खेती-किसानी के क्षेत्र में लगातार नए अवसर खुल रहे हैं. अब किसान सिर्फ धान, गेहूं या मक्का तक सीमित नहीं रह गए हैं. वे ऐसी फसलों की ओर बढ़ रहे हैं, जिनसे कम लागत में अधिक मुनाफा हो. ऐसी ही एक फसल है ककोड़ा (Spiny Gourd), जो आजकल किसानों के लिए नई उम्मीद बनकर उभरी है.
ककोड़ा न सिर्फ स्वाद में लाजवाब है, बल्कि इसके औषधीय गुण और पौष्टिकता इसे खास बनाते हैं. इसकी लोकप्रियता के कारण बाजार में इसकी कीमत 300 से 400 रुपये प्रति किलो तक पहुंच गई है. यह कीमत किसानों के लिए बड़ा लाभ लेकर आई है.
अब ककोड़ा की खेती में किसानों को तैयार पौधे भी उपलब्ध कराए जा रहे हैं. खासकर बरसात के मौसम में, अगस्त से सितंबर के पहले सप्ताह तक इसकी बुआई सबसे अच्छी मानी जाती है. अगर किसान हाइटेक ड्रिप मल्चिंग तकनीक का इस्तेमाल करते हैं, तो उपज और भी बढ़ जाती है.
ककोड़ा की खेती में पौधों को सहारा देना यानी स्टैकिंग करना बहुत जरूरी है. कीट और रोग की समस्या कम होती है, लेकिन खेत में पानी की निकासी का अच्छा प्रबंध होना चाहिए. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि किसान बीज से पौधे तैयार न करें, क्योंकि इससे नर पौधों की संख्या ज्यादा हो जाती है और उत्पादन कम हो जाता है. बेहतर होगा कि किसान विश्वविद्यालय से प्रमाणित तैयार पौधे लें.
कृषि विश्वविद्यालय ने ककोड़ा की दो खास किस्में विकसित की हैं- इंदिरा ककोड़ा-1 और इंदिरा ककोड़ा-2. ये पौधे सीधे रायपुर विश्वविद्यालय से किसानों को उपलब्ध कराए जा रहे हैं. सही पौधे और अच्छी खेती के जरिए किसान 150 से 175 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उपज हासिल कर सकते हैं.
ककोड़ा की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसे उगाने में रासायनिक खाद की जरूरत नहीं पड़ती. यह फसल प्राकृतिक रूप से तैयार होती है और पौष्टिक भी रहती है. इसकी लगातार बढ़ती मांग के कारण बाजार में इसकी कीमत 300-400 रुपये प्रति किलो तक बनी रहती है. इससे किसान थोड़ी सी जमीन से भी लाखों रुपये कमा सकते हैं.
कृषि विशेषज्ञ मानते हैं कि ककोड़ा की खेती आने वाले समय में किसानों के लिए सबसे लाभकारी फसल साबित होगी. कम लागत और अधिक मुनाफे वाली यह फसल किसानों की आमदनी बढ़ाने के साथ-साथ कृषि विविधीकरण को भी नई दिशा देगी.
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