मध्य प्रदेश में न्यूनतम मर्थन मूल्य (एमएसपी) से ज्यादा गेहूं का रेट खुले बाजार और मंडियों है. ऐसे में किसान सरकारी क्रय केंद्र पर गेहूं बेचने के बजाए खुले बाजार में अपनी उपज बेचना पसंद कर रहे हैं. इससे किसानों की अच्छी कमाई हो रही है. वहीं, सरकारी क्रय केंद्र में उपज की आवक कम होने से गेहूं खरीदी भी अभी तक बहुत कम हुई है. कहा जा रहा है कि 15 मई तक 80 लाख मीट्रिक टन गेहूं के लक्ष्य के मुकाबले सरकारी खरीद केंद्रों ने महज 42 लाख मीट्रिक टन उपज खरीदी थी. हालांकि, सरकारी केंद्रों पर गेहूं की खरीद 15 मार्च से शुरू हो गई थी और 20 मई तक जारी रहेगी.
फ्री प्रेस जर्नल रिपोर्ट के मुताबिक, किसानों का मानना है कि खुले बाजार में गेहूं बेचने से उन्हें तुरंत भुगतान मिल रहा है, जबकि अगर वे सरकारी क्रय केंद्रों पर अपनी उपज बेचते हैं तो उन्हें भुगतान पाने के लिए 10 या उससे अधिक दिनों तक इंतजार करना पड़ता है. एक किसान ने कहा कि चूंकि मंडियों, खुले बाजार और सरकारी क्रय केंद्रों की दरें लगभग समान थीं, इसलिए हमने अपनी उपज बेचने के लिए खुले बाजार का विकल्प चुना. विदिशा जिले के मूडरा गांव के किसान नारायण ने फ्री प्रेस को बताया कि मंडी में दरें आकर्षक थीं और सरकारी क्रय केंद्रों पर दी जाने वाली कीमत के लगभग बराबर थीं. इसलिए किसान अपनी उपज बेचने के लिए मंडी या खुले बाजार में जाना पसंद करते हैं, जहां उन्हें बिना किसी देरी के भुगतान मिल जाता है.
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नारायण ने खुद 100 क्विंटल गेहूं मंडी में बेचा है. उन्होंने आगे कहा कि जहां तक सरकारी खरीद के प्रति किसानों का विश्वास खत्म होने की बात है, उसका मुख्य कारण भुगतान में देरी होना है. इसके अलावा ऐसे मामले भी हैं जिनमें समितियों ने किसानों पर किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) ऋण न होने पर भी गेहूं के बिक्री मूल्य से पैसा काट लिया है. यह भी पता चला है कि बेमौसम बारिश को देखते हुए किसान अपनी उपज मंडियों और खुले बाजारों में बेचने के लिए दौड़ पड़े.
भारतीय किसान संघ के प्रांत प्रचार प्रमुख राहुल धूत ने कहा कि सरकार ने देर से गेहूं की खरीद शुरू की और यही कारण है कि बड़ी संख्या में किसानों ने अपना गेहूं खुले बाजार में बेचने का फैसला किया. जिन किसानों ने केसीसी ऋण लिया है, उन्हें 31 मार्च तक पैसा चुकाना होगा और यदि सरकारी खरीद 20 मार्च तक शुरू होती है और भुगतान दस दिन से पहले तय हो जाता है, तो किसान को केसीसी ऋण पर ब्याज का भुगतान करना होगा. इसलिए किसानों ने अपना गेहूं मंडी या खुले बाजार में बेचा.
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इसके अलावा शादियों का सीजन भी था और अगर घर में कोई शादी हो तो किसान गेहूं क्रय समितियों से भुगतान पाने के लिए ज्यादा देर तक इंतजार नहीं कर सकते थे. यह भी एक बड़ा कारण था कि किसान अपनी उपज खुले बाज़ार में बेचते थे. धूत ने दावा किया कि एक मोटे अनुमान के मुताबिक 60 फीसदी गेहूं खुले बाजार में चला गया. इसके अलावा, पहले सरकार ने 2700 रुपये प्रति क्विंटल पर गेहूं खरीदने की घोषणा की थी, लेकिन बाद में वह पीछे हट गई और 2400 रुपये प्रति क्विंटल की दर पर उपज खरीदने लगी, जिसमें 2275 रुपये का एमएसपी और 125 रुपये का बोनस शामिल है.
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