रबी सीजन की मुख्य फसल गेहूं की बुवाई का समय चल रहा है. हर किसान साथी चाहता है कि उसको अधिक से अधिक पैदावार मिले ताकि खेती से अच्छा मुनाफा मिले. लेकिन, ऐसा तब होगा जब अच्छी किस्मों के बीजों का चयन होगा और सही समय पर खाद-पानी मिलेगा. पूसा के कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों के लिए जारी एक एडवाइजरी में कहा है कि वे मौसम को ध्यान में रखते हुए, गेंहू की बुवाई के लिए तैयार खेतों में पलेवा तथा उन्नत बीज व खाद की व्यवस्था करें. पलेवे के बाद यदि खेत में ओट आ गई हो तो उसमें गेहूं की बुवाई कर सकते हैं.
सिंचित परिस्थितियों के लिए एचडी 3385, एचडी 3386, एचडी 3298, एचडी 2967, एचडी 3086, डीबीडब्ल्यू 370, डीबीडब्ल्यू 371, डीबीडब्ल्यू 372 और डीबीडब्ल्यू 327 की बुवाई कर सकते हैं. बीज की मात्रा 100 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर लगेगी. जिन खेतों में दीमक का प्रकोप हो उनमें क्लोरपाईरिफॉस 20 ईसी @ 5 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से पलेवा के साथ दें. नाइट्रोजन, फास्फोरस तथा पोटाश उर्वरकों की मात्रा 120, 50 व 40 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर होनी चाहिए.
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अधिक उपज लेने के लिए अच्छी किस्म का प्रमाणित गेहूं ही बोना चाहिए. अच्छे पैदावार के लिए बीज की गुणवत्ता को बनाए रखना बहुत जरूरी है. इसके लिए बीजोपचार करना चाहिए. बीज उपचार न किया जाए तो बहुत से रोगों के आक्रमण होने का खतरा बना रहता है. बुवाई से पहले प्रति किलोग्राम बीज को 2 ग्राम थाइरम या 2.5 ग्राम मैन्कोजेब या टेबुकोनोजोल 1 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज से उपचारित करना चाहिए.
कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक हाथों में रबर के दस्ताने पहनकर दवा के घोल को अच्छी प्रकार से बिजाई की पहली शाम को गेहूं में मिला दें. फफूंदनाशी या जीवाणुनाशी या परजीवियों का उपयोग करके उपचार कर सकते हैं. बीज उपचार करने के बाद गेहूं की फसल करनाल बंट और लूज स्मट जैसी बीमारियों से बच सकती है.
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