चना की खेती किसानों के लिए काफी फायदेमंद मानी जाती है. इसकी खेती में अच्छा उत्पादन करके किसान अच्छी कमाई कर सकते हैं. रबी सीजन में इसकी खेती की जाती है और यह एक प्रमुख दलहनी फसल मानी जाती है. हाल के दिनों में इसकी कीमतों में बढ़ोतरी हुई है, इसलिए अधिक किसान इसकी खेती की तरफ आकर्षित हो रहे हैं. चना की खेती में होने वाले फायदों को देखते हुए किसानों के इससे अधिक लाभ पहुंचाने के लिए इसकी नई वेरायटी विकसित की गई है. हाल ही में पीएम मोदी ने दिल्ली स्थित फसलों की 109 किस्मों को जारी किया. इन किस्मों में चना की भी दो बेहतरीन किस्में शामिल हैं.
यह दोनों ही किस्में अच्छी पैदावार देती है और किसान आगामी रबी सीजन में इसकी खेती कर सकते हैं. सर्दियों के मौसम किसान इन दोनों ही किस्मों की खेती कर सकते हैं. इन दोनों की किस्मों की खासियत यह है कि यह रोगरोधी किस्में हैं. इनमें रोग प्रतिरोधक क्षमता होती है और रोग लगने से फसल को अधिक नुकसान नहीं होता है. इससे किसान अच्छी पैदावार हासिल कर सकते हैं और अच्छी कमाई भी कर सकते है. रोगरोधी किस्म होने के कारण दवाओं का छिड़काव नहीं करना पड़ता है, इससे किसानों के खर्च में बचत होती है. आइए जानते हैं चने की इन दोनों किस्मों की खासियत क्या है.
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चना पंत ग्राम 10 (पीजी 265) चना की एक बेहतरीन नई वेरायटी है. इनकी खेती के बाद जो बीज प्राप्त होता है, किसान उसकी भी रोपाई करके अच्छी पैदावार हासिल कर सकते हैं. चना की इस खास किस्म को आईसीएआर-एआईसीआरपी ऑन पल्सेस जी.बी. पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय पंतनगर उत्तराखंड के वैज्ञानिकों ने तैयार किया है. चना की इस किस्म को उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल और असम के किसानों के लिए तैयार किया गया है. रबी सीजन में बुवाई के लिए यह किस्म काफी अच्छी मानी जाती है. इसकी खेती के लिए हल्की सिंचाई की जरूरत होती है.
चने की इस किस्म की अवधि 130 दिनों की होती है. यह एक लंबी अवधि वाली किस्म है. अगर इसकी पैदावार की बात करें तो चना पंत ग्राम 10 (पीजी 265) किस्म की खेती करके किसान प्रति हेक्टेयर औसतन 17.79 क्विटंल तक की पैदावार ले सकते हैं. जबिक अधिकतम पैदावार 20-21 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक ली जा सकती है. यह किस्म रोगरोधी होती है और इसमें विल्ट, कॉलर रॉट, बौनापन जैसे रोग ना के बराबर होते हैं. साथ ही फली छेदक कीट के प्रति भी यह सहनशील पाई गई है.
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चना नांदयाल ग्राम 1267 की इस किस्म को आईसीएआर-एआईसीआरपी ऑन पल्सेस मुख्य केंद्र आरएआरएस नंद्याल और आचार्य एन जी रंगा कृषि विश्वविद्यालय आंध्र प्रदेश के वैज्ञानिकों ने मिलकर तैयार किया है. इस किस्म को मुख्य तौर पर आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक और तमिलनाडु के किसानों के लिए तैयार किया गया है. चना के इस किस्म की खेती वर्षा आधारित क्षेत्रों के लिए उपयुक्त मानी जाती है. हालांकि एक दो सिंचाई करके भी किसान इससे उपज हासिल कर सकते हैं. यह छोटी अवधि की किस्म है, इसे तैयार होने में 90-95 दिनों का समय लगता है. इस किस्म में प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है. इसलिए बाजार में इसके अच्छे दाम मिलेंगे. इस किस्म की खेती करके किसान प्रति हेक्टेयर औसतन 20.95 क्विंटल तक का उत्पादन हासिल कर सकते हैं. जबकि अधिकतम पैदावार 22 क्विटल तक किसान ले सकते हैं.
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