महाराष्ट्र के कृषि विभाग की तरफ से गुरुवार को आई एक रिपोर्ट में कहा गया है कि मराठवाड़ा क्षेत्र में इस वर्ष गन्ने का रकबा कम होने की उम्मीद है. अधिकारियों के अनुसार बारिश के आधार पर जो आंकड़ें इकट्ठा किए गए हैं, उनसे इस तरफ ही इशारा मिलता है. महाराष्ट्र शुगर कमिश्नर ऑफिस ने 31 जुलाई तक हुई बारिश के आधार पर कृषि विभाग की रिपोर्ट से गन्ने की खेती के आंकड़े जुटाए हैं. हालांकि मराठवाड़ा में इस बार बारिश औसत से ज्यादा दर्ज हुई है लेकिन फिर भी गन्ने की खेती में कमी की बात कही जा रही है.
अधिकारियों ने कहा कि कमिश्नर आफिस के तहत आने वाले दो डिविजन (छत्रपति संभाजीनगर और नांदेड़) में, जो मराठवाड़ा के आठ जिलों को कवर करते हैं, गन्ने की खेती का रकबा कम हो सकता है. महाराष्ट्र शुगर कमिश्नर कुणाल खेमनार ने न्यूज एजेंसी पीटीआई को बताया, 'आमतौर पर छत्रपति संभाजीनगर डिविजन में करीब 2 लाख हेक्टेयर में गन्ने की खेती होती है. लेकिन अभी तक, गन्ने की खेती के लिए इस्तेमाल किया जा सकने वाला रकबा करीब 1.42 लाख हेक्टेयर है.
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उन्होंने कहा कि नांदेड़ डिविजन में गन्ने की खेती का रकबा करीब 1.41 लाख हेक्टेयर है, लेकिन इस साल यह घटकर 1.25 लाख हेक्टेयर रह सकता है. उन्होंने बताया, 'हम बारिश के आधार पर गन्ने की खेती में वृद्धि या गिरावट का अनुमान लगा सकते हैं.' उन्होंने जानकारी दी कि पिछले साल महाराष्ट्र में गन्ने की खेती का रकबा 14.02 लाख हेक्टेयर था, लेकिन अब यह घटकर 11.67 लाख हेक्टेयर रह गया है. उनका कहना था कि अगर बारिश जारी रहती है तो फिर हम क्षेत्र में और वृद्धि की उम्मीद कर सकते हैं.
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मराठवाड़ा में पानी का संकट है और कृषि विशेषज्ञ गन्ने की खेती को भूजल स्तर में गिरावट का कारण मानते हैं. उन्होंने लातूर को इसका सबसे बड़ा उदाहरण बताया है. साल 2013, 2014, 2015 और 2016 में सूखे और कम बारिश के कारण भूजल स्तर में गिरावट आई. यहां पर गन्ने की खेती सबसे ज्यादा होती है और इसका रकबा सबसे ज्यादा है. जिले में 20 चीनी मिलें हैं. बोरवेल और कुओं से रिकॉर्ड पानी निकाले जाने और अनियमित बारिश के कारण यहां भूजल स्तर 0.11 से घटकर 4.60 मीटर (मी) रह गया है.
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