उपयोगिता के हिसाब से हर फसल का अपना महत्व है, लेकिन मक्का सबसे अलग है. इसके करीब 3000 प्रोडक्ट बनते हैं इसलिए इसे विश्व स्तर पर औद्योगिक फसल का दर्जा मिला हुआ है. दुनिया में इसके उत्पादन का 83 फीसदी हिस्सा फीड, स्टार्च और जैव ईंधन उद्योगों में इस्तेमाल होता है. अब भारत में इथेनॉल के बहाने इसकी खेती का दायरा बढ़ने की संभावना है. क्योंकि सरकार ने 2025 तक पेट्रोल में 20 फीसदी इथेनॉल मिलाने का लक्ष्य रखा है. अभी 10 प्रतिशत का ही लक्ष्य हासिल हुआ है. इससे करीब एक लाख करोड़ रुपये की बचत होगी, जिसका फायदा हमारे किसानों को मिलेगा.
जाने-माने मक्का वैज्ञानिक शंकर लाल जाट ने 'किसान तक' से बातचीत में कहा कि भारत में मक्का की फसल से बहुत संभावना है. यह एक इमर्जिंग क्रॉप है. जिसे हम फ्यूचर क्रॉप भी कह सकते हैं. अगले कुछ साल में इथेनॉल के लिए मक्का की भारी मांग होगी. भारत में धान और गेहूं के बाद मक्का तीसरी सबसे महत्वपूर्ण अनाज फसल है. धान की जगह मक्का को बढ़ावा देकर हम भू-जल का दोहन कम कर सकते हैं. यह क्रॉप डायवर्सिफिकेशन के लिए बेहतरीन फसल है. इसका दाम भी अच्छा मिल रहा है. इसका भाव 2700 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गया है जबकि इसका न्यूनतम समर्थन मूल्य 1962 रुपये ही है.
कृषि वैज्ञानिक जाट ने बताया कि 100 किलो मक्का से 35 से 40 लीटर इथेनॉल मिलता है. यही नहीं इसके बचे हिस्से से फीड इंडस्ट्री का प्रोडक्ट भी बनता है. इसलिए यह किसानों के लिए फायदे का सौदा है. इसकी फसल जितनी बढ़ेगी प्रकृति के लिए उतना ही फायदा होगा. क्योंकि इसमें पानी की खपत बहुत कम होती है. बस दिक्कत यह है कि चीनी और गन्ना के मुकाबले मक्का से बने इथेनॉल का दाम कम है. ऐसा नहीं होना चाहिए. इथेनॉल तो इथेनॉल है उसका दाम एक ही होना चाहिए. ऐसा होने से किसानों को फायदा होगा.
मक्का खरीफ फसल है, हालांकि कुछ राज्यों में रबी सीजन में भी इसकी पैदावार होती है. खरीफ में 71 प्रतिशत उत्पादन होता है. अभी हम लगभग अपनी खपत के बराबर ही मक्का पैदा कर रहे हैं. विश्व औसत के मुकाबले मक्का उत्पादकता और इसके इंडस्ट्रियल इस्तेमाल में हम काफी पीछे हैं. जाट ने बताया कि मक्का की फसल बढ़ाने का स्कोप खाने-पीने के तौर पर नहीं है. इसका स्कोप तो इथेनॉल और इंडस्ट्रियल इस्तेमाल में ज्यादा है.
दिलचस्प बात यह है कि भारत में मक्का का इस्तेमाल खाने-पीने में बहुत कम होता है. हम 55 फीसदी मक्का पोल्ट्री फीड, 10 से 12 फीसदी एनिमल फीड, 17 फीसदी स्टार्च में, 7 से 8 फीसदी वैल्यू एडेड प्रोडक्ट जबकि खाने-पीने के काम में सिर्फ 8 फीसदी का इस्तेमाल करते हैं. जाट बताते हैं कि भारत में इस वक्त मक्का से 1500 से अधिक प्रोडक्ट बना रहे हैं.
(भारतीय मक्का अनुसंधान संस्थान)
ये भी पढ़ें:
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today