दक्षिण और उत्तर भारत में गर्मी का प्रकोप लगातार बढ़ता ही जा रहा है. बहती गर्मी का बाजार से ना सिर्फ इंसान परेशान है बल्कि पशु-पक्षी और पेड़ों को भी काफी नुकसान हो रहा है. भीषण गर्मी और लू की वजह से पेड़-पौधे भी झुलस रहे हैं. ऐसे में बढ़ती गर्मी और लू से पेड़ों को बचाना बहुत जरूरी है. आपको बता दें धूप से जलने की चोट आमतौर पर भारतीय राज्यों (दक्षिणी भारत, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र और कोलकाता) के कुछ हिस्सों में देखी जाती है, जहां गर्मी का तापमान 38 डिग्री सेल्सियस से ऊपर चला जाता है. लक्षण मार्च और अप्रैल के दौरान प्रकट होते हैं जब दिन और रात के तापमान में व्यापक अंतर दर्ज किया जाता है, विशेषकर तापमान 38 .C से ऊपर चला जाता है. इस मौसम में ड्रैगन फ्रूट की खेती कर रहे किसानों को काफी नुकसान होता है. इस मौसम में ना सिर्फ पेड़-पौधे बल्कि फल भी झुलस जाते हैं. ऐसे में आइए जानते हैं कैसे करें बचाव.
भारत में ड्रैगन फ्रूट की खेती का क्षेत्रफल फिलहाल 3,000 हेक्टेयर है, जिसे बढ़ाकर 50,000 हेक्टेयर करने का लक्ष्य है. ड्रैगन फ्रूट की खेती बिहार, यूपी, गुजरात, कर्नाटक, ओडिशा, तमिलनाडु समेत कई राज्यों में की जाती है. इससे वहां के किसानों को खूब कमाई हो रही है. ड्रैगन फ्रूट की खेती इसलिए खास है क्योंकि यह आय का बेहतर जरिया है. इसमें सिर्फ एक बार पैसा लगाकर आप 40 साल तक इससे मुनाफा पा सकते हैं.
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ड्रैगन फ्रूट को कलमों द्वारा प्रचारित किया जाता है, लेकिन इसे बीज से भी लगाया जा सकता है. बीज से लगाने पर फल लगने में अधिक समय लगता है, जो किसान के नजरिये से अच्छा नहीं है. अतः बीज विधि व्यावसायिक खेती के लिए उपयुक्त नहीं है. इसे कलमों द्वारा प्रचारित करने के लिए कलमों की लंबाई 20 सेमी होनी चाहिए. रखना. इसे खेत में लगाने से पहले गमलों में लगाया जाता है. इसके लिए गमलों में 1:1:2 के अनुपात में सूखी गाय का गोबर, रेतीली मिट्टी और रेत भरकर छाया में रख देते हैं.
ड्रैगन फ्रूट की खेती के लिए न्यूनतम 50 सेमी वार्षिक वर्षा वाली गर्म जलवायु की आवश्यकता होती है. और तापमान 20 से 36 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए, जो सबसे अच्छा माना जाता है. पौधों की बेहतर वृद्धि और फल उत्पादन के लिए उन्हें अच्छी रोशनी और धूप वाले क्षेत्र में लगाया जाना चाहिए. इसकी खेती के लिए ज्यादा धूप उपयुक्त नहीं होती है.
अधिक गर्मी में अगर कोई नियंत्रण उपाय नहीं किया गया तो इससे फलों की वृद्धि कम हो जाएगी और पौधे सुख कर मर भी सकते हैं. पौधे के तने के पश्चिमी भाग पर धूप से जलने की तीव्रता 10−50% के बीच होती है. यहां तक कि धूप से झुलसने के बाद तना सड़न रोग बढ़ने से भी बगीचे का पूरा नुकसान हो सकता है. इसलिए, ड्रैगन फ्रूट की फसल की सुरक्षा के लिए किसानों को समय पर पता लगाने और आवश्यक सावधानियां बरतने की जरूरत है. ड्रैगन फ्रूट औषधीय गुणों से भरपूर एक बारहमासी कैक्टस है, जिसका मूल उत्पादन दक्षिणी मैक्सिको, मध्य अमेरिका और दक्षिण अमेरिका में शुरू हुआ. पिटाया, जिसे अंग्रेजी में ड्रैगन फ्रूट कहा जाता है, विभिन्न नामों से लोकप्रिय है जैसे मैक्सिको में पिटाया, मध्य और उत्तरी अमेरिका में पिटाया रोजा, थाईलैंड में पिटजाह और भारत में इस फल को इसके संस्कृत नाम कमल से कमलम कहा जाता है. इसे "21वीं सदी का चमत्कारी फल" भी कहा जाता है.
जनवरी, मार्च माह के दौरान एंटी-ट्रांसपिरेंट्स [काओलिनाइट (50 ग्राम प्रति लीटर पानी) + नीम साबुन (4 ग्राम प्रति लीटर पानी) के साथ समुद्री घास के अर्क और ह्यूमिक एसिड (4 मिली प्रति लीटर पानी) का छिड़काव करें. यह सन बर्न से होने वाले नुकसान, फंगल और बैक्टीरियल संक्रमण को भी कम करता है. ड्रैगन फ्रूट के बगीचे (8-10 लीटर/पोल) की सिंचाई से फसल की धूप से जलने की चोट के प्रति सहनशीलता बढ़ जाती है.
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