पशुओं के पोषण में और उनसे अधिक दूध लेने के लिए हरा चारा बहुत मायने रखता है. इसे देखते हुए किसानों को वैज्ञानिक तरीके से चारा उगाना बहुत जरूरी है. अक्सर देखा जाता है कि गर्मी के दिनों में चारे की भारी कमी हो जाती है. हालांकि जायद में उगाई जाने वाली कुछ फसलें हरे चारे की कमी को दूर करती हैं. इन फसलों में लोबिया, ज्वार, बाजरा, मक्का, मकचरी, ज्वार और कुल्थी शामिल हैं. इसके लिए किसानों को उन्नत किस्मों की बुआई करनी चाहिए. साथ ही खाद और उर्वरकों का प्रयोग, सिंचाई, पौध संरक्षण उपाय को भी ध्यान में रखना चाहिए.
इसे देखते हुए हरे चारे की सप्लाई के लिए हरा मक्का बहुत अच्छा विकल्प साबित हो सकता है. पशुओं को स्वादिष्ट हरा चारा मुहैया कराने के लिए मक्का की बुआई मध्य फरवरी से सितंबर तक उचित जल निकास वाली मिट्टी में कर सकते हैं. भरपूर हरा चारा पाने के लिए अफ्रीकन लांग विजय, पीएफएम-99-2 और एपीएम-8 मक्का की उन्नत किस्में हैं. इसके लिए बीज दर 40-50 किग्रा प्रति हेक्टेयर उपयुक्त है. बुआई 30-40 सेंमी की दूरी पर पंक्तियों में करनी चाहिए.
आईसीएआर के वैज्ञानिकों की दी गई सलाह के मुताबिक, बुआई से पहले 10 टन प्रति हेक्टेयर कंपोस्ट मिट्टी में अच्छी तरह से मिला देनी चाहिए.
बाकी मक्का के लिए नाइट्रोजन 80 किग्रा और फॉस्फोरस 40 किग्रा प्रति हेक्टेयर अनुशंसित है. नाइट्रोजन की आधी मात्रा और फॉस्फोरस की पूरी मात्रा बुआई के समय देनी चाहिए. मात्रा को बुआई के 30-40 दिनों बाद पंक्तियों में समान रूप से बुरकाव कर देनी चाहिए.
जायद मौसम में मक्का में जरूरत के अनुसार 3-4 सिंचाई उपयुक्त मानी जाती है. इसकी कटाई किस्म के अनुसार 60-70 दिनों में करनी चाहिए. हरे चारे की पैदावार 550-750 क्विंटल प्रति हेक्टेयर प्राप्त की जा सकती है. हरे चारे में क्रूड प्रोटीन की मात्रा 2.0 प्रतिशत होती है.
इसी तरह किसान हरे चारे के लिए ग्वार की फसल भी लगा सकते हैं. भारत में इसकी खेती अधिकांश रूप से शुष्क क्षेत्रों में की जाती है. इसकी खेती चारे के लिए सब्जी और हरी खाद के लिए की जाती है. ग्वार के गोंद को विदेश में निर्यात किया जाता है. ग्वार के दाने में 18 प्रतिशत प्रोटीन और 32 प्रतिशत रेशा पाया जाता है.
दुधारू पशुओं के लिए ग्वार का दाना बेहद पौष्टिक होता है. जब इसमें फूल और फलियां बनना शुरू हों, तब उसी समय कटाई कर पशुओं को खिलाना चाहिए. यह बरसात के दिनों में उगाई जाने वाली फसल है. पानी की बेहतर सुविधा होने पर इसे जायद में भी उगाया जा सकता है. इसकी खेती बलुई दोमट से दोमट मिट्टी में की जाती है. इसे 7.5 से 8.5 पी-एच मान की मिट्टी में सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है.
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