फरवरी-मार्च के महीने में हमारे देश में जायद सीजन वाली फसलें उगाई जाती हैं. इन दिनों गर्मी में मिसने वाले फल और सब्जियों की खेती शुरू हो जाती है. जायद की खास फसलों में तरबूज का भी नाम शामिल है. तरबूज का बहुत अधिक परिचय देने की जरूरत नहीं है. आप जानते हैं कि ये पानीदार फल है, गर्मियों में इसको खाने के बहुत से फायदे होते हैं. यही कारण है कि गर्मी के दिनों में इसकी बंपर मांग रहती है जिसको देखते हुए जायद में इसकी खेती खूब की जाती है. हालांकि हर जगह तरबूज की खेती नहीं की जा सकती है. आपने तरबूज की खेती का मन बना लिया है तो जरूरी बातें जान लीजिए.
तरबूज मौसमी फल है जो आमतौर पर अप्रैल के महीने से जून-जुलाई तक बाजारों में दिखता है. इन तीन-चार महीनों तक तरबूज खूब बिकता है. बंपर डिमांड को देखते हुए कुछ लोग तरबूज उगाने की तैयार कर लेते हैं लेकिन उनकी फसल तैयार नहीं हो पाती और उन किसानों को नुकसान उठाना पड़ता है. आइए जान लेते हैं कि तरबूज की खेती के लिए किन चीजों की जरूरत होती है.
तरबूज की खेती से हुए लाभ को देखते हुए हर किसी को खेती नहीं कर लेनी चाहिए. इसकी खेती के लिए बलुई और बलुई दोमट मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है. मिट्टी का पीएच मान 6.0-7.5 के बीच अच्छा बताया जाता है. ध्यान रहे कि मिट्टी की जल धारण क्षमता भी अच्छी होनी चाहिए. इसके अलावा अन्य मिट्टी में तरबूज की खेती नहीं की जा सकती हैं.
तरबूज की खेती के लिए मिट्टी के साथ ही वातावरण और जलवायु बहुत मायने रखती है. गर्म और शुष्क जलवायु में तरबूज की खेती की जाती है. दिन में पर्याप्त धूप और रात के समय पर ठंडी जलवायु तरबूज की फसल के लिए बेस्ट है. इन्हें पानी की खास जरूरत होती है. बलुई मिट्टी का सिद्धांत है कि ये पानी खूब सोखती है इसलिए हफ्ते में दो से तीन बार की सिंचाई की जरूरत होती है. तरबूज की ज्यादातर खेती नदियों के किनारे ही होती है.
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तरबूज की खेती से के लिए जरूरी मिट्टी और जलवायु के बारे में बता दिया गया है. अगर आपके खेत की मिट्टी बलुई नहीं है तरबूज की खेती से आपको कोई खास लाभ नहीं मिलेगा. इसके अलावा अगर आपके पास नियमित सिंचाई का कोई इंतजाम नहीं है तो भी तरबूज की खेती ना करने की सलाह दी जाती है.
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