जेनेटिकली मोटिफाइड(जीएम) सरसों के ट्रायल को पर्यावरणीय मंजरी मिलने के बाद देश का राजनीतिक पारा गरमाया हुआ है. इस बीच भारत में जन्मे नोबेल पुरस्कार विजेता वेंकी रामाकृष्णन ने जीएम फसलों का समर्थन किया है. शुक्रवार को एशियन कॉलेज ऑफ जर्नलिज्म में अपनी पुस्तक विमोचन के अवसर पर उन्होंने जीएम फसलों को भारत की संभावित खाद्य संकट का समाधान बताया है.उन्होंने कहा कि आम तौर पर लोग जीएम फसलों का विरोध करते हैं. क्योंकि बहुत से लोग महसूस करते हैं कि ये फसलें बड़े बहुराष्ट्रीय निगमों द्वारा उत्पादित की जाती है और इससे एक प्रकार की एकाधिकार प्रथा होती है.
उन्होंने अपने संबोधन में भारत में बढ़ती आबादी और कृषि पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के निपटने के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए जीएम फसलों के विकास पर ध्यान केंद्रित करने की सलाह दी. भारत सरकार भी कृषि संस्थान के सहायता से भारत में उपयोग के लिए जीएम फसलों की अपनी किस्मों भी बना सकते हैं.
रामाकृष्णन ने कहा कि जेनेटिक इंजीनियरिंग एक अच्छा विचार है क्योंकि फसलों को अधिक सूखा प्रतिरोधी या कीट सहिष्णु बनाने के लिए संशोधित किया जा सकता है. इसलिए कीटनाशकों या उर्वरकों का उपयोग कम से कम किया जा सकता है. आम फसलों में पोषण मूल्य भी जोड़ सकते हैं ताकि चावल, मोटे अनाज और गेहूं अलग-अलग संरचना के साथ अधिक पौष्टिक हो जाए. जीएम फसलों के लिए कई संभावनाएं हैं और यह बहुत फायदेमंद है.
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रामाकृष्णन ने कहा, आजादी से पहले भारत में सीवी रमन, जेसी बोस, एसएन बोस, मेघनाद साहा और होमी भाभा जैसे विश्व स्तरीय वैज्ञानिक पैदा हुए. आजादी के बाद कुछ समय तक यह प्रवृत्ति जवाहरलाल नेहरू की वजह से बनी रही. जिसकी विज्ञान में रुचि के कारण वित्त पोषण और कई विज्ञान संस्थानों का निर्माण हुआ.
जीएम (जेनेटिकली मॉडिफाइड ऑग्रेनिज्म फूड) को अगर आसान भाषा में समझा जाए तो इसका मतलब होता है कि किसी पेड़-पौधे या जीव के आनुवंशिक या प्राकृतिक गुण को बदलना. इसके तहत डीएनए या जीनोम कोड को बदला जाता है. बायोटेक्नोलॉजी के अंतर्गत जेनेटिक इंजीनियरिंग एक महत्वपूर्ण शाखा मानी जाती है.
जीएम फूड का मुख्य मकसद अनुवांशिक गुणों को बदलकर ऐसे गुण लाना है, जिससे मानव सभ्यता को फायदा हो. अब क्या यह फायदा पहुंचा रहा है. ऐसे सवाल का जवाब दुनियाभर के वैज्ञानिक ढूंढ रहे हैं. भारत में भी इस पर कई प्रयोग किए जा रहे हैं.
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