Natural farming: कीट-रोगों की रोकथाम में काम आएंगे ये घरेलू तरीके, जैविक कीटनाशकों से घटाएं खेती की लागत

Natural farming: कीट-रोगों की रोकथाम में काम आएंगे ये घरेलू तरीके, जैविक कीटनाशकों से घटाएं खेती की लागत

प्राकृतिक खेती में फसलों को कीट और बीमारियों से बचाने के लिए घरेलू और जैविक कीटनाशकों का उपयोग एक प्रभावी तरीका है. यह न केवल पर्यावरण के लिए सुरक्षित हैं, बल्कि इन्हें अपने घर में उपलब्ध साधनों से आसानी से बनाया जा सकता है. इनकी लागत भी कम होती है और यह फसलों को स्वस्थ रखते हैं. जैविक कीटनाशकों के उपयोग से फसल को तुरंत तोड़कर खाया जा सकता है और पर्यावरण भी प्रदूषित नहीं होता है.

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कीट-रोगों की रोकथाम में काम आएंगे ये घरेलू तरीके, जैविक कीटनाशकों से घटाएं खेती की लागतप्राकृतिक खेती

आजकल केमिकल कीटनाशकों और रासायनिक उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग से न केवल हमारे स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है बल्कि हमारी मिट्टी भी अपनी उर्वरा शक्ति खो रही है. ऐसे में सरकार प्राकृतिक खेती को बढ़ाने लिए जोर दे रही है. दूसरी ओर देश में बहुत से किसान इस खेती को कर रहे हैं और बेहतर उत्पादन का दावा कर रहे हैं. कृषि क्षेत्र में एक बड़ा परिवर्तन लाने के उद्देश्य से, सरकार ने प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने का संकल्प लिया है. इसका उद्देश्य एक करोड़ किसानों को इस विधि से जोड़ना है, जिससे न केवल किसानों की आय में वृद्धि होगी बल्कि पर्यावरणीय संतुलन भी बना रहेगा.

प्राकृतिक खेती से जुड़ने के बाद किसानों को कई लाभ प्राप्त होंगे, जिनमें उर्वरक लागत में कमी, फसल की गुणवत्ता में सुधार शामिल है. यह न केवल पर्यावरण के लिए सुरक्षित है बल्कि इसके माध्यम से हम स्वस्थ और पोषक तत्वों से भरपूर फसलें उगा सकते हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि.प्राकृतिक खेती से उगाई गई फसलें रासायनिक अवशेषों से मुक्त होती हैं, जिससे हमारी सेहत पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है. प्राकृतिक खेती से फसल उत्पादन में स्थिरता आती है और यह दीर्घकालिक लाभ प्रदान करती है.

क्यों जरूरी है प्राकृतिक तरीके से कीटों की रोकथाम?

किसान रासायनिक कीटनाशकों का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन जिस तरह से दुनियाभर में केमिकल और पेस्टीसाइड का अंधाधुंध प्रयोग हो रहा है, उससे खेती और इंसान दोनों को बहुत नुकसान पहुंच रहा है. केयर रेटिंग के अनुसार, भारत में 1950 में जहां 2000 टन कीटनाशक का इस्तेमाल होता था, वहीं अब यह बढ़कर 90 हजार टन पर पहुंच गया है. छठे दशक में देश में जहां 6 लाख 40 हजार हेक्टेयर एरिया में कीटनाशकों का छिड़काव होता था, आज के समय में देश में डेढ़ करोड़ हेक्टेयर फसल पर कीटनाशकों का छिड़काव होता है. इसके कारण भारत में खाद्य पदार्थों में कीटनाशकों का अवशेष 20 प्रतिशत तक रह जाता है, जबकि वैश्विक स्तर पर खाद्य पदार्थों में यह मात्र दो प्रतिशत तक ही सीमित है.

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देश में 51 प्रतिशत ऐसे खाद्य पदार्थ हैं जिनमें कीटनाशक की मात्रा मिलती है, जबकि वैश्विक स्तर पर केवल 20 प्रतिशत खाद्य पदार्थों में ही कीटनाशक की मात्रा मिलती है. दुनियाभर में हुए शोध में पता चला है कि मनुष्य की कई बीमारियों के लिए कुछ हद तक यह कीटनाशक जिम्मेदार हैं, जिसके चलते कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग पर लगाम लगाने की कोशिशें तेज हुई हैं. फसल को हानिकारक कीटों से बचाने के लिए केमिकल कीटनाशक के छिड़काव किए जाते हैं, इससे वातावरण में फसलों को फायदा पहुंचाने वाले मित्र कीट भी मर जाते हैं जो भविष्य को आशंकित करने वाले हैं. चिंता की बात यह है कि पेस्टीसाइड्स की यह मात्रा लगातार बढ़ानी पड़ रही है. इसके कारण किसानों को नुकसान उठाना पड़ता है और ऊपर से खेत भी प्रभावित हो रहे हैं. पर्यावरण का संतुलन भी बिगड़ता जा रहा है. साथ ही, उन्हें इस पर अच्छा खासा खर्च करना पड़ रहा है.

