एक साल में प्याज की कीमतें लगभग दोगुनी हो गई हैं. सरकारी आंकड़ों के अनुसार प्याज की अखिल भारतीय खुदरा कीमत 29 नवंबर को 94.39% बढ़कर 57.85 रुपये प्रति किलोग्राम हो गई, जो एक साल पहले 29.76 रुपये प्रति किलोग्राम थीं. ऐसा तब हुआ जब भारत दुनिया में प्याज का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक बना हुआ है. हालिया कीमतों में बढ़ोत्तरी की वजह बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि बन गई है.
अगस्त के दूसरे सप्ताह में महाराष्ट्र के पिंपलगांव और लासलगांव थोक बाजारों में प्याज की कीमतें चढ़नी शुरू हो गई थीं. अक्टूबर में नवरात्रि की समाप्ति के ठीक बाद कुछ बाजारों में कीमतें 85 रुपये प्रति किलोग्राम को पार कर गईं. सरकार के हस्तक्षेप के बाद कुछ हफ्तों के लिए कीमतें स्थिर जरूर हुईं, लेकिन कुछ उत्पादक क्षेत्रों में भारी बारिश और ओलावृष्टि के बाद कीमतें फिर से बढ़ने लगी हैं.
अगस्त में प्याज की कीमतें बढ़ने के बाद नियंत्रण के लिए सरकार ने प्याज के निर्यात पर 40 फीसदी निर्यात शुल्क लगा दिया था. हालांकि, निर्यात के बड़े पैमाने पर अंडर इनवॉइसिंग ने शुल्क को कम कर दिया, जिससे सरकार को इसे खत्म करना पड़ा और 29 अक्टूबर से 31 दिसंबर के बीच प्याज पर 800 डॉलर प्रति मीट्रिक टन का न्यूनतम निर्यात मूल्य (MEP) लगाना पड़ा. घरेलू उपभोक्ताओं के लिए सस्ती कीमतों पर पर्याप्त उपलब्धता बनाए रखने के लिए ये उपाय किए गए थे.
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उपभोक्ता मामले विभाग देश भर के प्रमुख उपभोग केंद्रों में अगस्त के दूसरे सप्ताह से लगातार बफर स्टॉक से प्याज का निपटान कर रहा है और राष्ट्रीय सहकारी उपभोक्ता संघ (NCCF) और भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन महासंघ (NAFED) मोबाइल वैन के माध्यम से लोगो को 25 रुपये प्रति किलोग्राम कीमत पर आपूर्ति कर रहा है.
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कीमतों में ताजा उछाल महाराष्ट्र जैसे कुछ बड़े उत्पादक राज्यों में भारी बारिश और ओलावृष्टि के कारण है. बेमौसम बारिश से प्याज की फसल को भारी नुकसान हुआ है. इकनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार बारिश ने पूरे महाराष्ट्र में पुणे, नासिक, अहमदनगर और औरंगाबाद जैसे क्षेत्रों में अनुमानित 50,000 हेक्टेयर से अधिक प्याज की खड़ी फसल को प्रभावित किया है. बारिश के चलते फसल की आवक में देरी हुई, जो कीमतों के बढ़े रहने का कारण है.
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