पश्चिम बंगाल के मालदा में मशरूम की खेती बढ़ाने के लिए जिला प्रशासन कलस्टर सिस्टम पर काम शुरू करने जा रहा है. किसानों को मशरूम की खेती की ट्रेनिंग बिल्कुल मुफ्त दी जाएगी. मालदा के जिलाधिकारी नितिन सिंघानिया ने कहा कि स्वयं सहायता समूहों के एक सौ महिला और पुरुष सदस्यों के साथ एक क्लस्टर पहले ही बनाया जा चुका है. इनमें से चुने गए दस किसानों को बीरभूम जिला भेजा जा रहा है. ये किसान वहां मुफ्त में मशरूम की खेती की ट्रेनिंग लेंगे और वापस आने के बाद अपने खेतों में मशरूम उगाएंगे.
इस पूरी योजना के बारे में मालदा के जिलाधिकारी ने कहा, "बीरभूम में मशरूम की खेती बहुत अच्छी होती है. सोमवार को मालदा जिले से किसानों को बीरभूम भेजा जा रहा है. दस किसानों की टीम उस जिले की मशरूम की खेती देखने जा रही है. हमारे मालदा जिले में भी खेती अच्छी होती है. किसान बेहतर खेती देखने के लिए बीरभूम से जाएंगे."
मालदा जिले में मशरूम की खेती कई साल पहले शुरू हुई थी. मशरूम की यह खेती आत्मनिर्भर महिलाओं की आय के मामले में एक नई दिशा दिखा रही है. प्रथम चरण में जिले के इंग्लिश बाजार प्रखंड प्रशासन की पहल पर 11 ग्राम पंचायत क्षेत्रों में मशरूम की खेती शुरू की गई. फिर जिले भर के अलग-अलग ग्राम पंचायत क्षेत्रों के स्वयं सहायता समूहों की महिला सदस्य अनायास मशरूम की खेती से जुड़ गई हैं.
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मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मालदा में एक प्रशासनिक बैठक में जिले में मशरूम की खेती पर जोर दिया. मुख्यमंत्री ने जिला प्रशासन को नि:शुल्क ट्रेनिंग देने के निर्देश दिए. साथ ही किसानों की टीम बनाकर मशरूम की खेती का विस्तार करने की पहल करने को कहा. जिलाधिकारी नितिन सिंघानिया ने मुख्यमंत्री के निर्देश पर अमल करते हुए किसानों और विशेषज्ञों के साथ बैठक की. बैठक के बाद किसानों के क्लस्टर बन गए हैं. एक सौ किसानों का चयन किया गया है और उनके साथ मिलकर मशरूम की इस खेती को पूरे जिले में फैलाने की पहल की गई है.
मालदा जिला प्रशासनिक भवन में बैठक के बाद किसानों ने कहा कि मशरूम का स्पॉन गेहूं के बीज से बनता है. गेहूं के बीजों में विभिन्न प्रकार के रसायनों को मिलाकर मशरूम के बीज तैयार किए जाते हैं. स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को बीज दिए जाते हैं. इसके बाद महिलाएं बताए गए तरीके से मशरूम उगाती हैं और कमाई करती हैं. एक ठंडे कमरे में घास, चूना और ब्लीचिंग पाउडर के मिश्रण को सिलेंडरों में फैलाया जाता है और उसके अंदर बीज बोए जाते हैं. बाद में इस बीज को प्लास्टिक में लपेट कर लटका दिया जाता है. उस मिक्सिंग सिलेंडर से डेढ़ महीने में ही मशरूम अंकुरित हो जाता है. अगर मशरूम खाने योग्य है तो उसे काटकर बेचा जाता है. इस मशरूम की खेती से आर्थिक लाभ अच्छा होता है.
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जिलाधिकारी नितिन सिंघानिया ने कहा, मशरूम में बहुत अधिक पोषण तत्व होता है. जिले में मशरूम उत्पादन में भी सुधार हो रहा है. हम खेती देखने बीरभूम भेज रहे हैं. एक क्लस्टर बन चुका है और उसकी ट्रेनिंग जल्द ही शुरू होगी.
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