सब्जियों के राजा आलू की भारत में कई किस्में मौजूद हैं. अगर आप इसकी खेती से अच्छा मुनाफा कमाना चाहते हैं तो अच्छी किस्मों का चयन करना होगा. कुफरी जामुनिया भी अच्छी किस्मों में गिनी जाती है, जो एक मध्यम अवधि और अधिक उपज देने वाली नई उन्नत प्रजाति है. यह बुवाई से लेकर कटाई तक लगभग 90 दिन में ही तैयार हो जाती है. इसकी औसत उपज 320-350 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक है. यह बायोफोर्टिफाइड प्रजाति है. इसलिए इसमें पोषण की मात्रा ज्यादा है. विशेष रूप से, कुफरी जामुनिया में एंथोसायनिन उच्च मात्रा में होता है, जो इसके जीवंत बैंगनी गूदे में पाए जाने वाला शक्तिशाली एंटीऑक्सीडेंट हैं.
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) से जुड़े वैज्ञानिकों के मुताबिक बुवाई से पहले बीज कंदों को काली रूसी (ब्लैक स्कर्फ) व अन्य कंदजनित एवं मृदा जनित रोगों से बचाव के लिए 3 प्रतिशत बोरिक अम्ल के घोल में 20-30 मिनट तक डुबोकर उपचारित करें. बुवाई से पहले आलू पर इसका छिड़काव करें. इसके बाद छायादार स्थान पर सुखाकर बुवाई करें. एक बार बने इस घोल को आप 20 बार तक प्रयोग कर सकते हैं.
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जुताई के समय खेत में अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर की खाद 15 से 30 टन प्रति हेक्टेयर की दर से मिला देनी चाहिए. रासायनिक खादों का इस्तेमाल मिट्टी की उर्वरा शक्ति, फसलचक्र और प्रजाति पर निर्भर होता है. आलू की बेहतर फसल के लिए प्रति हेक्टेयर 150 से 180 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60-80 किलोग्राम फॉस्फोरस एवं 80-100 किलोग्राम पोटाश का प्रयोग करें.
फॉस्फोरस व पोटाश की पूरी और नाइट्रोजन की आधी मात्रा बुवाई के समय ही खेत में डालनी होती है. बची हुई नाइट्रोजन को मिट्टी चढ़ाते समय खेत में डाला जाता है. एक हेक्टेयर क्षेत्र में आलू की बुवाई के लिए लगभग 25-30 क्विंटल बीज की आवश्यकता होती है. खेत में उर्वरकों के इस्तेमाल के बाद ऊपरी सतह को खोदकर उसमें बीज डालें और उसके ऊपर भुरभुरी मिट्टी डाल दें. पंक्तियों की दूरी 50-60 सेंटीमीटर होनी चाहिए, जबकि पौधों से पौधों की दूरी 15 से 20 सेंटीमीटर होनी चाहिए.
केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान ने कुफरी जामुनिया को तैयार किया है. यह बैंगनी आलू की किस्म है, जिसे विशेष रूप से भारतीय जलवायु के लिए विकसित किया गया है. इसकी अच्छी भंडारण क्षमता है. यानी लंबे समय तक रखकर खाई जा सकती है. इसे देश के उत्तरी, मध्य और पूर्वी मैदानों में खेती के लिए बनाया गया है.
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