भारत कृषि प्रधान देश है. यहां की आधी से ज्यादा आबादी आज भी खेती पर निर्भर है. आज भी खेती मौसम के आधार पर की जाती है. मौजूदा समय की बात करें तो भारत के लगभग हर राज्य में मॉनसून की एंट्री हो चुकी है. ऐसे में यहां के ज्यादातर किसान धान की रोपाई में लगे हुए हैं. धान की रोपाई के लिए पानी की सबसे ज्यादा जरूरत होती है. जिसके कारण इसकी खेती ख़रीफ़ सीज़न यानी मॉनसून में की जाती है. इतना ही नहीं भारतीय कृषि भी नक्षत्रों पर भी निर्भर है. जी हां, भारत में आज भी ग्रह-नक्षत्रों को ध्यान में रखकर खेती की जाती है. धान की खेती कर रहे किसानों के लिए नक्षत्रों के खेल को समझना बहुत जरूरी है. यहां अलग-अलग नक्षत्रों में धान की अलग-अलग प्रक्रिया की जाती है. ऐसे में जानते हैं इन सभी नक्षत्रों के बारे में विस्तार से.
आकाश मंडल (Solar System) के 27 नक्षत्रों में आद्रा छठा नक्षत्र है जिसे जीवनदायी भी माना गया है. खेती-किसानी में इस नक्षत्र का खास महत्व है. इस नक्षत्र में धान की बुवाई की जाती है. ऐसे माना जाता है कि इस नक्षत्र के प्रवेश होते ही बारिश भी होती है जिस वजह से यह धान की खेती के लिए बेहद जरूरी है.
मान्यता के अनुसार आद्रा नक्षत्र से धान की खेती की शुरुआत हो जाती है. आद्रा नक्षत्र के बारे में महाकवि घाघ कहते हैं,"तपै मृगसिरा जोय तो बरखा पूरन होय" पुनः,"अम्बाझोर बहै पुरवाई,तौ जानौ बरखा रितु आई" यानी अगर अच्छी पुरवा हवा चली हो तो वर्षा भी अच्छी होती है. घाघ ने यह भी कहा है कि "चढ़त बरसे अदरा, उतरत बरसे हस्त बीच बरसे मघा, चैन करे गिरहस्थ."
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मान्यता के अनुसार आर्द्रा नक्षत्र में छठा नक्षत्र है और इसका गुरु राहु है. इस नक्षत्र से मिथुन राशि का निर्माण होता है इसलिए इस पर मिथुन राशि के गुरु बुध का प्रभाव भी देखा जाता है. कहा जाता है कि सूर्य के आर्द्रा नक्षत्र में प्रवेश करते ही वर्षा ऋतु यानी मॉनसून की शुरुआत हो जाती है. ऐसे में इस साल 22 जून से 6 जुलाई तक सूर्य आर्द्रा नक्षत्र में रहेगा और यह धान की खेती कर रहे किसानों के लिए बहुत जरूरी है.
मान्यता के अनुसार धान की खेती के लिए पूर्वाफाल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति, विशाखा और अनुराधा नक्षत्र महत्वपूर्ण हैं. कहा जाता है कि इन सात नक्षत्रों के बीच धान के पौधे का विकास अच्छी तरह से होता है. धान की खेती में बीज और खाद तो महत्वपूर्ण हैं ही, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण चीज है पानी. पानी के कारण धान का पौधा स्वस्थ रहता है और धान का दाना मजबूत होता है.
हस्त नक्षत्र को हथिया नक्षत्र भी कहा जाता है, यह नक्षत्र 16 दिनों का होता है। इसके 4 दिन को लोहा, 4 दिन को पीतल, 4 दिन को चाँदी और 4 दिन को सोना कहा जाता है. मान्यता के अनुसार हथिया नक्षत्र के अंतिम चरण में वर्षा हो जाये तो धान की उपज सोने के समान मूल्यवान हो जाती है. किसानों के लिए हथिया नक्षत्र में बारिश होना बहुत जरूरी है. अगर हथिया नक्षत्र में बारिश नहीं हुई तो धान के मरने की संभावना बढ़ जाती है.
स्वाति नक्षत्र धान के अंतिम चरण का नक्षत्र है. इस नक्षत्र में बारिश की जगह आसमान ओस की बारिश होती है. कहा जाता है कि धान को मजबूत और ताकतवर बनाने में ठंड एक महत्वपूर्ण कारक है. अगर ठंड ना पड़े तो इसका नकारात्मक असर धान की खेती पर दिखाई देता है.
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