एरोबिक खेती के लिए बेस्ट है धान की राजेंद्र नीलम किस्म, बिना पानी के होती है बुवाई

एरोबिक खेती के लिए बेस्ट है धान की राजेंद्र नीलम किस्म, बिना पानी के होती है बुवाई

एरोबिक चावल की खेती एक कृषि तकनीक है जिसमें चावल की फसल को सूखे या पानी से भीगे बीजों का उपयोग करके सीधे, बिना किसी बाधा वाले, बिना पानी वाले खेतों में लगाया जाता है. एरोबिक चावल उगाने की मानक विधि सीधे बीज बोने के माध्यम से होती है, ठीक वैसे ही जैसे हम गेहूं या मक्का जैसी अन्य अनाज फसलों के लिए अपनाते हैं.

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एरोबिक खेती के लिए बेस्ट है धान की राजेंद्र नीलम किस्म, बिना पानी के होती है बुवाईएरोबिक विधि से करें धान की खेती

एरोबिक विधि का इस्तेमाल चावल की खेती के लिए किया जाता है. जिसमें चावल की फसल को सीधे सूखे या पानी से लथपथ बीजों का उपयोग करके बिना कीचड़ वाले, बिना बाढ़ वाले यानी पानी से भरे खेतों में लगाया जाता है. एरोबिक चावल उगाने की मानक विधि सीधे बीज बोने के माध्यम से होती है. ठीक वैसे ही जैसे हम गेहूं या मक्का जैसी अन्य अनाज फसलों के लिए करते हैं. यह मेहनत और पानी के उपयोग को कम करने के सबसे प्रभावी तरीकों में से एक है. उच्चभूमि किस्मों के सूखा-प्रतिरोधी गुणों को निम्नभूमि किस्मों के उच्च उपज वाले गुणों के साथ मिलाकर, एरोबिक चावल की खेती की जाती है. इसी कड़ी आज हम बात करेंगे एरोबिक खेती के लिए क्यों बेस्ट है धान की राजेंद्र नीलम किस्म और बिना पानी कैसे होती है इसकी बुवाई.

इस किस्म की खासियत

राजेंद्र नीलम की बुवाई के लिए प्रति हेक्टेयर 20-25 किलोग्राम बीज की जरूरत होती है. इसकी बुवाई का सही समय 20 जून से 10 जुलाई है. इस किस्म की सीधी बुवाई की जाती है. आपको बता दें कि यह किस्म एरोबिक खेती के लिए सबसे उपयुक्त है.

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कम पानी में करें खेती

राजेंद्र नीलम धान की एक ऐसी किस्म है जो दो से तीन सिंचाई में ही तैयार हो जाती है. इससे 40 प्रतिशत पानी और लागत दोनों की बचत होगी. धान की सामान्य किस्मों को तैयार होने के लिए सात से आठ बार सिंचाई की आवश्यकता होती है. राजेंद्र नीलम किस्म की फसल 105 से 110 दिनों में तैयार हो जाती है. यह अधिक उपज देने वाली किस्म है. इसकी उपज 40 से 45 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. इसकी ऊंचाई 100 सेंटीमीटर है.

ऐसे करें जल प्रबंधन

खेत में हल्की सिंचाई करके मिट्टी में नमी बनाए रखें. इससे पौधों की जड़ों में पर्याप्त वायु संचार होता है. पौधों की जड़ें और ताना अधिक विकसित होती हैं. पोषक तत्वों की उपयोग क्षमता बढ़ती है. खेत में पर्याप्त नमी केवल बालियां निकलने और दाना भरने के समय ही बनाए रखें.

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