खाना पकाने के तेल की घरेलू कीमतों में तेज गिरावट के बावजूद केंद्र सरकार द्वारा खाद्य तेलों पर आयात शुल्क बढ़ाने की संभावना नहीं है. यह बात अखिल भारतीय खाद्य तेल व्यापारी महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष शंकर ठक्कर ने कही है. खाद्य मंत्रालय के एक अधिकारी से बातचीत के बाद उन्होंने बताया कि खाद्य तेलों, विशेषतौर पर पाम ऑयल, सोयाबीन और सूरजमुखी पर आयात शुल्क में कोई भी बढ़ोतरी घरेलू रिफाइनरियों को प्रभावित कर सकती है, क्योंकि देश अपनी तेल आवश्यकताओं का लगभग 56 फीसदी से अधिक आयात करता है, इसका बड़ा हिस्सा कच्चे रूप में होता है. इसलिए सरकार ने आयात शुल्क को न बदलने का फैसला लिया है.
हालांकि, आयात शुल्क न बढ़ने का बुरा असर सीधे तौर पर सरसों उत्पादक किसानों पर पड़ रहा है. सरसों का भाव इस वक्त 4000 से 4500 रुपये प्रति क्विंटल रह गया है जो इसकी एमएसपी से हजार रुपये कम है. सरसों की एमएसपी 5450 रुपये प्रति क्विंटल है. आयात शुल्क बहुत कम होने की वजह से खाद्य तेल कारोबारियों को दूसरे देशों से आयात सस्ता पड़ रहा है. इससे भारत में खासतौर पर सरसों बहुत सस्ता हो गया है. राजस्थान के एक किसान संगठन ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर पहले की तरह 45 फीसदी आयात शुल्क करने की मांग की है.
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ठक्कर ने बताया कि वर्तमान में कच्चे पाम, सोयाबीन और सूरजमुखी के तेल के आयात पर केवल 5 फीसदी कृषि इन्फ्रास्ट्रक्चर उपकर और 10 फीसदी शिक्षा उपकर लगता है. जिसका अर्थ कुल 5.5 फीसदी टैक्स है. जबकि रिफाइंड खाद्य तेल के मामले में प्रभावी आयात शुल्क 13.75 फीसदी है. सालाना 14 मिलियन टन खाद्य तेल आयात करते हैं. जिसमें से कच्चे तेल की हिस्सेदारी 75 फीसदी और रिफाइंड की 25 फीसदी है.
आयात शुल्क न बढ़ाने की सरकारी मंशा तब सामने आई जब कई संगठनों ने सरसों के तेल की कीमतों में गिरावट का हवाला देते हुए उच्च आयात शुल्क की मांग की है. भारत में खाद्य तेलों में सरसों की हिस्सेदारी लगभग 28 फीसदी की है. ठक्कर ने कहा कि कई महीने पहले हमने पूर्वानुमान लगाया था कि आने वाले कुछ महीनों में सरकार आयात शुल्क में परिवर्तन और खासकर बढ़ोतरी नहीं करेगी. इसके पीछे पिछले 2 वर्ष के मुकाबले आज भी खाना पकाने के तेलों के दाम में करीब 25 फीसदी की तेजी है. इस वर्ष कई राज्यों में चुनाव होने के नाते सरकार आयात शुल्क में कोई भी परिवर्तन करना नहीं चाहेगी.
ठक्कर ने कहा, 'मौजूदा समय में आयात शुल्क ढांचे में किसी तरह के बदलाव से रिफाइनरियों को नुकसान हो सकता है. क्योंकि खाद्य तेल आयात का बड़ा हिस्सा कच्चे तेल के रूप में होता है.' सरकार ने सितंबर 2022 में कच्चे पाम, सोयाबीन और सूरजमुखी के तेल पर आयात शुल्क में कटौती की थी. दिसंबर 2022 में ही उसने खाद्य तेलों पर रियायती शुल्क को 31 मार्च, 2024 तक बढ़ा दिया है.
ताड़ का तेल ज्यादातर मलेशिया और इंडोनेशिया से आयात किया जाता है, सोयाबीन के तेल का आयात ज्यादातर अर्जेंटीना और ब्राजील से होता है. जबकि सूरजमुखी तेल का आयात यूक्रेन और रूस से किया जाता है. अप्रैल 2023 में सरसों के तेल की कीमतों में 17.29 फीसदी की गिरावट आई. बंपर घरेलू उत्पादन और वैश्विक कीमतों में गिरावट के कारण रिफाइंड तेल (सूरजमुखी, सोयाबीन और पाम) में भी पिछले महीने की तुलना में 18.79 की गिरावट आई है.
इस गिरावट को देखते हुए खाद्य मंत्रालय ने खाद्य तेल खुदरा विक्रेताओं से खाद्य तेल की एमआरपी और कीमतों में कटौती करने का आग्रह किया था. ताकि उपभोक्ताओं को राहत मिल सके. यह बात अलग है कि अभी तक उपभोक्ताओं को फायदा नहीं मिला है. उन्हें 170 रुपये प्रति लीटर तक के भाव पर खाद्य तेल खरीदना पड़ रहा है. जबकि दाम 130 रुपये प्रति लीटर के आसपास होना चाहिए.
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