारत, श्रीलंका और इंडोनेशिया में काली मिर्च की फसल में कमी आई है, और यह वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला को प्रभावित कर सकता है. भारत में उत्पादन में लगभग 20-25 प्रतिशत की कमी आई है, जबकि श्रीलंका में यह आंकड़ा 25-30 प्रतिशत तक पहुंच सकता है.
किसी भी देश के उत्पादन में कमी का असर न केवल घरेलू बाजारों पर पड़ता है, बल्कि वैश्विक मसाला उद्योग भी इससे प्रभावित होता है. खासकर, भारत जैसे बड़े उत्पादक से अन्य देशों की आपूर्ति पर असर पड़ सकता है, जिससे अंतरराष्ट्रीय कीमतों में वृद्धि हो सकती है.
2024-25 में काली मिर्च का उत्पादन कम होने की संभावना से घरेलू और वैश्विक बाजारों में कीमतों में वृद्धि हो सकती है. जलवायु परिवर्तन, रकबे में कमी और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में खलल जैसे कारण इसके लिए जिम्मेदार हैं. हालांकि, सरकार द्वारा जीएसटी छूट जैसे कदम कुछ राहत दे सकते हैं. फिर भी उत्पादन में कमी से उपभोक्ताओं को उच्च कीमतों का सामना करना पड़ सकता है.
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