मौजूदा समय में देश के हर राज्यों में सबसे अधिक चर्चा मोटे अनाजों की है. मोटे अनाजों की खेती भी काफी तेजी से बढ़ती जा रही है. ऐसा ही एक मोटा अनाज रागी है, जिसे फिंगर मिलेट या मंडुआ के नाम से भी जाना जाता है. यह एक पौष्टिक अनाज है, जिसकी खेती दुनिया के कई देशों में की जाती है. लेकिन इसकी एक खास वैरायटी उत्तराखंड के लिए सुपर बेस्ट अनाज के रूप में उभर के सामने आई है. इस किस्म की खेती करने पर किसानों को एक हेक्टेयर में 2200 किलो तक उपज मिलती है. ऐसे में आइए जानते हैं कौन सी है वो किस्म और क्या हैं उसके फायदे.
मंडुआ की वीएल-402 किस्म को उत्तराखंड और अन्य पहाड़ी क्षेत्रों में खरीफ की फसल के रूप में उगाया जाता है. ये रागी की अधिक उपज देने वाली किस्म है. इसकी फसल रोपाई के 100 से 110 दिनों में पककर तैयार हो जाती है. इस किस्म की एक हेक्टेयर में खेती करने पर 2200 किलो से अधिक उपज मिलती है. वहीं, ये किस्म झुलसा रोग प्रतिरोधक होती है. ये किस्म उपज में भी काफी बेहतर है. साथ ही इस किस्म में अधिक मात्रा में कैल्शियम पाया जाता है.
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रागी को भारत में कई अलग-अलग नामों से जाना जाता है. जैसे नचनी, मंडुआ, मारवा, नागली, मंडल आदि. रागी की खेती अफ्रीका और एशिया के शुष्क इलाकों में तिलहन फसलों के साथ की जाती है. रागी आवश्यक पोषक तत्वों का भंडार है. रागी के फायदों को देखते हुए ही, इसे अधिकतर लोग सुपर फूड भी कहते हैं. रागी को अच्छा कार्बोहाइड्रेट का स्रोत भी माना जाता है.
रागी में अन्य अनाजों की तुलना में 5 से 30 गुना अधिक कैल्शियम होता है. राष्ट्रीय पोषण संस्थान के अनुसार 100 ग्राम रागी में 344 मिलीग्राम कैल्शियम होता है, जो पूरे दिन की कैल्शियम की आवश्यकता को पूरा करने के लिए काफी है. रागी में कैल्शियम भरपूर मात्रा अधिक होने के कारण हड्डियां, दांत मजबूत रहते हैं और हड्डियों से जुड़ी बीमारी दूरी होती है.
रागी की खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी बेहतर मानी जाती है. इसकी खेती के लिए भूमि उचित जल निकासी वाली होनी चाहिए क्योंकि जलभराव वाली भूमि में रागी की फसल खराब हो जाती है. इसकी खेती में सामान्य बारिश की जरूरत होती है. दरअसल, रागी के बीजों की रोपाई के लिए ड्रिल विधि को सबसे उपयुक्त माना जाता है. यदि आप छिड़काव विधि द्वारा बीजों की रोपाई करना चाहते हैं, तो उसके लिए आपको समतल भूमि में बीजों को छिड़कना होगा.
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