दलहन और तिलहन फसलें लंबे समय से भारत में उपेक्षित रही हैं. हमारे नीति निर्धारकों ने भारत में खेती बढ़ाने की बजाय आयात का रास्ता अपनाया. नतीजा यह हुआ कि आज हम इन दालों और खाद्य तेलों को मिलाकर 1 लाख 58 हजार करोड़ रुपये से अधिक रकम खर्च कर रहे हैं. जो धान-गेहूं एक्सपोर्ट करके कमाते हैं उससे अधिक हम इन दोनों पर खर्च कर देते हैं. जो पैसा भारतीय किसानों को मिलना चाहिए वो पैसा इंडोनेशिया, मलेशिया, रूस, यूक्रेन, अर्जेंटीना, म्यांमार और मोजांबिक जैसे देशों के किसानों की जेब में जा रही है. सिर्फ पॉलिसी ठीक न होने की वजह से. लेकिन, अब वर्तमान सरकार की स्पष्ट सोच है कि इन दोनों फसलों की आयात निर्भरता खत्म करके हमें इनमें आत्मनिर्भर बनना है. पिछले कुछ वर्षों से इस पर काम हो रहा है और उसका नतीजा भी बढ़े उत्पादन के तौर पर दिखाई दे रहा है.
केंद्रीय कृषि मंत्रालय के अनुसार 2018-19 में तिलहन फसलों का उत्पादन 315.22 लाख मीट्रिक टन था जो 2022-23 में बढ़कर 413.55 लाख मीट्रिक टन हो गया है. यानी मोटे तौर पर पांच साल में हमने 98 लाख मीट्रिक टन उत्पादन बढ़ा लिया है. सरकार अब इसे और बढ़ाने की कोशिश में जुटी हुई है. हालांकि, यह रफ्तार तेज तब होगी जब सरसों और सोयाबीन जैसी फसलों का किसानों को अच्छा दाम मिलेगा. जैसा कि कोविड के समय और उसके बाद के दो साल तक मिला है.
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अगर बात करें दलहन फसलों के उत्पादन की तो 2018-19 में भारत सिर्फ 220.75 लाख मीट्रिक टन का उत्पादन करता था. जो 2022-23 में बढ़कर 260.59 लाख टन हो गया. इसका मतलब कि पिछले पांच साल में करीब 40 लाख टन की वृद्धि हुई है. भारत दलहन का सबसे बड़ा उत्पादक है. दुनिया की करीब 25 फीसदी दालें यहीं पैदा होती हैं. लेकिन खपत दुनिया की 28 फीसदी होती है. इसलिए हम अब भी आयातक हैं. सरकार ने दिसंबर 2027 तक दलहन में भारत को आत्मनिर्भर बनाने का लक्ष्य रखा है. इसके लिए नेफेड को नोडल एजेंसी बनाया गया है जो दलहन की खेती करने वाले किसानों का रजिस्ट्रेशन करके दलहन की शत-प्रतिशत खरीद करेगी.
केंद्र सरकार तिलहनों के उत्पादन और उत्पादकता में वृद्धि करके खाद्य तेलों के आयात को कम करने के लिए वर्ष 2018-19 से राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन-तिलहन संचालित कर रही है. तिलहन फसलों में मूंगफली, सोयाबीन, रेपसीड और सरसों, सूरजमुखी, कुसुम, तिल, नाइजर, अलसी और अरंडी आते हैं. सरकार ने ऑयल पाम क्षेत्र का विस्तार करके खाद्य तेलों की उपलब्धता बढ़ाने के उद्देश्य से अगस्त 2021 में राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन ऑयल पाम भी शुरू किया है. इस मिशन के तहत 2025-26 तक पूर्वोत्तर राज्यों में 3.28 लाख हेक्टेयर और शेष भारत में 3.22 लाख हेक्टेयर ऑयल पाम रोपण होगा. यह मिशन देश के 15 राज्यों में लागू है.
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