सरसों का उत्पादन करने वाले किसान इस साल पछता रहे हैं. क्योंकि ओपन मार्केट में इसका दाम न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से काफी नीचे आ गया है. दाम गिरने का कारण सिर्फ खाद्य तेलों पर इंपोर्ट ड्यूटी जीरो होना ही नहीं है बल्कि इसकी एक और बड़ी वजह केंद्र सरकार की खरीद पॉलिसी को भी बताया जा रहा है. जिसके तहत 75 फीसदी उपज पहले ही एमएसपी के दायरे से बाहर हो जाती है. कुल उत्पादन का सिर्फ 25 फीसदी ही एमएसपी पर खरीदने का प्रावधान है. दुर्भाग्य से ज्यादातर राज्यों में इतनी खरीद भी नहीं हो पा रही है. जिसकी वजह से ओपन मार्केट पर दबाव नहीं पड़ रहा और किसानों को अच्छा दाम नहीं मिल रहा. हालांकि, किसान 25 फीसदी वाले नियम का विरोध कर रहे हैं. लेकिन, अगर इसका भी पालन हो जाए तब भी काफी किसानों को एमएसपी का फायदा मिल जाएगा.
इसे यूं समझ सकते हैं. रबी फसल वर्ष 2022-23 में सरकार ने 128 लाख मीट्रिक टन सरसों उत्पादन का अनुमान लगाया है, जो अब तक का सर्वाधिक है. ऐसे में केंद्र सरकार की खरीद पॉलिसी के अनुसार एमएसपी पर 32 लाख मीट्रिक टन सरसों की खरीद होनी चाहिए. लेकिन अब तक सिर्फ 5.84 लाख मीट्रिक टन ही सरसों खरीदा गया है. हरियाणा को छोड़कर बाकी सभी राज्य इस मामले में फिसड्डी हैं. कुल उत्पादन का 25 फीसदी खरीद पूरी होने की अब उम्मीद भी करना ठीक नहीं है. देश में अब तक सिर्फ 2,69,505 किसानों ने एमएसपी पर सरसों बेचने का फायदा उठाया है.
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कमोडिटी रिसर्चर इंद्रजीत पॉल का कहना है कि भारत खाद्य तेलों का आयातक देश है. इसलिए सरसों की खेती करने वाले किसानों को हड़बड़ी में अपनी उपज नहीं बेचनी चाहिए. भारत में पारंपरिक तौर पर लोग सरसों का तेल खाते हैं. ऐसे में इसका भाव इस साल एमएसपी के ऊपर जा सकता है. इस बार 6000 रुपये प्रति क्विंंटल तक दाम जाने की उम्मीद है. ऐसे में किसानों को औने-पौने दाम पर सरसों बेचने की बजाय उसे स्टोर करना चाहिए.
देश के सबसे बड़े सरसों उत्पादक राज्य राजस्थान में अब तक एक लाख मीट्रिक टन सरसों की भी खरीद नहीं हो पाई है. जबकि यहां पर किसानों से 15,19,318 मीट्रिक टन सरसों खरीदने का लक्ष्य रखा गया था. राज्य सरकार के इस लचर रवैये की वजह से किसान व्यापारियों को औने-पौने दाम पर सरसों बेचने के लिए मजबूर हैं. जानकारों का कहना है कि अगर यहां पर एमएसपी पर अच्छी खरीद होती तो ओपन मार्केट पर उसका दबाव पड़ता और वहां भी दाम ऊंचा होता. रबी मार्केटिंग सीजन 2023-24 के लिए सरसों की एमएसपी 54.50 पैसे प्रति किलो तय है जबकि ओपन मार्केट में 40 से 50 रुपये किलो तक का ही भाव चल रहा है.
राजस्थान में देश का लगभग 48 फीसदी सरसों पैदा होता है. इसलिए यहां एमएसपी पर होने वाली खरीद ओपन मार्केट में सरसों के दाम की दिशा तय करती है. यहां पर राजस्थान स्टेट कोऑपरेटिव मार्केटिंग फेडरेशन (RAJFED) के पास खरीद का जिम्मा है. इसने अब तक सिर्फ 77,451 मीट्रिक टन सरसों खरीदा है. ऐसे में उम्मीद नहीं लगती कि इस साल राजस्थान अपने खरीद लक्ष्य को पूरा कर पाएगा. सरसों की खरीद की मात्रा एक दिन में एक किसान से 25 से बढ़ाकर 40 क्विंटल कर दी गई है. लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि वहां पर खरीद बहुत ही सुस्त गति से चल रही है. जबकि किसान एमएसपी पर सरसों खरीदने की मांग को लेकर दिल्ली तक प्रदर्शन कर चुके हैं.
देश में एमएसपी पर सबसे अधिक सरसों हरियाणा में खरीदा गया है. यहां इसकी खरीद अब बंद हो चुकी है. कुल 3,47,105 मीट्रिक टन सरसों खरीदी गई है. इसके बदले यहां के किसानों को 1892 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया है. सरसों उत्पादन में हरियाणा देश में तीसरे स्थान पर है. यहां देश की 13.1 फीसदी सरसों पैदा होती है. इसने अपने खरीद लक्ष्य को पूरा कर लिया है. जबकि अन्य सभी राज्य इस मामले में फिसड्डी साबित हुए हैं. राज्यों की लापरवाही के कारण किसान नुकसान उठाकर व्यापारियों को सरसों बेच रहे हैं.
देश के कुल सरसों उत्पादन में 13.3 फीसदी की हिस्सेदारी के साथ मध्य प्रदेश इस मामले में दूसरे स्थान पर है. लेकिन यहां अब तक सिर्फ 125902 मीट्रिक टन की ही खरीद हुई है. गुजरात में 31,924 मीट्रिक टन सरसों खरीदा गया है. उत्तर प्रदेश में सबसे कम सिर्फ 1809 मीट्रिक टन सरसों एमएसपी पर खरीदा गया है. जबकि देश के कुल सरसों उत्पादन में इसकी हिस्सेदारी 10.4 फीसदी की है.
किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट का कहना है कि सिर्फ 25 फीसदी खरीद होने की शर्त को हटाने की हमारी लड़ाई केंद्र सरकार के साथ है. लेकिन अगर 25 फीसदी भी फसल नहीं खरीदी जा रही है तो इसके लिए राज्य सरकारें जिम्मेदार हैं. दरअसल, राज्यों के लिए किसानों से ज्यादा व्यापारी महत्वपूर्ण हो गए हैं. इसीलिए राज्य सरकारें उन्हें फायदा पहुंचाने के लिए सरसों की सरकारी खरीद नहीं कर रही हैं. दूसरी ओर, केंद्र सरकार ने इस बार जान बूझकर खाद्य तेलों के इंपोर्ट पर जीरो ड्यूटी कर दी है. जिससे बड़े कारोबारियों को दूसरे देशों से खाद्य तेल आयात करना सस्ता पड़ रहा है. इससे भारतीय किसानों को नुकसान हो रहा है.
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