प्राकृतिक खेती में कीट और बीमारियों से बचाव के विकल्प

फसलों पर कीट-पतंगों का लगना एक आम समस्या है. प्राकतिक खेती में इस समस्या से निपटने के लिए जैविक और घरेलू कीटनाशकों का प्रयोग एक बेहतर विकल्प है. इससे न केवल फसलों की रक्षा की जा सकती है बल्कि फसल सुरक्षा में लगने खर्च को भी कम किया जा सकता है. विशेषज्ञों का कहना है कि फसल को कीट बीमारी से बचाव के लिए कुछ देसी उपाय आजमाना चाहिए. इससे कीटनाशकों पर खर्च के अलावा रासायनिक नुकसान से बच सकते हैं. देसी उपाय और जैविक कीटनाशक न केवल पर्यावरण के लिए सुरक्षित होते हैं बल्कि इन्हें अपने घर में उपलब्ध साधनों से आसानी से बनाया जा सकता है. इनकी लागत भी कम होती है और यह फसलों को स्वस्थ रखते हैं. जैविक कीटनाशकों के उपयोग से फसल को तुरंत तोड़कर खाया जा सकता है और पर्यावरण भी प्रदूषित नहीं होता है.

घरेलू तरीके से बनाए जैविक कीटनाशक का करें प्रयोग 

पौध सुरक्षा विशेषज्ञ और कृषि विज्ञान केंद्र नरकटियागंज बिहार के हेड डॉ आर. पी. सिंह का कहना है, जो किसान प्राकृतिक खेती करना चाहता है वह घरेलू जैविक कीटनाशक का प्रयोग कर सकता है. उन्होंने कहा कि गंध वाले खाद्य पदार्थों का उपयोग करके हानिकारक कीटों की रोकथाम की जा सकती है. लहसुन, अदरक, हींग के पेस्ट को पानी में घोलकर स्प्रे करने से कीट-पतंगें फसल पर नहीं लगते हैं. प्राकृतिक खेती में नीम आधारित कीटनाशको के प्रयोग से फसलों पर कीट का प्रयोग कम होता है. इसके आलावा आक, सीताफल, धतूरा और बेशरम को पीस कर इसे गरम पानी में उबालें और इसे ठंडा होने के बाद छानकर पानी में मिलाकर स्प्रे करें. इससे कीटों का कम प्रभाव होता है. दशपर्णी अर्क या घन जीवा अमृत का छिड़काव करने से फसलों पर कीट-बीमारी से रोकथाम किया जा सकता है.

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इन तरीको से करें कीट-बीमारी की रोकथाम

डॉ आर. पी. सिंह ने बताया कि जैविक कीटनाशक जो प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले पदार्थों पर आधारित कीटनाशक हैं, वे गैर-विषाक्त तंत्र द्वारा कीटों को नियंत्रित करते हैं. इनमें रासायनिक कीटनाशकों के विपरीत जिनमें सिंथेटिक अणु होते हैं जो सीधे कीट को मार देते हैं, जैसे ट्राइकोडरमा विरिडी/ट्राइकोडरमा हारजिएनम, ब्यूवेरिया बैसियाना स्यूडोमोनास फ्लोरिसेन्स, मेटाराइजियम एनिसोप्ली, बैसिलस थूरिनजियेन्सिस जो कीट बीमारी के रोकथाम उपयोग किए जाते हैं. इसके आलावा यांत्रिक तरीके जैसे फेरोमेन ट्रैप की गंध से कीट आकर्षित होकर ट्रैप में फंस जाते हैं. 1 एकड़ में 10 ट्रैप लगाने से कीटों की रोकथाम होती है. दूसरा पीले रंग के स्टिकी ट्रैप में ग्रीस का लेप लगाकर एक एकड़ में 10 ट्रैप लगाने से कीट उस पर चिपककर मर जाते हैं. कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार, इन घरेलू नुस्खों और जैविक पेस्टीसाइड से फसलों को कीटों से बचाने में मदद मिलती है और यह पर्यावरण को भी सुरक्षित रखते हैं. इन विधियों का सही समय, मात्रा और तरीके से उपयोग करके किसान अपनी फसलों की गुणवत्ता बढ़ा सकते हैं और उपभोक्ताओं तक शुद्ध उत्पाद पहुंचा सकते हैं.


 

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