तिलहन फसलों में अहम योगदान रखने वाले सरसों की कीमत में भारी गिरावट हुई है. राजस्थान की कोटा मंडी में इसका न्यूनतम दाम सिर्फ 3,601 रुपये प्रति क्विंटल रह गया है. इसका मतलब यह है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के मुकाबले 2,049 रुपये कम भाव पर किसान इसकी बिक्री कर रहे हैं. सरसों के दाम का इतना बुरा हाल तब है जब भारत खाद्य तेलों का बड़ा इंपोर्टर है और हम इस पर हर साल 1.41 लाख रुपये खर्च कर रहे हैं. अब सवाल यह है कि किसान अगर तिलहन फसल भी एमएमपी से 2 हजार रुपये प्रति क्विंटल कम दाम पर बेचेंगे तो फिर भारत इस मामले में आत्मनिर्भर कब और कैसे होगा
राष्ट्रीय कृषि बाजार (e-NAM) के अनुसार राजस्थान की ज्यादातर मंडियों में अधिकतम दाम भी एमएसपी से कम है. इससे एक बात तय है कि ऑनलाइन मंडी में किसानों को सही दाम नहीं मिल रहा है. सरसों राजस्थान की प्रमुख फसल है. देश का 48 फीसदी सरसों यहीं पैदा होता है. अगर यहीं के किसानों को एमएसपी भी नसीब नहीं होगा तो फिर कोई किसान क्यों इसकी खेती को बढ़ाएगा.
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साल 2020 से लेकर 2022 तक सरसों उत्पादन करने वाले किसानों को एमएसपी से अच्छा दाम मिल रहा था. इसलिए इस दौरान रकबा तेजी से बढ़ा. आमतौर पर देश में सरसों का रकबा 70 लाख हेक्टेयर होता था, जो पिछले तीन साल में बढ़कर 100 लाख हेक्टेयर के पार हो गया है. लेकिन अब खाद्य तेलों पर आयात शुल्क कम होने और पूरी सरकारी खरीद न किए जाने की वजह से दाम गिर गया है. अब किसान पछता रहे हैं कि उन्होंने सरसों की खेती क्यों की. जिन किसानों को तिलहन की खेती बढ़ाने के लिए पुरस्कार मिलना चाहिए था उन्हें सरकारी नीतियों की वजह से कम दाम का दंड मिल रहा है.
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